*ऐसा मेरा पहाड़ है*
चिडियों की चहचहाहट, कहीं भँवरो की गुंजन
कहीं कस्तूरी हिरण तो कहीं बाघ की दहाड़ है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
खेतों में लहराती हरियाली, कल-कल करती नदियाँ मतवाली
मंजुल झरनों से आती ठंडी ठंडी फुहार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
ग्वालों की बंसी, बकरियां हिरनी सी
महकती फूलों की घाटी तो औषधीय बयार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
बर्फीले हिमाल, कहीं मखमली बुग्याल
परियों का वास, कहीं एकलिंग की शक्ति अपार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
गंगा का उद्गम यहीं, बद्री और केदार यहीं
शिव की नगरी हर की पौड़ी और यहीं हरिद्वार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
हैरी