Sunday, December 12, 2021

आस अभी भी कश्मीर की..


 क्यों अपना ही घर हमें, छोड़कर भागना पड़ा

हुक्मरान थे नींद में, हमें जागना पड़ा

पुस्तैनी जमीन छोड़ी, सपनों का मकां गया

किलकारियों भरा आंगन, किसे पूछूँ कहांँ गया


 क्या कसूर था हमारा, क्यों जो बेदखल किया

बेबस बेकसूरों का, किस जुर्म में कतल किया

रो रहीं बहू बेटियाँ, बुजुर्ग सब हताश थे

न पनाह अपनत्व की, अपने भी लाश लाश थे


कैसे बचाई जान हमने, रात के अंधेरों में

चीखती कराहें कह रही, कश्मीर के गधेरों में

सत् सनातन के राही, करते थे शिव का ध्यान सदा 

नि:शस्त्र शास्त्र का हनन हुआ, इस बात का सबको पता 



फिर भी सभी खामोश हैं, ना हलचल कोई सदन में है 

शरणागत के भांति फिरते, अब तलक हम वतन में हैं 

 हक हमें भी अपना चाहिए, जमीं अपनी कश्मीर में 

बहुत सह लिए ज़ख़्म, बेवजह आए मेरे तकदीर में


अब कोई तो निर्णय करो, फैसले जो हक मे हो

मुस्कान सिर्फ चेहरे पे नहीं, खुशी हर रग रग मे हो

फिर से वही घर चाहिए, और वहीं बसेरा हो

अब नफरतों की शाम ढ़ले, अमन का सवेरा हो

                       

                       ....... हैरी 


Monday, November 29, 2021

क्यूँ बँट रहे हैं लोग..



जर जोरु जमीन के खातिर बँट रहे हैं लोग

जाति धर्म समुदाय के नाम पे कट रहे हैं लोग

इन्सानियत और अपनेपन को भुला चुके हैं 

धीरे-धीरे परिवार मे तभी घट रहे हैं लोग 


भाई-भाई से निभा दुश्मनी रहे यहाँ हैं लोग

पड़ोसी का जो हाल पूछते अब कहाँ हैं लोग

अब मैं भी फिरता रहता हूं खोजने को एक दुनियाँ

इन्सानियत को सबसे ऊपर समझते जहाँ हो लोग


मुँह मे राम बगल मे छुरा करते हैं सब लोग

अपनों की उन्नति देख जल मरते हैं अब लोग

उस कुंए को भी प्यासा छोड़ देती है ये दुनियाँ

शीतल जल उसका अपने गागर मे भरते हैं जब लोग


अपनों की ख़बर नहीं पर गैरों को मनाते हैं लोग

रावण के हैं भक्त बने और राम को जलाते हैं लोग

जिनके आदर्शों से चलती आ रहीं है दुनियाँ 

धीरे-धीरे उन्हीं की साख को मिट्टी मे मिलाते हैं लोग 


बेच बाप की जमीन नया कारोबार लगा रहे हैं लोग 

बुढ़ी माँ बीमार है मगर पैसा उधार लगा रहे हैं लोग 

कितने कमजोर हो गए रिश्ते दुनियां मे 

अपनों के डर से गैरों को चौकीदार बना रहे हैं लोग 


युधिष्ठिर को भुलाकर दुर्योधन बनने लगे हैं लोग 

भ्रष्टाचार और नफरत के कीचड़ मे सनने लगे हैं लोग 

अब धर्म की नीति नहीं बल्कि नीति के लिए धर्म को 

तोड़ मरोड़ कर जनता पे मड़ने लगे हैं कुछ लोग 


Tuesday, November 16, 2021

हाँ मैं एक पुरुष हूँ...



हाँ मैं एक पुरुष हूं

और पुरुषवादी भी, मगर त्रिया विरोधी कभी नहीं 


बहुत स्वाभिमानी भी हूँ 

मगर नारी का अपमान हो ये सोचता भी नहीं 


स्त्री पुरुष तो हमसफ़र हैं जिंदगी के 

एक दूसरे के खिलाफ कभी भी नहीं 


अगर समझदारी और सम्मान हो रिश्ते मे तो 

शक और विद्रोह की जगह कहीं नहीं 


अगर मिलजुल कर करे सफर का आगाज 

तो रोक सके राह ऐसी दीवार दुनियां मे बनी ही नहीं 


नर हो या नारी दोनों परमब्रह्म की संताने है 

हो ईश्वर की संतानो मे भेदभाव कभी भी नहीं 


हाँ मैं एक पुरुष हूं 

मगर स्त्री विरोधी कभी भी नहीं 

                                      (हैरी) 









Tuesday, November 9, 2021

गठन या पतन?



