Thursday, December 15, 2022

क्या करूँ इस सड़क का अब...?


अब सड़कों का जाल बिछाने 
लगे हुए हैं गाँव मे
जब लोग सारे करके पलायन 
जा चुके शहर, किराये के मकां मे 

जब जरूरत थी गाँव को 
मूलभूत सुविधाएं और रोड की 
तब ना दर्द का एहसास था किसी को 
ना फिक्र थी किसी की चोट की 

कैसे जननी जनती थी शिशु को 
नदी नाले और डोली मे 
कैसे वृद्ध ने हार कर तोड़ी सांसे 
कितना दुःख डाला गाँव की झोली मे 

मीलों पैदल चलकर माँ बहने 
पानी ढोकर लाती थीं 
करके खून पसीने का सौदा 
दो वक्त की रोटी खाती थी 

बच्चों ने जान हथेली मे रख कर 
थोड़ी बहुत शिक्षा पायी थी 
गहरी खाई और रपटते रास्तों मे 
बहुतों ने जान भी गंवाई थी 

अब बने है गाँव के हीतेसी 
जब लाखों गाँव उजड़ गए 
लाखों घर हो गए बंजर 
लाखों अपनों से बिछड़ गए 

अब उस सड़क के क्या मायने 
जिस पर चलने को लोग नहीं 
अब ना विरान मकां मे वो हलचल रहीं 
जिनका खुशियो से मिलन का संजोग नहीं 

आज भी शहर की चारदीवारी मे कैद 
बहुत अम्मा बाबा रोते हैं 
अपने गाँव के बाखली को याद करके 
बुढ़ी आंखे खुद को भीगोती हैं 

अब भी वक्त है कर दो जीर्णोद्धार 
कुछ रुके हुए हैं जो गाँव मे 
उस बुढ़े बरगद तक पहुंचा दो पानी 
हमारा बचपन गुजरा है जिसकी छांव मे



 

Wednesday, October 26, 2022

दोगलापन से इन्कार है....


 देश में  निश्चल और निष्कपट राज सबको चाहिए

जो 70 वर्षो से मिला नहीं वो आज सबको चाहिए

कैसी दोहरी मानसिकता ले के जी रहे हैं लोग 

जाने क्यूँ नफ़रतों का जहर पी रहे हैं लोग ?


क्यूँ नहीं पूछता है उनसे कोई आज भी  

डुबो दी देश की नैया और 70 वर्ष किया राज भी 

आजकल जो ये बात हिन्दू हित की हो रहीं 

गुर्दे छिल रहे है जहाँ के, एक कौम दिन रात रो रहीं 


होके अपनी धरती के भी, अत्याचार सहे मुगलों के 

झेला जजिया कर भी और हुक्म माने  पागलों के 

सभी प्रसन्न थे जब हिन्दू घर मे था पिट रहा 

मंदिरों को थे तोड़ रहे और सनातन था मिट रहा !?


थे लुटेरे वो सभी लूटने तो आए थे

घर के जय चंदो के बदौलत वो भारतभूमि मे टिक पाए थे ।

आज इतिहास जिनका झूठा गुणगान करता है

 बादशाह महान वो हत्यारे खुद को कहते आये थे ।

 

 कैद करके  बाप को भाई का सीना चीर कर 

वो सुल्तान महान  कैसे जो हत्या करके बैठा तासीर पर 

पवित्र मंदिरों को लुटा जिसने बस्तियाँ उजाड़ दी 

गलत इतिहास पढ़ा के अब तक कई पुश्तें  बिगाड़ दी 


ना कोई गलत पढ़ेगा अब; ना लुटेरों का बखान होगा 

अब शिवा जी, महाराणा और पृथ्वीराज का गुणगान होगा 

कैसे गोरा बादल ने अकेले मुगलिया सल्तनत हिला दी 

शीश कटा कर उनके केवल धड़ ने जीत ने दिला दी 


सब ही थे दगाबाज, फरेब था उनके खून में,

इंसानियत का कत्ल करते थे वो जड़ जुनून में 

अय्याशी और मक्कारी में उनका भाग्य तय हुआ

फिर देश बचाने हेतु  सम्राट चन्द्रगुप्त का उदय हुआ 


जब सह रहा था सितम हिन्दू ,सबको खुशी थी जीने में 

अब अपना हक मागने लगे तो साँप लगे लोटने सीने मे 

बात होती  मोबलॉन्चिंग पर, कश्मीरी हिन्दु पे आँख बंद हैं 

बस यही दोगलापन तुम्हारा हमको वर्षो से ना पसंद है



Saturday, October 8, 2022

संक्षिप्त रामलीला

अयोध्या के सम्राट और, दशरथ के सपूत भी
अपने ही राज्य मेँ अब, ढूँढते खुद का वजूद भी
कौशल्या के लाडले, गुरु विश्वामित्र के प्रिय भी 
वेदों के प्रकांड पंडित, और सबसे बड़े क्षत्रिय भी

