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Saturday, November 15, 2025

“रघुवंश की मर्यादा की कथा”



अयोध्या की धूल में छिपा स्वर्णिम गौरव काल,
हर कण में गूँजता इक्ष्वाकु का प्रतिपाल।
मंत्रों की धार तले जला मर्यादा का दीप,
जहाँ सत्य था राज्य, और धर्म था संगीत।

सगर की तपस्या ने नभ को किया प्रकाशमान,
भगीरथ के मौन में बहा गंगा का उफान।
दशरथ हुए प्रहरी सत्य और धर्म के,
रघुवंश चमका जैसे सूरज के कर्म से।

रघुकुल का तेज था किरणों का आलोक,
वचन के आगे जीवन था उनका संयोग।
वहीं से जन्मे राम — मर्यादा के पर्याय,
धर्म की मशाल बने, स्नेह के स्वर्णिम अध्याय।

है वेदों की वाणी में गूँजते उनके नाम,
पुरखों की तप में बसता आत्मा का धाम।
सगर का बल, भगीरथ की विनम्र आराधना,
हर राजा में झलकी उनकी ही साधना।

जब त्रेता में अधर्म का जाल फैला चहुँओर,
धरती पुकार उठी — “हे विष्णु! अब धरो भोर।”
अवध में जन्मे राम — करुणा के सागर,
सत्य का परचम थामे, हर तम को किया निराधार।

जनकपुरी की माटी ने सीता का रूप सँवारा,
धरती की पुत्री थी — धैर्य का उजियारा।
वनपथ की धूल में भी इतिहास चला,
जहाँ प्रेम और त्याग का दीप पुनः जला।

राम में था दशरथ का संयम महान,
सगर का साहस, भगीरथ का ध्यान।
जनक का वैराग्य, विश्व का उपदेश,
मर्यादा में बँधा था परमात्मा का भेष।

आज भी जब कोई सत्य के लिए लड़े,
अधर्म के विरुद्ध अडिगता से रहे खड़े।
तो लगता है — त्रेता फिर लौट आई है,
राम की मर्यादा फिर जगमगाई है

जय श्रीराम 🙏


Saturday, October 8, 2022

संक्षिप्त रामलीला

अयोध्या के सम्राट और, दशरथ के सपूत भी
अपने ही राज्य मेँ अब, ढूँढते खुद का वजूद भी
कौशल्या के लाडले, गुरु विश्वामित्र के प्रिय भी 
वेदों के प्रकांड पंडित, और सबसे बड़े क्षत्रिय भी

युग पुरुष हमारे और, पुरुषोत्तम सभी काम मेँ 
पवित्र हर कदम मेँ और, सर्वश्रेष्ठ चारों धाम मेँ 
खुद को इंसान बना कर, प्रभु आए एक नाम मेँ 
अयोध्या को अपना राजा, दिखता था श्रीराम मेँ 

चारो भाइयों के अग्रज, तीनों माताओं के चहेते भी 
राज्य के उत्तराधिकारी, सब गुरुजनों के पसंद वही 
बाल्यावस्था मे ही, गुरु विश्वामित्र के आश्रम गए
शस्त्र-शास्त्र का अध्ययन कर, प्रभु और भी सक्षम हुए

राक्षसों का वध किया, अनुज लक्ष्मण के साथ मेँ 
गुरु विश्वामित्र के आशीर्वाद से, शिव धनुष तोड़ा बाद मेँ 
प्रत्यंचा चढ़ाकर धनुष की, गुरु का मान रख लिया 
स्वयंवर को जीत कर, जनकनन्दिनी संग विवाह किया 

माता सीता संग प्रभु श्री, जब लौट आए नगर मेँ 
सम्पूर्ण धरा प्रसन्न थी, खुशियाँ हर एक घर मेँ 
देवता उन्मुक्त थे, नम आँखें पलके भिगो रहीं 
अयोध्या नगरी मे जब, राज्याभिषेक की थी तैयारी हो रहीं 

पर प्रकृति को कहा मंजूर था, उसने खुशियाँ का दमन किया 
पिता के वचनों का रखने मान, प्रभु ने वन को गमन किया 
कैकयी के हठ ने आज, त्रिया-हठ की सीमा लाँघी थी 
वनवास के साथ प्रभु श्रीराम की, कई परीक्षा बाकी थी 

श्रीराम ने अयोध्या छोड़ी, दशरथ के तन से प्राण गए 
वचनों के प्रतिबंधित श्रीहरि, पिता का न अग्नि संस्कार कर सके 
दोहरी शोक की खबर,जब अनुज भरत के संज्ञान हुई 
तोड़ दिया निज माँ से रिश्ता, बोला तुमसे गलती ये महान हुई 

वन मे रहकर भी प्रभु ने, कई भक्तों का उद्धार किया 
केवट से मित्रता करके उसकी, जीवन नय्या पार किया 
शबरी के झूठे बेर खाए, अहिल्या का तारणहार किया 
बाली का वध करके, सुग्रीव का सुखी संसार किया 

सब के पालनहार प्रभु, खुद सिया वियोग में डूबे थे 
करने रावण का वध स्वंय, प्रभु अब रण मे कूदे थे 
लिखकर श्रीराम सील पर, नल नील ने सेतु गठन किया 
पवनपुत्र हनुमान ने, सोने की लंका का दहन किया 

युद्ध मे कई दानव मरे, कुछ पल लक्ष्मण भी मूर्छित हुए 
हनुमान संजीवनी बूटी लाए, फिर से लखन जीवित हुए 
युद्ध में अब रावण का, वध होना सुनिश्चित था 
प्रभु के हाथों होगा लंकेश का तारण, ये भी तो निश्चित था 

करके रावण की लीला समाप्त, विभीषण को लंका राज्य दिया 
एक अर्से के बाद प्रभु ने, जगत जननी के मुख का दरस किया 
लंका फतेह के साथ ही, 14 वर्षो का वनवास भी टूटा था 
प्रभु दर्शन को फिर आज,अयोध्या मे जन सैलाब फूटा था 

सीता व अनुज लखन संग,प्रभु राम का आगमन हुआ 
खुशी की लहर दौड़ी अयोध्या मे, जगह जगह हवन हुआ 
राज्याभिषेक है श्रीराम का, फिर से खुशियाँ आने वाली है 
लौटने की खुशी में पुरुषोत्तम श्रीराम की, आज हर घर मे दिवाली है