क्या उखाड़ लिया गठन करके

एक नए राज्य उत्तरांचल का

जिसका आज तो है ही डूबा 

ना कुछ अच्छी आस है कल का 


लाखों के बलिदान का था परिणाम 

ढेरों सपने भी सजाये थे 

इस नए राज्य के खातिर 

माताओं ने भी डंडे खाए थे 


धूल मे मिला दी कुर्बानी 

हर दिल मे ये गुबार है 

हर उत्तराखंड के क्रांतिकारी का 

हम सब पे ये उधार है 



क्या क्या सपने देखे थे उन सब ने 

क्या इस राज्य का हाल हुआ है 

यू. पी. मे थे तो कुछ तो अस्तित्व था 

अब अलग हुए तो बेहाल हुआ है 


थे सपने नए राज्य मे 

नयी उन्नति नए कारोबार होगा 

हर हाथ होगा समृद्ध और 

ना कोई बेरोजगार होगा 


आज स्थिति ऐसी हो गई 

हम पहले से भी पीछे हैं 

उड़ान भरने को नए पंख दिए थे 

सरकारों ने हाथ भी पीछे खींचे हैं 



हर युवा बेरोजगार बैठा है 

हर गरीब तरसता है निवाले को 

हर धाम ताकता है पुनर्निर्माण को 

हुक्मरान पूजते है प्याले को 


अब किससे क्या उम्मीद करें 

किससे अब हम मतभेद करे 

खुशियां मनाए इस हाल पे राज्य के 

या अलग होने पे खेद करें.....? 

                             (हैरी)

Thursday, October 21, 2021

इंसानियत की हत्या..



अभी अभी कुछ क्षण पहले भगवन

एक खिलती कली मुरझाई है 


मां ने जिसे तैयार कर

सुंदर बैग और रिबन से चोटी बनाकर 

हंसती खेलती भेजा था स्कूल

जो दोबारा लौटकर आ ना सकीं घर 


 साथियों से हाथ छुड़ाकर 

 बस चंद कदमों के फासले मे 

 ऐसी पडी नजर शैतान की 

 मूर्छित पडी दरिंदगी का शिकार हो कर 


भगवान, यह आपका न्याय नहीं है

तुझसे भी लाखों शिकवे हैं 

किसी घर की अमर रोशनी 

बुझ गई ये तो सही नहीं है 


तुम तो जग के रक्षक हो 

क्यूँ लाज बचाने नहीं आए

सिर्फ युग परिवर्तन से क्षीण हो गई शक्ति 

तुम्हीं महाकाल के समकक्षक हो 



 ज्ञान के द्वार से लौट रहीं थीं 

 कागज़ और कलम लिए हाथ मे 

 पलक झपकते ही दुनियां वीरान हो गई 

 घर मे जिसकी माँ बाट जोह रहीं थीं 


 आइए कुछ क्षण शोक करें

 चलो फिर से कुछ मोमबत्तियाँ जलाये 

 हुक्मरान फिर झूठा दिलासा देंगे 

फिर से मानवता वाला ढोंग करें 


 आंखों के सागर सूख गए 

 लोग बहुत रोये हैं आज 

 रोते हुए जिस्म बहुत देखे थे 

 आज रूह भी अश्कों मे डूब गए 


बेबस मां बाप मर गए जीते जी 

जब कानून अंधा और गूंगा हो गया 

बेहसी ने ऐसा हस्र किया था 

कोई कफन भी अलग न कर सके 


 इंसानियत के दिल पर चाकू

सदी की सबसे बुरी खबर

सबसे काला दिन इतिहास का 

सदियों तक भूला ना जाएगा 


 किसी भी बलात्कारी को मत छोड़ो

 दुनियां से निष्कासन करो 

 हे ईश्वर अब खुद नीचे आकर 

 अत्याचारियों का अंत करो|



Saturday, October 2, 2021

मैं फिर मिलूंगा....

हम फिर मिलेंगे कभी.... 