युग पुरुष हमारे और, पुरुषोत्तम सभी काम मेँ 
पवित्र हर कदम मेँ और, सर्वश्रेष्ठ चारों धाम मेँ 
खुद को इंसान बना कर, प्रभु आए एक नाम मेँ 
अयोध्या को अपना राजा, दिखता था श्रीराम मेँ 

चारो भाइयों के अग्रज, तीनों माताओं के चहेते भी 
राज्य के उत्तराधिकारी, सब गुरुजनों के पसंद वही 
बाल्यावस्था मे ही, गुरु विश्वामित्र के आश्रम गए
शस्त्र-शास्त्र का अध्ययन कर, प्रभु और भी सक्षम हुए

राक्षसों का वध किया, अनुज लक्ष्मण के साथ मेँ 
गुरु विश्वामित्र के आशीर्वाद से, शिव धनुष तोड़ा बाद मेँ 
प्रत्यंचा चढ़ाकर धनुष की, गुरु का मान रख लिया 
स्वयंवर को जीत कर, जनकनन्दिनी संग विवाह किया 

माता सीता संग प्रभु श्री, जब लौट आए नगर मेँ 
सम्पूर्ण धरा प्रसन्न थी, खुशियाँ हर एक घर मेँ 
देवता उन्मुक्त थे, नम आँखें पलके भिगो रहीं 
अयोध्या नगरी मे जब, राज्याभिषेक की थी तैयारी हो रहीं 

पर प्रकृति को कहा मंजूर था, उसने खुशियाँ का दमन किया 
पिता के वचनों का रखने मान, प्रभु ने वन को गमन किया 
कैकयी के हठ ने आज, त्रिया-हठ की सीमा लाँघी थी 
वनवास के साथ प्रभु श्रीराम की, कई परीक्षा बाकी थी 

श्रीराम ने अयोध्या छोड़ी, दशरथ के तन से प्राण गए 
वचनों के प्रतिबंधित श्रीहरि, पिता का न अग्नि संस्कार कर सके 
दोहरी शोक की खबर,जब अनुज भरत के संज्ञान हुई 
तोड़ दिया निज माँ से रिश्ता, बोला तुमसे गलती ये महान हुई 

वन मे रहकर भी प्रभु ने, कई भक्तों का उद्धार किया 
केवट से मित्रता करके उसकी, जीवन नय्या पार किया 
शबरी के झूठे बेर खाए, अहिल्या का तारणहार किया 
बाली का वध करके, सुग्रीव का सुखी संसार किया 

सब के पालनहार प्रभु, खुद सिया वियोग में डूबे थे 
करने रावण का वध स्वंय, प्रभु अब रण मे कूदे थे 
लिखकर श्रीराम सील पर, नल नील ने सेतु गठन किया 
पवनपुत्र हनुमान ने, सोने की लंका का दहन किया 

युद्ध मे कई दानव मरे, कुछ पल लक्ष्मण भी मूर्छित हुए 
हनुमान संजीवनी बूटी लाए, फिर से लखन जीवित हुए 
युद्ध में अब रावण का, वध होना सुनिश्चित था 
प्रभु के हाथों होगा लंकेश का तारण, ये भी तो निश्चित था 

करके रावण की लीला समाप्त, विभीषण को लंका राज्य दिया 
एक अर्से के बाद प्रभु ने, जगत जननी के मुख का दरस किया 
लंका फतेह के साथ ही, 14 वर्षो का वनवास भी टूटा था 
प्रभु दर्शन को फिर आज,अयोध्या मे जन सैलाब फूटा था 

सीता व अनुज लखन संग,प्रभु राम का आगमन हुआ 
खुशी की लहर दौड़ी अयोध्या मे, जगह जगह हवन हुआ 
राज्याभिषेक है श्रीराम का, फिर से खुशियाँ आने वाली है 
लौटने की खुशी में पुरुषोत्तम श्रीराम की, आज हर घर मे दिवाली है 

Monday, August 22, 2022

मैं बस नाम की सुहागन...


