Saturday, October 8, 2022
संक्षिप्त रामलीला
Monday, August 22, 2022
मैं बस नाम की सुहागन...
मैं ममता रहित एक बागवां की कली
दर्द के सन्ताप मे पलकर बड़ी हूँ
बचपन मे भी बिल्कुल तन्हा थी
आज भी अकेले खड़ी हूँ
बेरहम वक्त से लड़ पोंछ आंसू को
जिंदगी के हर इम्तिहाँ को पास किया
कितने उतार चढ़ाव आए जीवन मे, लेकिन
ना मैंने खुद को निराश किया
अपने खुशियाँ की परवाह नहीं की
ना अपने सपनों का ध्यान रखा
कर दिए हाथ पीले बाबुल ने
दूजे घर खुद का समान रखा
अब जिसको सबकुछ मान
हर रिश्ता पीछे छोड़ आयी थी
मानों फिर वक़्त रूठ गया था मुझसे
फिर इम्तिहाँ की घड़ी आयी थी
मैं जिसको अपना परमेश्वर समझकर
पूरी श्रद्धा से बलिहारी जा रहीं थीं
अचानक आज उसके जिस्म से
किसी और के इत्र की खुशबु आ रहीं थीं
मैं हैरां परेशाँ हो गई
किस्मत के आगे हार रहीं थीं
वो किसी और गुल का मुरीद हो रहा
जिसके लिए मैं खुद को सँवार रहीं थीं
पैरों तले जमीन न रहीं
क्यूँ वक्त ने मुझसे हरजाई की
मैंने तो सिद्दत से रिश्ता निभाया
फिर क्यूँ उसने ऐसे बेवफाई की
उम्र में बड़ी और चरित्र शून्य
वो किसी और के नाम का जाप जपने लगा
मुझे वक्त ने ठगा ता-उम्र
फिर कोई अपना ठगने लगा
हाय रे किस्मत ये कैसे सितम है
अब सिंदूर का रंग फीका होने लगा
जो मेरे लिए सबकुछ था मेरा
वो आज और किसी का होने लगा
उस खुदा ने ममता की छांव छीना
मैं किस्मत समझकर सब सह गई
अब सिंदूर दगा पे उतर आया है
मैं सिर्फ नाम की सुहागन रह गई
Thursday, July 14, 2022
तेरे तलबगार नहीं होंगे....
तुमने मन बनाया है बिछड़ने का तो ये भी ठीक है
तेरी किसी महफिल मे हम भी शुमार नहीं होंगे
शायद अब कभी खुशियों से हम भी बेजार नहीं होंगे
ग़र तेरे चेहरे पर आती है शिकन देख मेरी परछाई भी
वादा रहा इस सूरत के अब कभी तुम्हें दीदार नहीं होंगे
कल भी महफिलें सजेगी पर वो बहार नहीं होंगे
दवा दारू बनेगी और मैखाने अस्पताल
हम पड़े रहेंगे बिस्तर मे मगर बीमार नहीं होंगे
सच्चाई छापे शायद तब वो अखबार नहीं होंगे
बोली लगेगी और कोड़ी के भाव बिकेंगे ज़ज्बात
मगर जो कीमत दे सके वफा की वो बाजर नहीं होंगे
एक दिन तुम भी टूटोगे सपने सभी तेरे भी साकार नहीं होंगे
बहुत तड़प के करोगे याद और मिलने की मिन्नत
मगर उस दिन मिलने को तुमसे हम सरकार नहीं होंगे
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हया भी कोई चीज होती है अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है ...
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मैं मिलावटी रिश्तों का धंधा नहीं करता बेवजह किसी को शर्मिदा नहीं करता मैं भलीभाँति वाकिफ हूँ अपने कर्मों से तभी गंगा मे उतर कर उसे गंदा...