शायद इस जनम मे तो नहीं 

पर मेरा अटल विश्वास है 

मैं तेरे दिल मे हमेशा रहूँगा 

कहीं किसी सीप मे मोती की तरह 

कभी  हारिल की लकड़ी सा 


अब आँखों से तेरी ओझल हो गया 

चाह कर भी कहीं ढूंढ ना पाओगे 

पर तुझमे मुझको ढूंढेगी दुनिया 

जैसे चांद के संग चौकोर 

जैसे इन्द्रधनुष और मोर 

किस्से अपने या कुछ और 


मैं तेरी यादों से लिपट जाउंगा 

पर तुझे भी बहुत याद आऊंगा 

पता नहीं कहाँ किस तरह

पर पलकें तेरी भी जरूर भीगेगी

सैलाब ना सही चंद बूँदों से 

तेरी आंख का काजल भी मिटेगा 


या फ़िर यादों का फव्वारा 

जैसे झरने से पानी उड़ता है

मैं पानी की बूंदें बनकर 

तेरे बदन से रिसने लगूंगा 

और एक ठंडक सी बन कर

तेरे सीने से लगूंगा 


मुझे कुछ नहीं पता 

पर इतना जरूर जानता हूँ

कि वक्त जो भी करेगा

यह लम्हा मेरे साथ चलेगा

यह शरीर खत्म होता है

तो सब कुछ खत्म हो जाता है


पर ये नूरानी रूह के धागे

कायनात तक जोड़े रखते हैं 

उन्हीं धागों के सहारे 

मैं तुझसे जुड़ा मिलूंगा 

बस इस जन्म की नींद से जागते ही

तुझे उस जन्म मे फ़िर मिलूंगा !!

     


                                   (हैरी) 

Monday, September 27, 2021

भटकता मुसाफिर..

आखिर तुम्हें क्या तकलीफ है पथिक 

खामोश और तन्हा घूम रहे हो 

सूरज भी झील मे डूब गया है,

और कोई पक्षी भी चहचहाता नहीं है।


 आखिर तुम्हें क्या तकलीफ है पथिक 

 इतना गुमसुम और इतना दर्द ?

 गिलहरी का भण्डार भरा हुआ है,

 और नयी फसल पकने को है।


तुम्हारे माथे पर एक शिकन है,

पीड़ित नम पलके और रुआँसा के साथ,

तेरे सुर्ख गालों पर खिलता एक गुलाब

जल्दी मुरझा भी जाता है।


मैं स्वप्न में एक स्त्री से मिला,

जो हुस्न-ए-अप्सरा लिए थी ,

जिसके केशों ने पग छुए थे उसके 

और आँखों मे समुद्र समाया था।


 


मैंने उसे सोलह श्रृंगार कराए,

और कंगन संग दिया इत्र भी

उसने मुझे यूँ प्यार से देखा

मानो सच्चा प्यार किया हो उसने भी |


मैंने उसे यूँ पलकों मे बिठाया,

फिर दिन भर कुछ और देखा नही,

पूर्णिमा के चांद सा चेहरा लिए ,

गुम हो गई वो बादलों मे कहीं ।


अब भी आंखे तलाश में उसके,

नित हर ओर उसे खोजती हैं 

मानो कोई भोर का सपना, 

जो मैंने देखा था कभी।


मैंने उसकी होंठों की उदासी में देखा,

एक भयानक चेतावनी और इंतकाम,

जब मैं जागा और खुद को पाया,

एक ठंडी पहाड़ी की तरफ।

और इसलिए मैं यहां भ्रमण करता हूं,

अकेला और बेरूखी लिए हुए,

मानो झील से सेज सूख गया हो,

और पक्षी भी कोई गाता नहीं यहाँ।

                 (हैरी)                    


Wednesday, September 22, 2021

एक रोज़ तुम्हें बताऊँगा..

क्यूँ सारे सपने धूमिल हो रहे 

क्यूँ हवा का रुख बदल रहा है

फिर क्यूँ बारिश मे यादें उमड़ रहीं हैं 

मैं तुम्हें एक दिन बताऊंगा


क्यूँ आसमाँ में घनघोर घटा छा जाती हैं

क्यूँ एक झोंका हवा का यादों को उड़ा देती है

फिर क्यों आती हैं आंसुओ की धारा

मैं तुम्हें एक दिन बताऊंगा


क्यूँ गुज़रे लम्हों की हर एक यादें

एक तेज छुरी सी चमकती है

फिर क्यूँ प्रणय मिलन से डरता है मन 

मैं तुम्हें  किसी रोज बताऊंगा


क्यूँ मद्धम मद्धम बढ़ता वेग वर्षा का 

क्यूँ हर बूंद एक दर्द छोड़ती है

फिर क्यूँ घटा बरसती आँखों से 

मैं तुम्हें किसी दिन बताऊंगा


क्यूँ आसमान में  उठ रही अंगडाई 

क्यूँ कोई भ्रम सा साथ होता है

फिर क्यूँ पागलों सी हालत है मेरी 

मैं तुमको एक दिन बताऊंगा


काली घटाओं की गर्जन 

और बारिश के बाद का सन्नाटा

चिंतित मन के हालात भी 

मैं तुमको एक दिन बताऊँगा 


तन्हा रातों का सबब और 

हंसता चेहरा आंसू दर्द

सपने और हकीकत भी

मैं तुमको एक दिन दिखाऊंगा|

                                                  (Harry) 

Thursday, September 9, 2021

जंग या जिंदगी?