 

मैं ममता रहित एक बागवां की कली

दर्द के सन्ताप मे पलकर बड़ी हूँ

बचपन मे भी बिल्कुल तन्हा थी

आज भी अकेले खड़ी हूँ


बेरहम वक्त से लड़ पोंछ आंसू को

जिंदगी के हर इम्तिहाँ को पास किया

कितने उतार चढ़ाव आए जीवन मे, लेकिन

ना मैंने खुद को निराश किया


अपने खुशियाँ की परवाह नहीं की 

ना अपने सपनों का ध्यान रखा 

कर दिए हाथ पीले बाबुल ने 

दूजे घर खुद का समान रखा 


अब जिसको सबकुछ मान 

हर रिश्ता पीछे छोड़ आयी थी 

मानों फिर वक़्त रूठ गया था मुझसे 

फिर इम्तिहाँ की घड़ी आयी थी 


मैं जिसको अपना परमेश्वर समझकर 

पूरी श्रद्धा से बलिहारी जा रहीं थीं 

अचानक आज उसके जिस्म से 

किसी और के इत्र की खुशबु आ रहीं थीं 


मैं हैरां परेशाँ हो गई 

किस्मत के आगे हार रहीं थीं 

वो किसी और गुल का मुरीद हो रहा 

जिसके लिए मैं खुद को सँवार रहीं थीं 


पैरों तले जमीन न रहीं 

क्यूँ वक्त ने मुझसे हरजाई की 

मैंने तो सिद्दत से रिश्ता निभाया 

फिर क्यूँ उसने ऐसे बेवफाई की 


उम्र में बड़ी और चरित्र शून्य 

वो किसी और के नाम का जाप जपने लगा 

मुझे वक्त ने ठगा ता-उम्र 

फिर कोई अपना ठगने लगा 


हाय रे किस्मत ये कैसे सितम है 

अब सिंदूर का रंग फीका होने लगा 

जो मेरे लिए सबकुछ था मेरा 

वो आज और किसी का होने लगा 


उस खुदा ने ममता की छांव छीना 

मैं किस्मत समझकर सब सह गई 

अब सिंदूर दगा पे उतर आया है 

मैं सिर्फ नाम की सुहागन रह गई



Thursday, July 14, 2022

तेरे तलबगार नहीं होंगे....


 हम एक दूसरे के अब तलबगार नहीं होंगे

तुमने मन बनाया है बिछड़ने का तो ये भी ठीक है 

तेरी किसी महफिल मे हम भी शुमार नहीं होंगे


शायद अब कभी खुशियों से हम भी बेजार नहीं होंगे

ग़र तेरे चेहरे पर आती है शिकन देख मेरी परछाई भी

वादा रहा इस सूरत के अब कभी तुम्हें दीदार नहीं होंगे


कल भी महफिलें सजेगी पर वो बहार नहीं होंगे

दवा दारू बनेगी और मैखाने अस्पताल

हम पड़े रहेंगे बिस्तर मे मगर बीमार नहीं होंगे


सच्चाई छापे शायद तब वो अखबार नहीं होंगे

बोली लगेगी और कोड़ी के भाव बिकेंगे ज़ज्बात

मगर जो कीमत दे सके वफा की वो बाजर नहीं होंगे


एक दिन तुम भी टूटोगे सपने सभी तेरे भी साकार नहीं होंगे

बहुत तड़प के करोगे याद और मिलने की मिन्नत

मगर उस दिन मिलने को तुमसे हम सरकार नहीं होंगे



Sunday, June 19, 2022

पापा


 माँ जग की जननी है तो पापा पालनहार हैं

इस दुनियां मे रब का देखो वो दूजा अवतार हैं


दिन की तपिश मे है तपते रातों की नींद गंवाई है

हर कदम सिखाया चलना मुझमे उनकी परछाई है


बिन पापा अस्तित्व मेरा भी सच है मिट ही जाता

दुनियां की इस भीड़ मे अक्सर मेरा मन भी घबराता


लेकिन मेरे अकेलेपन मे साथ खड़े वो होते हैं 

अपने आराम को गिरवी रखकर वो मेरे सपने संजोते हैं 


पंख बने वो मेरे और मुझको सपनों का आसमान दिया 

पापा ही है जिन्होंने हमको खुशियों का जहान दिया 


रब से मुझको शिकवा नहीं बिन माँगे सबकुछ पाया है

शुक्रिया उस रब का जो इस घर मे मुझे जन्माया है


खुद लिए अब कुछ और मांगू इतना भी खुद गर्ज नहीं

माँ पापा रहे सदा सलामत इससे ज्यादा कुछ अर्ज़ नहीं



Thursday, June 9, 2022

बगावत की लहर.....


