हम एक दूसरे के अब तलबगार नहीं होंगे
तुमने मन बनाया है बिछड़ने का तो ये भी ठीक है
तेरी किसी महफिल मे हम भी शुमार नहीं होंगे
शायद अब कभी खुशियों से हम भी बेजार नहीं होंगे
ग़र तेरे चेहरे पर आती है शिकन देख मेरी परछाई भी
वादा रहा इस सूरत के अब कभी तुम्हें दीदार नहीं होंगे
कल भी महफिलें सजेगी पर वो बहार नहीं होंगे
दवा दारू बनेगी और मैखाने अस्पताल
हम पड़े रहेंगे बिस्तर मे मगर बीमार नहीं होंगे
सच्चाई छापे शायद तब वो अखबार नहीं होंगे
बोली लगेगी और कोड़ी के भाव बिकेंगे ज़ज्बात
मगर जो कीमत दे सके वफा की वो बाजर नहीं होंगे
एक दिन तुम भी टूटोगे सपने सभी तेरे भी साकार नहीं होंगे
बहुत तड़प के करोगे याद और मिलने की मिन्नत
मगर उस दिन मिलने को तुमसे हम सरकार नहीं होंगे
क्या बात है प्रिय हरीश।असफल प्रेम की मार्मिक अभिव्यक्ति 👌👌
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