 


हर  युद्ध के बाद

किसी को तो सफाई करनी ही है।

हालत नहीं कर सकते 

आखिर खुद को तो सही करो।

 

किसी को तो ढकेलना ही है 

 मलवा सड़क के किनारों तक,

 तभी तो लाश से भरी गाड़ियाँ

 आगे बढ़ सकती हैं ।


 किसी का पैर तो फंसना ही है 

 कीचड़ और राख में,

 टूटी कुर्सियाँ और खून से लथपथ कपड़े 

 है एक और नए बटवारे के फ़िराक़ मे 


 किसी को तो गढ़ना होगा बुनियाद मे 

 दीवार खड़ी करने के लिए,

 किसी को रोशनदान बनकर,

 शुद्ध हवा को भीतर लाना होगा।


 तत्काल बना यह नहीं है,

 वर्षों से सुलगती आग है ये 

 सारे हथियार फिर से तैयार हैं

 एक और युद्ध के लिए।


हमें फिर से आवश्यकता होगी

एक जुट होकर आगे आने की।

गृह क्लेश से विश्व युद्ध तक रोक कर 

बिखरते शांति को संजोने की।


कैसे, हाथ में छड़ी,

अभी भी याद है कि वह कैसा था।

शांति अहिंसा दो हथियारों से 

क्रूर शासन का तख्त हिलाता था।


आस्तीनों मे 

अभी भी कई साँप पल रहे हैं 

जंग लगे हो कारतूसों मे भले 

जाबांज हौसलों से ही शेषनाग के फन कुचल रहे है।


घास में जो उग आये हैं 

फिर से रक्तरंजित कुछ कोंपले 

किसी को तो बढ़ाना ही होगा

जर जर टूटते हौसले|

                       (हैरी)



Sunday, September 5, 2021

गुरु महिमा अपरम्पार

प्रभु तेरा गुणगान कर सकूँ

इस काबिल जिसने बनाया है

मेरे अज्ञानरूपी अंधकार में

ज्ञान का दीपक जलाया है|


उन गुरुओं के चरणों मे सदा

शीश अपना झुकाया है

प्रभु तेरे इस दिव्य स्वरुप को

आखर -आखर से सजाया है|


जिसने ज्ञान की जोत जलायी

जिसने अक्षर की पहचान दिया

गुरु के ज्ञान से होकर काबिल

सबको जग ने सम्मान दिया|


उस गुरु का मान रख सकें

प्रभु इतना वरदान देना

हम भी गुरु पग चिह्न पर चले

हमको सन्मार्ग की पहचान देना|


मेरे गुरु तारणहार है मेरे

मेरे पहले भगवान भी

हे गुरुवर! तुम ज्ञाता हो जग के

प्रभु तुल्य इंसान भी|


महिमा तुम्हारी वर्णन कर सकूँ 

मुझमे इतना ज्ञान नहीं 

वह मंदिर भी श्मशान सा मेरे लिए 

जहां गुरुओं का सम्मान नहीं|


शब्द नहीं उचित उपमा को 

अब कलम को देता विराम हूँ 

गुरुवर आप अजर अमर रहें 

चरणों मे करता प्रणाम हूँ 

चरणों में करता प्रणाम हूँ|

                     ... (हैरी) 



शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 

Tuesday, August 31, 2021

माँ का प्यार....


माँ की ममता है ही कुछ ऐसी 

जिसे कोई समझा नहीं सकता,

यह सर्वोच्च आस्था से बना है

और इसके बलिदान से बड़ा कुछ हो नहीं सकता 


 यह पाक साफ और निःस्वार्थ है

इससे स्थायी क्या हो सकता है

ना कोई उसके प्यार को छीन सकता 

 और कुछ भी इसे ना मिटा सकता है |


 यह धैर्य और क्षमाशीलता ना खोता 

भले ही भरोसा रहा हो टूट

और यह कभी विफल नहीं होता 

चाहे सबकुछ रहा हो छूट |


इसमे विश्वास अनंत अडिग है

चाहे जग निंदा करे चहु ओर 

यह पूर्ण सुंदरता से चमकता 

 सबसे चमकीले रत्न सा कहीं दूर |


 यह परिभाषित का मोहताज नहीं है,

 यह सभी तर्कों की करे निंदा 

रहस्यमय है अभी भी दुनियां के नज़रों मे 

 सृष्टि के अन्य रहस्यों की तरह,


 एक बहुत ही शानदार चमत्कार

मनुष्य समझ ही नहीं सकता

यह एक चमत्कारिक सबूत है 

खुदा के चामत्कारिक हाथों का |

                                      (हैरी)



Friday, August 27, 2021

अंत नहीं होता....