 क्यूँ बगावती तेवर हैं लोगों के

क्यूँ देश जल रहा दंगों के आग मे

फिर किसने लिख दी नफरत के कलम से

ये विध्वंस राष्ट्र के भाग मे


क्यूँ मरने मारने की खबर आती है 

क्यूँ धर्म पे बात विवाद हो रहे हैं पैनलों मे

क्यूँ नफरत के बीज़ बोते सुनायी देते हैं 

कुछ हुक्मरान टीवी चैनलों मे


क्या देश अपने भाई चारे का

अस्तित्व खोकर रह गया

जो कल तक था सभी धर्मों का देश

अब चंद लोगों का बन कर रह गया


वो हिन्दू मुश्लिम करके अपना

वोट बैंक तगड़ा कर रहे

ये ना समझ उनकी बातों मे आकर

आपस मे झगड़ा कर रहे


पढ़े लिखे होकर भी सभी

जाहिल सी हरकत करते हैं

खुद के सोच का गला घोंट कर

जमूरे सी करतब करते हैं


सिर्फ दंगों से ना देश जला रहा 

तुम्हारा भविष्य भी है जल रहा

वो तुमको सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ने वाला 

तुमको खाक की धूल सा कुचल रहा


अब तो जागो मेरे देश की जनता

कुछ अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करो

छोड़ो आपस की रंजिशें और

देश के विकास मे सहयोग करो



Thursday, May 12, 2022

मन करता है....

 

मन करता है दूर कहीं 

डूबते सूरज को देखूं

शांत बहते किसी सागर मे

एक कंकड़ तबीयत से फैंकू 


कुछ पल छीन कर इस दुनिया से

खुद के पूरे कुछ ख्याब करूँ

मन करता है पंख फैलाकर

इस नीलगगन की सैर करूं


ये घुटन, पाबंदी और जिम्मेदारी

सब कुछ पल भर मे उतार दूँ 

मन करता है सदियों की ज़िन्दगी 

बस एक पल मे ही गूजार दूँ 


अब कैसे बयां करूँ शब्दों में 

कितना कुछ दबाया है मन मे 

मन करता है लिखता जाऊँ 

क्या क्या सहा है इस जीवन मे... 

                                  (हैरी)



Thursday, April 28, 2022

बहुत याद आते हैं वो दिन....

 



बहुत याद आते है वो दिन

वो प्राईमरी की कक्षाएं, 

वो जूनियर की यादें

वो हाई स्कूल की यारी

और पेपरों की तैयारी|


वो इंटर की बचकानी बातें

वो प्रिन्सिपल से डर

वो स्कूल से ट्यूशन

और ट्यूशन से घर|


वो कॉलेज के लेक्चर

वो कैन्टीन की चाय

वो बिल के लिए बहस

और बेवजह की लड़ाई|


वो नोट्स की शेयरिंग (Sharing) 

वो कुछ भी कर जाने वाली डेयरिंग (Daring) 

वो वन (One) नाइट फाइट की थ्योरी (Theory) 

और पुराने प्रैक्टिकल नोटबुक की चोरी|


वो दोस्तों के साथ वैकेसन (Vacation) 

वो फाइनल एक्जाम की टेंशन

वो हास्टल की आखिरी रात

और वो हमेसा टच मे रहने वाली बात|




अब भी भूला नहीं हूँ मैं

वो स्कूल से कालेज तक का सफर

बहुत दोस्त मिले कुछ बिछड़ भी गए

बस इन्हीं यादों के सहारे

कर रहा हूं जिंदगी की गुजर बसर...

               शुक्रिया दोस्तों 

Sunday, April 3, 2022

तब याद करोगे तुम मुझे...


 जब अंधेरी रातों में कोई टूटा ख्वाब जगायेगा 

जब तेरे ख्वाब भी बिखरेंगे तब याद करोगे तुम मुझे


कभी चलते चलते ग़र तेरा दुपट्टा सरकेगा कांधे से 

जब खुद उठाओगे दुपट्टे को तब याद करोगे तुम मुझे 


कैसे सड़क के पगडंडी पे तुमको खतरों से बचाता था 

जब गुजरेगी छूकर बाइक कोई तब याद करोगे तुम मुझे 


जब आंसुओं का नमकीन स्वाद होंठों को तेरे भिगोयेगा 

जब होगी दर्द की इन्तहा तब याद करोगे तुम मुझे 


कैसे सहा है तड़प मैंने जला के खुद के सपनों को 

जब ख्वाब तेरा कोई टुटेगा तब याद करोगे तुम मुझे 


गली के आखिरी टपरी पे जहां कटिंग चाय की बांटी थी

जब आएगी खुशबु कुल्हड़ की तब याद करोगे तुम मुझे 


वो तेरे बिन कहे लफ़्ज़ों के मायने समझ जाता था मैं 

जब अनसुने होंगे शब्द भी तेरे तब याद करोगे तुम मुझे 


बे वजह छोड़ा था तुमने मुझे देख मेरी मुफ़लिसी को 

जब पैसा होगा पर प्यार नहीं तब याद करोगे तुम मुझे 


तुम जानते हो है मुझको पसंद वो भीनी खुशबु मेहंदी की 

जब भी लगेगी हाथो मे तब याद करोगे तुम मुझे..... 



