मुझे उसके लफ़्ज़ों मे, चापलूसी की बू आ रहीं है
बड़ा शोर मचा है लगता है, चुनाव तू आ रहीं है
कल तक जो राजा थे, अब खुद को सेवक दिखा रहे हैं
भ्रमित करके जनमानस को, जाल नया बिछा रहे हैं
जो मुड़कर नहीं आए सालों मे, वो रोज पधार रहे हैं
आलीशान महलों के मालिक, झुग्गियों मे दिन गुजार रहे हैं
जिसने जनता की आशा तोड़ी, पलट कभी देखा नहीं
जनता जनार्दन होती है जान, अब आस से निहार रहे हैं
शोर सराबोर चारो तरफ, अपना प्रचार कर रहे हैं
बहला फुसला कर जनता को, फिर व्यापार कर रहे हैं
दे दो सत्ता आज हमे, कल होगा विकास
डिजिटल नगदी के युग मे, सौदा उधार कर रहे हैं
अब कलम के सहारे, जनता को जगाना होगा
एक एक "मत" की कीमत, इनको समझाना होगा
ये बरसाती मेढ़क है, सिर्फ बरसात मे ही आयेंगे
अगर है हितैषी जनता के, हर मौसम आना होगा
जो सुख दुःख मे साथ रहे, वही जननायक होगा
वोट उसी को करेंगे अब, जो नेता के लायक होगा
जो सिर्फ अपना उल्लू सीधा करे, उसकी जरूरत नहीं
संसद मे वही पहुंचेगा, जो बुरे वक्त मे भी सहायक होगा
जो राग द्वेष से हो परे, न सत्ता लालच मन मे हो
जिसका जाति धर्म से बढ़कर, राष्ट्र प्रेम जीवन मे हो
जो ना बांटे दुनियां को, जाति-धर्म की राजनीति से
एक देश एक है हम, जिसके हर कथन मे हो
जागो जनता बेच ना आना, फिर से अपने वोट को
काबिल को चुनकर आना, न देखना फेंके नोट को
लालच की माला पहन, उतर न जाना बोतल मे
करके ख्वाब का सौदा, बिक न आना चुनावी दंगल मे