जब मैं मरूँ, मेरा जनाज़ा निकाला जा रहा हो.. 

 यह न सोचना कि मैं इस दुनिया को याद कर रहा हूँ 

 कोई अश्क न बहाए, शोक न करे , न ही कोई मन भारी करे... 

मैं राक्षस के रसातल में नहीं पड़ रहा हूँ


 जब देखो मेरा  जनाजा जाते हुए, 

  पीड़ासक्त होकर रोना नहीं... 

मैं अलविदा नहीं कह रहा हूंँ, 

मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ।


मुझे मेरी कब्र में छोड़ आओ, तो अलविदा मत कहना.. 

 याद रखना कब्र तो जन्नत के लिए सिर्फ एक पर्दा महज है

तुमने मुझे केवल पंचतत्व मे विलीन होता देखा, 

अब मुझे पंचतत्व होता भी देखो... 


प्रकृति का अंत कैसे हो सकता है?

 नहीं हो सकता... 

 मरण सूर्यास्त सा है, अंत सा लगता है 

लेकिन वास्तव में यह भोर है.। 

गोधूलि और भोर में सूर्य चंद का अंत नहीं होता... 

दोनों मौजूद रहते हैं कहीं न् कहीं


जब मिट्टी तुम्हें खुद मे मिला लेती है,

तब आत्मा मुक्त हो जाती है।

 क्या आपने कभी किसी बीज को धरती पर गिरे हुए 

नव जीवन के साथ  उगते नहीं देखा है?

फिर मनुष्य  के बीज उगने पर संदेह कैसा ?

 अंत नहीं होता प्रकृति का..... 

                                       (हैरी)

Wednesday, August 25, 2021

कवि बनने के लिए आपका पहला कदम....

कवि बनने के लिए पहला कदम क्या है?  

आपको लगता है कि यह "लिखना" होगा, लेकिन ऐसा नहीं है।  अन्य कवियों से बात करते हुए और कवि बनने की प्रक्रिया के बारे में जो मुझे पता चला है कि नए कवियों के लिए सबसे बड़ी बाधा यह है कि वे खुद को कवि समझते ही नहीं हैं।  उन्हें यह विश्वास विकसित करने में परेशानी होती है कि वे लिख सकते हैं और फिर भी यह कुछ ऐसा है जो आपको करना है।  जब आपने उस दृढ़ विश्वास को विकसित नहीं किया है, तो यह गुमराह का रास्ता बन जाता है  आप अपने काम को इतना समय और महत्व नहीं दे पाते हैं।  आप खुद को एक कवि के रूप में कैसे सोचते हैं, खासकर जब आप एक लेखक के रूप में तनख्वाह नहीं कमा रहे हैं?  

क्या होता है जब आप लिखते हैं? 

यदि आप एक लेखक बनना चाहते हैं, तो मुझे लगता है कि आपके पास कहने के लिए कुछ है और इसे कहने की तीव्र इच्छा है। आप यह नहीं जानते कि आप इसे कैसे कहें या किस रूप में (कविता, उपन्यास, निबंध, आदि) लेकिन आप जानते हैं कि कुछ है। ठीक है, आप अपनी पेंसिल या पेन उठाएं या आप अपने कंप्यूटर या टाइपराइटर के पास बैठ जाएं। आप जो कुछ भी लिखते हैं, बस यह सुनिश्चित करें कि उसमें आपका दिल है। यह साफ-सुथरा होना जरूरी नहीं है।  इसे अभिव्यंजक होना चाहिए।

बिना किसी संकोच के आपको यह लेख किसी को दिखाना होगा।  यह एक दोस्त हो सकता है, यह परिवार का सदस्य हो सकता है।  फिर ध्यान दें कि क्या होता है।  क्या आपकी लेखनी पढ़ने से व्यक्ति रोया, हंसा या गुस्सा हुआ?  यदि ऐसा हुआ, तो आपने ऐसा किया!  इसका मतलब है कि आप अपने लेखन से प्रभावित हो सकते हैं।  यह कुछ लायक है।  आपको लिखते रहना है!

मौन व ध्यान का प्रयोग करें

यदि आपको यह सोचने में परेशानी हो रही है कि आपको क्या कहना है, तो यह आपको प्रत्येक दिन मौन में कुछ समय बिताना मदद कर सकता है।  कुछ लेखक प्रार्थना करते हैं।  कुछ ध्यान करते हैं।  विचार यह है कि अपने मस्तिष्क को साफ़ करने और अपनी आंतरिक आवाज़ में सुनने की आदत डालें।  आप अपने दिमाग मे चलने वाले छोटे छोटे भावो से अधिक जागरूक होंगे जो बाद में बड़े विचारों में विकसित हो सकते हैं।

आप क्या लिखना चाहते हैं? 