Wednesday, March 16, 2022

आखिर क्यों बिक रहा है पानी..


 दुनिया मे एक तिहाई  होकर भी 

बोतलों में क्यों बिक रहा पानी

क्यों  बैसाखी के भरोसे हैं दफ्तर,

 हताश निराश भटक रही है जवानी...


चश्मे का नंबर बढ़ा हुआ है 

घुटने का दर्द करता बयां कहानी 

पके बालों से चल रही सरकारें

बेरोजगार बैठीं है युवा जवानी


चंद मिनटों के काम में यहां

घंटों लगा देते हैं वृद्ध सेनानी

देश कछुओं के झुंड में फंसा  ...

खरगोश सी व्याकुल बैठी है जवानी


सत्ता भी उन से चल रहीं

जिनको परिवर्तन लगता है नादानी 

21 वीं सदी मे भी फंसे हैं लंगोट में 

जहां सूट बूट मे तैयार जवानी 


मैं ये नहीं कहता नाकाबिल है ये सब 

बस उम्र ने बढ़ायी है सब की परेशानी 

उचित सुविधा और सम्मान सेवानिवृत्त लें 

नव जोश लिए परिवर्तन को आतुर है जवानी 


बूढ़ा शेर भी असहाय हो जाता है 

फिर इंसान के बुढ़ापे पर कैसी हैरानी 

अपार भंडार है पर गुणवत्ता शून्य 

तभी इतना महँगा बिकने लगा है पानी।



Tuesday, March 8, 2022

स्त्री तेरी कहानी..


 

दामन मे है अश्क, भाग्य भी क्या खूब पाया है
जिसको समझा अपना, हर वो शख्स पराया है
विश्वास करूँ किस पर, किसको अपनी तकलीफ कहूँ
कब तक खामोश रहकर मैं, अपनों का हर दर्द सहूँ

हर युग मे ही दर्द सहा है, हर वक्त दुःख ही पाया है
बेटी होना अगर गुनाह है, फिर मुझे क्यूँ जन्माया है
कभी जली दहेज के लिए, कभी हालातों ने सताया है
आखिर मैंने ही क्यूँ जग मे, अश्क बहाने को जन्म पाया है

अब ना देना जीवन दोबारा प्रभु, अगर हालात ना बदल सको
या बदल दो दृष्टि समाज की, अगर ज़ज्बात ना बदल सको
एहसास करा इस जग को मेरा, मुझमे भी तेरा अंश है
मैं ही हूँ इस जग की जननी, मुझसे ही इसका वंश है

कुल का दीपक देकर जग को, कुलदीप मैंने जलाये हैं
फिर भी प्रत्युपकार मे इस जग से, सिर्फ आशु ही पाए हैं
माना दया की प्रतिबिंब भी मैं, धीरज का प्रतिरूप भी हूँ
करुणा के सागर लिए नयनों मे, सहनशीलता की स्वरूप भी हूँ

पर थक चुकी हूं रो रो कर, अब मैं भी हँसना चाहती हूं
खुली हवा मे चंद लम्हें, मैं भी साँस लेना चाहती हूं
कुछ सपने है मेरे भी, मैं उन्हें जीना चाहती हूं
मांग कर देख लिया जग से, अब कुछ छीन कर पाना चाहती हूँ

मैं काली, दुर्गा, झाँसी का रूप, ये याद दिलाना चाहती हूं
भूल चुका जिस नारी को जग, मैं उससे मिलाना चाहती हूं
लेटे जिसके चरणों मे 'शिव', उस नारी को जगाना चाहती हूं
मिला जो सीता सावित्री को, वो सम्मान पाना चाहती हूं
मैं वो सम्मान पाना चाहती हूँ.......


Friday, March 4, 2022

पढ़ा लिखा बेरोजगार...