चलो ठीक है अगर आप नहीं जानते कि आप किस बारे में लिखना चाहते हैं।  आपको यह जानने में लंबा समय लग सकता है कि आपके लिए क्या उचित है। उस विधा को खोजने में अधिक समय लग सकता है जो आपको सबसे अच्छा लगता है। पहले मैं निबंध से लंबी-चौड़ी पत्र लेखन करता था।  ऐसा करने में मुझे बहुत समय लग गए।  इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उन शैलियों में कुछ और नहीं करूंगा, लेकिन मैं अभी कविता लेखन कर रहा हूं वह बिल्कुल फिट बैठता है।  मैं आपको तब तक प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं जब तक कि आपको वह विधा न मिल जाए जो आपके लेखन के लिए सबसे उपयुक्त हो |

अपने आप को लगातार याद दिलाएं कि आप लेखक है

जैसा ही आप अपने विश्वास को विकसित करते हैं कि आप एक लेखक हैं, यह आयाम तय करने में सहायक होता है जो आपको उस माहौल तक ले जाएगा जो आपको लिखने के लिए आवश्यक है।  जब आप लिखने बैठते हैं तो विचलित होना आसान हो जाता है और अन्य काम या खाने के बारे में सोचना शुरू हो जाता है।  आप चाहते हैं कि आपके डेस्क पर या आपके सामने दीवार पर कुछ ऐसा हो जो आपको यह याद दिलाए कि आप एक लेखक हैं।


आपको किस दुनिया में रहने की ज़रूरत है? वहाँ तक पहुँचने के लिए आप जो यात्रा करेंगे, वह एक लेखक के रूप में आपके द्वारा की जाने वाली कई यात्राओं में से एक होगी।  मुझे उम्मीद है कि ये विचार आपको पहला कदम उठाने में मदद करेंगे।  आप क्या लिखते हैं - और आप यहाँ से कहाँ जाते हैं - पूरी तरह से आप पर निर्भर है

       धन्यवाद

                                                  (हैरी) 

Sunday, August 15, 2021

ये देश रहना चाहिए

जब तक गंगा यमुना मे जल है
जब तक हवा मे शीतल है
जब तक चिडियों की कलकल है
हर नस मे देशप्रेम बहना चाहिए
मैं रहूं या ना रहूं ये देश रहना चाहिए

जब तक बाजुओं मे बल है
जब तक सांसो मे हलचल है
जब तक अंतर्मन मे दंगल है
ना जुर्म कोई सहना चाहिए
मैं रहूं या ना रहूं ये देश रहना चाहिए

जब तक धरती पे जंगल है
जब तक सूर्य चंद्र और मंगल है
जब तक खेत किसान और हल है
दुश्मन का हर गुरूर ढहना चाहिए
मैं रहूं या ना रहूं ये देश रहना चाहिए

जब तक सरहद मे सेना दल है 
जब तक कांटे और कमल है 
जब तक विश्वास अटल है 
बस जय हिंद कहना चाहिए 
मैं रहूं या ना रहूं ये देश रहना चाहिए 

जब तक राग द्वेष ना मन मे छल है 
जब तक विचार निर्मल है 
जब तक धरा मे भू पटल है 
बस देशप्रेम ही गहना चाहिए 
मैं रहूं या ना रहूं ये देश रहना चाहिए 
                         Kumar Harris 

Saturday, June 5, 2021

विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आओ आज एक पेड़ लगाये
अपनी धरा को खुशहाल बनाए
धरा पे जब होगी हरियाली
चारों तरफ होगी खुशहाली

माँ धरती सदा देती है आयी 
अब हम भी कुछ करते हैं अर्पण
पूर्ण भाव से तहेदिल से 
करते है कुछ हम भी समर्पण 

धरती माँ का उपकार कोई 
किसी हाल मे सकता ना चुका 
अपने ही संकट से निपटने को 
उठ खड़ा हो और एक पेड़ लगा 

#happy_environment_day

Saturday, May 8, 2021

"हाँ मैं एक मजदूर हूँ"



घर छोड़ा,परिवार छोड़ा,
छोड़ के अपने गाँव को
भाई बहिनों का साथ छोड़ा और
उस पीपल की छाँव को
माँ के  हाथ का खाना छोड़
हर खुशी को तरसता जरूर हूँ 
हाँ, मैं एक मजदूर हूँ.... 

चंद रुपया कमाने के खातिर
और भरपेट खाने को
बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
अपने खुशियों के जमाने को
कुछ कमाने तो लग गया हूँ मगर
 घर से बहुत दूर हूँ 
हाँ, मैं एक मजदूर हूँ... 

किसको अच्छा लगता है साहब
 अपनों से बिछड़ने मे 
मीलों दूर परदेश मे रहकर
खुद ही किस्मत से लड़ने में 
कहीं हालातों का मारा हूँ
कभी भूख से मजबूर हूँ 
 हाँ, मैं एक मजदूर हूँ...

बेहद बेबस कर देती है,
भूख मुझसे बेचारों को
वरना दूर कभी न भेजती 
माँ अपनी आंखों के तारों को
हारा नहीं हूँ अभी भी मैं
हौसले से भरपूर हूँ 
कई दिनो का भूखा प्यासा 
हाँ, मैं एक मजदूर हूँ....

Monday, April 19, 2021

तुम मेरे लिए एक पहेली हो....

मै हूँ खुली किताब सा तेरे लिए 
तुम मेरे लिए एक पहेली हो
मै वीरान कोई मकान पुराना
तुम एक अलीशान हवेली हो

मै बंजर जमीं का टुकड़ा सा 
तुम खेत खुले हरियाली हो
मै मुरझा एक टूटा पत्ता सा 
तुम कलियो की लाली हो

मैं बूंद बूंद बहता पानी
तुम सागर अपरम्पार हो 
मै धरा का एक हिस्सा मात्र 
तुम सारा ही संसार हो 

तुमसे ही हर रिश्ता है जग मे 
मैं उस रिश्ते की डोर हूं 
तुम शीतल चांद हो गगन की 
मैं तुमको तकता चकोर हूँ 

मै भोर का हूँ एक डूबता तारा 
तुम प्रकाश दिनकर के हो 
मै एक अभिशाप सा हूँ धरती पर 
तुम वरदान ईश्वर के हो..... 

Tuesday, April 6, 2021

दो गज दूरी....

हक मे हवायें चल नहीं रहीं 
प्रकृति भी रुख रही बदल 
फैल रहा रिपु अंजान अनिल संग 
घर से तू ना बाहर निकल 

कर पालन हर मापदंड का
जिसे सरकारों ने किया है तय 
बना लो दूरियां दरमियाँ कुछ दिन 
पास आने से संक्रमण का है भय 

पहनो मास्क रखो सफाई भी 
हाथों को भी नित तुम साफ़ करो
Sanitizer का करके इस्तेमाल
संदेह और भय का त्याग करो 

अपना और अपनों का जीवन
जिद्द मे आकर ना क्षय करो
एकांत या देहांत तुम्हें क्या चाहिए 
ये खुद तुम ही अब तय करो

करके अपने ज़ज्बात पे काबू 
रख दो दो गज की दूरी 
अगर बचना है इस महामारी से 
तो मास्क पहनना है जरूरी |
                              (हैरी) 

Tuesday, March 23, 2021

"अमर सपूत"

*शहीद भगत सिंह एवं सभी अमर शहीदों के माँ के अंतिम शब्दों को बयां करके की कोशिश की है कृपया कुछ गलतियां हो गई हों तो माफ़ कीजिएगा*

ऐ धरती के अमर सपूत
तुझ बिन आँखे पथराई हैं
तू मातृभूमि पे हुआ निसार
असहनीय तेरी जुदाई है

परमवीर और अदम्य साहसी
तू सच्चा मातृभूमि का रखवाला था
माना जननी जन्मभूमि है सबसे पहले 
नौ माह मैंने भी तुझे पाला था

एक माँ की रक्षा के खातिर
एक माँ का सूना संसार किया
झूल गया हँसकर फंदे से
शोकाकुल अपना घर बार किया

एक वो दिन था जब आस सदा
आने की तेरी रहती थी
मिल के फिर तुझको सहलाऊँगी
इस आस मे दूरी सहती थी

अब गया तू ऐसे छोड़ मुझे
शायद कभी ना मिल पाऊँगी 
कल तक मेरा "बेटा" था तू 
अब "माँ" मैं तेरी कहलाऊँगी 

पहचान मुझे दे गया नई 
तू होकर अमर इतिहास मे 
धन्य मेरी कर गया कोख को 
सदा अमर रहेगा तू जनमानस के एहसास मे |
                                             *जय हिंद*
                                                   (हैरी) 

Sunday, March 21, 2021

*ऐसा मेरा पहाड़ है*

*ऐसा मेरा पहाड़ है*

चिडियों की चहचहाहट, कहीं भँवरो की गुंजन
कहीं कस्तूरी हिरण तो कहीं बाघ की दहाड़ है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

खेतों में लहराती हरियाली, कल-कल करती नदियाँ मतवाली
मंजुल झरनों से आती ठंडी ठंडी फुहार है 
हाँ ऐसा  मेरा पहाड़ है। 