खोने को कुछ नहीं, पाने को पूरा आसमान पड़ा

व्याकुल विचलित एक शख्स, असमंजस में जो खड़ा

दोहरी मनोदशा पे शायद, हो रहा सवार है

कोई और नहीं साहिब, एक पढ़ा लिखा बेरोजगार है




एक उथल पुथल सोच में, निकला वो खुद की खोज में

रात रात भर जाग कर, दब चुका सपनों के बोझ में

भँवर से तो निकल आया, अब नौका पड़ी मझधार है

असहाय वो, देश का भविष्य, पढ़ा लिखा बेरोजगार है




मंजिल पाने को आतुर,अवसरों से कोसों दूर ...

आज नालायक हो गया, जो कल तक था घर का गुरूर

माथे पे शिकन की लकीर लिए, हालातों से लाचार है

किस्मत और दुनियाँ से लड़ता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है





कागज की रद्दी सी अब, लगती दर्जनों डिग्रियाँ...

मंदिर मस्जिद में व्यस्त देश, रोजगार की किसे फिक्र यहाँ

वक्त का साथ भी छूटा सा लगे, उम्मींदों का हारा परिवार है

निराशा मे आशा को ढूंढता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है




मनोबल टूटा क‌ई दफा, अपनों के तिरस्कार से

निकम्मा, निठल्ला, क्या कुछ न सुना, सरे आम रिश्तेदार से।

फिर भी हौसले बांध, निसहाय संघर्षरत, तैयार है...

डगमगाते कदमों को संभालता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है।




चाचा फूफा आयोग में नहीं, जीजा कोई न किसी विभाग में,

काबिलियत कम पड़ जाती, सिर चढ़ती भाई-भतीजावाद में...

कैसे कहूं क्या कुछ सहता है,ये तो बस एक सार है,

फिर भी सफलता की आश लगाए, हर पढ़ा लिखा बेरोजगार है।



Tuesday, February 22, 2022

आदमी क्या है...?


 आदमी क्या है 

जलता अंगारा...?

जो आसूं नहीं बहा सकता 

मगर जल सकता है राख होने तक

बिना ये कहे कि तकलीफ में हूं।


आदमी क्या है 

जिनी चिराग...? 

जिसका कोई निज स्वार्थ नहीं 

मगर आजीवन घिसता रहता है 

सिर्फ अपनों की खुशियों के खातिर  


आदमी क्या है 

जांबाज सिपाही...? 

कायरता पे जिसका अधिकार नहीं 

हर हाल मे उसको लड़ना है 

कभी अपनों से कभी हालातों से 


आदमी क्या है 

संयोजक कड़ी...? 

उतार चड़ाव भरी इस जिंदगी मे 

सब कुछ जोड़ के चलता है 

दो जून की रोटी के खातिर


आदमी क्या है

टिमटिमाता जुगनू...? 

प्रकाश और अन्धकार के बीच 

उम्मीद की एक किरण जैसा 

जो सबको हौसला देता है 


आदमी क्या है 

बनावटी साँचा...? 

जो अपने गुस्से या प्रेम को 

बिना जाहिर किए हुए 

हर उम्मीद पे खरा उतरे


आदमी क्या है 

मूक दर्शक...? 

जो आवाज उठाना तो चाहता हो 

मगर अपनों को दलदल मे फंसता देख 

मौन धारण कर लेता है 


आदमी क्या है 

टूटी पगडंडी...? 

जिसका जर्रा जर्रा बिखर गया 

रिश्ते निभाते निभाते 

मगर लौटकर कोई आया नहीं 


आदमी क्या है 

ढलती शाम...? 

जिसने उगते सूरज का तेज भी देखा है 

भोर की लालिमा मे नहाया है 

मगर अब अंधेरे से मिलने को है 




Friday, February 18, 2022

लहू के दो रंग


 अब भी लहू के दो रंग, 

दिखते है मुझे इंसान मे

अब भी साजिश में शामिल गोडसे, 

कुछ अब भी शामिल गाँधी की हिंसा मे 


कुछ के ईश्वर हैं बापू,

कुछ गोडसे को सलामी देते हैं

ये मिली जुली सी फितरत लोगों की,

दोनों को बदनामी देते हैं 


ना गांधी ने कोई अनर्थ किया था,

ना गोडसे ने कद्दू मे तीर चलाया था

एक था अपनों के विश्वासघात का मारा,

एक को अपनों ने बरगलाया था 


एक नाम विश्व पटल पे था

एक का अपना ही संसार था

एक हिन्दू मुस्लिम मे भेद समझता,

एक का पूरा अपना परिवार था


अब कौन सही था कौन गलत

इस मुद्दे पर अलग अलग राय है

कोई कहता हिन्दू मुस्लिम हैं दुश्मन

कोई कहता भाई भाई हैं


गांधी ने मझधार मे छोड़कर

देश का बंटवारा होने दिया

गोडसे की गोली ने धधकती ज्वाला को

सुषुप्त अवस्था मे ही सोने दिया


अब किसके पक्ष मे खड़ा रहूं मैं

किसके खिलाफ कहूँ जंग है

अंतरात्मा तभी है कहती मेरी

अब भी लहू के दो रंग हैं 

Friday, February 4, 2022

अब तो अनुकंपा कर दो भगवान...