ग्वालों की बंसी, बकरियां हिरनी सी 
महकती फूलों की घाटी तो औषधीय बयार है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

बर्फीले हिमाल, कहीं मखमली बुग्याल
परियों का वास, कहीं एकलिंग की शक्ति अपार है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

गंगा का उद्गम यहीं, बद्री और केदार यहीं 
शिव की नगरी हर की पौड़ी और यहीं हरिद्वार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
                     हैरी

Tuesday, March 16, 2021

मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है

मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
लोभ मोह सब मिथ्या है अछूता नहीं कोई फिर भी मगर

इर्ष्या द्वेष और छल कपट से भरा हुआ है डगर तेरा 
कांधे चार दो गज ज़मीं श्मशान ही अंतिम सफर तेरा 
फिर क्यों खुद को तू अपनों से अलग-थलग रहा है कर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर 

नेकी ही संग जाएगी जब कहर काल का बरसेगा 
मुह फ़ेर लिया था जिनसे मिलने को उनसे तरसेगा
भले अलग रहने लगा है खुश तू भी नहीं है पर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर 


बन कलाम और गाँधी सा ग़र धर्म की बेड़ी तोड़नी है 
दो दिन की जिंदगी मे ग़र अमिट छाप जो छोड़नी है 
पुण्य कमा जो पहुंचाएंगे तुझको तेरे रब के दर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
                                                    ...... हैरी 

Thursday, March 11, 2021

कागज कलम और एक शांत कोना...

धरती नाप ली नापने को 
अंतरिक्ष मे पड़े आसमान बहुत है
"पंख"थोड़े कमजोर पड़ गए 
हौसलों मे अब भी उड़ान बहुत है

चापलूसी से जीत लेंगे जग को
सोचने वाले नादां बहुत हैं
खुद को अमर समझने वाले 
भूल गए श्मशान बहुत हैं

मन वचन कर्म से ऊंचे 
दुनियां मे अब भी इंसान बहुत है 
सबकुछ बक्सा है खुदा ने
बन्दे लेकिन हैरान बहुत है 

लाखों की माया है फिर भी 
दिल मे छुपाये अरमान बहुत है 
पत्थर को दिया दर्जा खुदा का 
खुले घूम रहे शैतान बहुत हैं 

कागज कलम और एक शांत कोना 
लिखने को पूरा जहान बहुत है 
दुआएँ अपनों की रहती है संग 
फिर भी बेचारा "हैरी" परेशान बहुत है 
                                        (हैरी) 

Monday, March 8, 2021

मैं गैर था उसके लिये गैर ही रह गया...

बनाया था जो मैंने सपनों का महल ढह गया
मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया

बहुत जद्दोजहद की उसे पाने को लकीरो से 
दिल ऐसा टूटा लहू आँखों से बह गया 

मेरे ख्वाब याद सांसो तक मे समाया था वो.. 
पल भर में ही बेवजह अलविदा कह गया 

लड़ रहा था खुदा तक से भी जिसे पाने के लिए 
खुदा कसम उसी के लिए सबकुछ चुपचाप सह गया 

कड़वी मगर एक सच्चाई से वाकिफ कर गया वो 
वर्षों तक वफा की थी मैंने और अकेला रह गया 

मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया..... 
                                            (हैरी)

महिला दिवस (women's day)

तुम 'सीता' हो तुम 'मीरा' हो 
तुम 'दिनकर' की रश्मिरथी
तुम मिशन अंतरिक्ष की हो 'कल्पना' 
तुम 'त्रिकाल' की हो 'सती' 

तुम बलिदान हो 'पन्नाधाई' का 
तुम अहिल्या का 'अभिशाप' हो 
तुझमे हट है 'सावित्री' सा 
तुम 'लता' के मधुर 'आलाप' हो 

तुम विश्व पटल पर छायी 'इंदिरा'
तुम सुखोई उड़ाती एक नारी हो 
तुम रौद्र रूप हो काली का और 
तुम कलियों से भी प्यारी हो 

तुम दंगल की 'गीता' 'बबीता'
तुम स्वर्ण पदक विजेता 'हिमा दास' हो 
तुझमे फूलों सी अभिलाषा 
ना जाने क्यू फिर भी उदास हो 

तुम ज्ञान विज्ञान मे हो अग्रणी 
तुम सरहद पे परचम लहराना भी जानती हो 
तुम कहीं सिहासन पे हो विराजित 
कहीं धूल मे खाक भी छानती हो 

तेरा हर पहलू को समझे 
किसी प्राणी मात्र मे इतना ना ज्ञान है 
स्त्री तुझे शत शत नमन और 
तेरे हर रूप को मेरा प्रणाम है 
                        ................ (हैरी)