 अब तो अनुकंपा कर दो भगवान

मन को कर दो स्थिर

मस्तिष्क मे भर दो ज्ञान

हार चुका हूँ हालातों से

पाना चाहा है सम्मान

अब तो अनुकंपा कर दो भगवान..


सोचा था कुछ कर पाऊँगा

जीवन खुशियों से भर पाऊँगा

स्मरण प्रतिक्षण तेरा मन मे

किया तेरा ही गुणगान

दे ज्ञानपुंज मिटा अज्ञान

अब तो अनुकंपा कर दो भगवान...


उठ न जाय विश्वास तुझसे 

खत्म न हो आस्था है मेरी

जग को सुनाओ तो हंसता है मुझे पे

अब तू भी न सुनेगा क्या व्यथा मेरी

चंद खुशी के पल दो वरदान 

अब तो अनुकंपा कर दो भगवान... 


पथ प्रदर्शक है जग का तू तो 

रहा फिर क्यूँ मुझसे अंजान 

शरण मे अपनी मुझको भी ले लो 

शांत कर मेरे मन का तूफान 

अब तो अनुकंपा कर दो भगवान

अब तो अनुकंपा कर दो भगवान |



Tuesday, January 25, 2022

अमर रहे हिंदी हमारी....


 'अ' से अनपढ़ से होकर शुरू, 'ज्ञ'से ज्ञानी बनाती हिन्दी

देवनागरी लिपि से लिपिबद्ध, भाषा सबको सिखाती हिन्दी

बहुत सरल बहुत भावपूर्ण है, ना अलग कथन और करनी है

जग की वैज्ञानिक भाषा है जो, संस्कृत इसकी जननी है


बहुत व्यापक व्याकरण है इसका, सुसज्जित शब्दों के सार से

एक एक महाकाव्य सुशोभित है जिसका, रस छंद अलंकार से 

ऐसी गरिमामय भाषा अपनी, निज राष्ट्र मे अस्तित्व खो रहीं 

वर्षों जिसका इतिहास पुराना, अपनों मे ही विकल्प हो रहीं 


अनेक बोलियां अनेक लहजे मे, बोली जाती है हिन्दी

चाहे कबीर की सधुक्खडी हो, या तुलसी की हो अवधी

सब मे खुद को ढाल कर, खुद का तेज न खोए हिन्दी

पाश्चात्य भाषाओं के अतिक्रमण से, मन ही मन मे रोए हिन्दी


अपनों के ठुकराने का, टीस भी सह जाती है हिन्दी

वशीभूत आंग्ल भाषियों के मध्य, ठुकराई सी रह जाती हिन्दी

देख अपनों का सौतेलापन, 'मीरा' 'निराला' को खोजे हिन्दी

कहीं हफ्तों उपवास मे है, तो कहीं कहीं रोज़े मे हिन्दी


देख हिन्दी भाषा की ऐसी हालत, मन कुंठित हो जाता है

अपनों ने प्रताड़ित हो किया, फिर कहाँ कोई यश पाता है

संविधान ने भी दिया नहीं, जिसे राष्ट्र भाषा का है स्थान 

फिर भी अमर रहे हिंदी हमारी, और हमारा हिन्दुस्तान 



Friday, January 14, 2022

कविता है अखबार नहीं



 मैं कवि नहीं एक शिल्पी हूं

अक्षर अक्षर गड़कर, एक आकर बनाता हूं

पाषाण हृदयों को भी पिघला दे, ऐसी अद्भुत रचना से

अपनी कविता को साकार बनाता हूँ


रस छंद अलंकार और दोहा सौरठा से

होकर परे एक मुक्तक, शब्दों का संसार बनाता हूं

दबे कुचले हो या भूले बिसरे, गड़े मुर्दों को उखाड़ कर 

अपनी लेखनी का आधार बनाता हूँ


कलम नहीं रुकती मेरी, ना हाथ कांपते हैं

जब जब दुशासन के चरित्र, मेरे शब्द नापते हैं 

ना दहशत खोखली धमकी की, ना डर को भांपते है 

ना मीठे बोल लुभाते, ना किसी दुशासन का नाम जापते है 


सदा सत्य लिखने को, कलम आतुर रहती है 

अडिग विचारों को लिये, कोरे कागज पे स्याही बहती है 

ना अधर्म का पक्ष लेती, ना मूक दर्शक बनी रहती 

बिना अंजाम की परवाह किए, सिर्फ सच ही कहती है 


देख हौसला कलम का, एक जोश नया आता है 

लिखता हूँ कडवा सच, शायद कम को तब भाता है 

कायरता मे लुफ्त बोल, हमसे ना लिखे जाएंगे 

जब जब कलम उठेगी, हम सच ही लिख पाएंगे 


कलम तुलसी की ताकत है, भाड़े की तलवार नहीं 

कलम आलोचना झेलती है, प्रबल प्रशंसा की हकदार नहीं 

सत्य लिखने पे उठे अंगुलियाँ, हमको कोई गुबार नहीं 

मीठे बोलो से भर दे पन्ने, कविता है अखबार नहीं 


Sunday, January 9, 2022

डंका बज गया चुनाव का


 

मुझे उसके लफ़्ज़ों मे, चापलूसी की बू आ रहीं है

बड़ा शोर मचा है लगता है, चुनाव तू आ रहीं है

कल तक जो राजा थे, अब खुद को सेवक दिखा रहे हैं 

भ्रमित करके जनमानस को, जाल नया बिछा रहे हैं 


जो मुड़कर नहीं आए सालों मे, वो रोज पधार रहे हैं

आलीशान महलों के मालिक, झुग्गियों मे दिन गुजार रहे हैं 

जिसने जनता की आशा तोड़ी, पलट कभी देखा नहीं 

जनता जनार्दन होती है जान, अब आस से निहार रहे हैं 


शोर सराबोर चारो तरफ, अपना प्रचार कर रहे हैं 

बहला फुसला कर जनता को, फिर व्यापार कर रहे हैं 

दे दो सत्ता आज हमे, कल होगा विकास 

डिजिटल नगदी के युग मे, सौदा उधार कर रहे हैं 



अब कलम के सहारे, जनता को जगाना होगा 

एक एक "मत" की कीमत, इनको समझाना होगा 

ये बरसाती मेढ़क है, सिर्फ बरसात मे ही आयेंगे 

अगर है हितैषी जनता के, हर मौसम आना होगा 


जो सुख दुःख मे साथ रहे, वही जननायक होगा 

वोट उसी को करेंगे अब, जो नेता के लायक होगा 

जो सिर्फ अपना उल्लू सीधा करे, उसकी जरूरत नहीं 

संसद‌ मे वही पहुंचेगा, जो बुरे वक्त मे भी सहायक होगा 


जो राग द्वेष से हो परे, न सत्ता लालच मन मे हो 

जिसका जाति धर्म से बढ़कर, राष्ट्र प्रेम जीवन मे हो 

जो ना बांटे दुनियां को, जाति-धर्म की राजनीति से 

एक देश एक है हम, जिसके हर कथन मे हो 


जागो जनता बेच ना आना, फिर से अपने वोट को 

काबिल को चुनकर आना, न देखना फेंके नोट को

लालच की माला पहन, उतर न जाना बोतल मे 

करके ख्वाब का सौदा, बिक न आना चुनावी दंगल मे 



Saturday, January 1, 2022

नव वर्ष मंगलमय हो



 पुराने गिले शिकवे को अलविदा बोल

 अपनी गलतियों से सबक लेकर 

 आखिरकार इस खत्म होते साल को

 हँस कर विदा कर दो सबकुछ भूलकर।


 बीते लम्हों को रुखसत कर दो

 स्वागत है नये साल मे 

 अतीत की बुरी यादों को दफनाकर 

 खुश रहना है अब हर हाल मे।


 शुभकामनाएं दें नूतन वर्ष की 

 कोई शिकवे गिले ना रह जाए कहीं।

 शांति और प्रेम के लिए प्रार्थना करें,

 दौलत या शोहरत के लिए नहीं।


 स्वास्थ्य और उन्नति की दुआ करें।

कोई राही मंजिल से पहले ना रुके

सभी अपने परायों की सलामती मांगे

जो अपना रास्ता हैं खो चुके


बहुत मिले पर कुछ बिछड़ भी गए

इस बीतते हुए वर्ष मे

यादों मे उनको जिंदा रखना हमेशा

भुला न देना उन्हें किसी हर्ष मे


नया साल है नयी नीतियां नए नए आयाम होंगे

नयी नयी परिस्थिति से होकर छूने नए मुकाम होंगे

"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया"

यही सहृदय मेरा जग को अब यही पैगाम होंगे

     💐..... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं......💐