Tuesday, March 23, 2021

"अमर सपूत"

*शहीद भगत सिंह एवं सभी अमर शहीदों के माँ के अंतिम शब्दों को बयां करके की कोशिश की है कृपया कुछ गलतियां हो गई हों तो माफ़ कीजिएगा*

ऐ धरती के अमर सपूत
तुझ बिन आँखे पथराई हैं
तू मातृभूमि पे हुआ निसार
असहनीय तेरी जुदाई है

परमवीर और अदम्य साहसी
तू सच्चा मातृभूमि का रखवाला था
माना जननी जन्मभूमि है सबसे पहले 
नौ माह मैंने भी तुझे पाला था

एक माँ की रक्षा के खातिर
एक माँ का सूना संसार किया
झूल गया हँसकर फंदे से
शोकाकुल अपना घर बार किया

एक वो दिन था जब आस सदा
आने की तेरी रहती थी
मिल के फिर तुझको सहलाऊँगी
इस आस मे दूरी सहती थी

अब गया तू ऐसे छोड़ मुझे
शायद कभी ना मिल पाऊँगी 
कल तक मेरा "बेटा" था तू 
अब "माँ" मैं तेरी कहलाऊँगी 

पहचान मुझे दे गया नई 
तू होकर अमर इतिहास मे 
धन्य मेरी कर गया कोख को 
सदा अमर रहेगा तू जनमानस के एहसास मे |
                                             *जय हिंद*
                                                   (हैरी) 

Sunday, March 21, 2021

*ऐसा मेरा पहाड़ है*

*ऐसा मेरा पहाड़ है*

चिडियों की चहचहाहट, कहीं भँवरो की गुंजन
कहीं कस्तूरी हिरण तो कहीं बाघ की दहाड़ है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

खेतों में लहराती हरियाली, कल-कल करती नदियाँ मतवाली
मंजुल झरनों से आती ठंडी ठंडी फुहार है 
हाँ ऐसा  मेरा पहाड़ है। 

ग्वालों की बंसी, बकरियां हिरनी सी 
महकती फूलों की घाटी तो औषधीय बयार है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

बर्फीले हिमाल, कहीं मखमली बुग्याल
परियों का वास, कहीं एकलिंग की शक्ति अपार है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

गंगा का उद्गम यहीं, बद्री और केदार यहीं 
शिव की नगरी हर की पौड़ी और यहीं हरिद्वार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
                     हैरी

Tuesday, March 16, 2021

मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है

मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
लोभ मोह सब मिथ्या है अछूता नहीं कोई फिर भी मगर

इर्ष्या द्वेष और छल कपट से भरा हुआ है डगर तेरा 
कांधे चार दो गज ज़मीं श्मशान ही अंतिम सफर तेरा 
फिर क्यों खुद को तू अपनों से अलग-थलग रहा है कर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर 

नेकी ही संग जाएगी जब कहर काल का बरसेगा 
मुह फ़ेर लिया था जिनसे मिलने को उनसे तरसेगा
भले अलग रहने लगा है खुश तू भी नहीं है पर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर 


बन कलाम और गाँधी सा ग़र धर्म की बेड़ी तोड़नी है 
दो दिन की जिंदगी मे ग़र अमिट छाप जो छोड़नी है 
पुण्य कमा जो पहुंचाएंगे तुझको तेरे रब के दर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
                                                    ...... हैरी 

Thursday, March 11, 2021

कागज कलम और एक शांत कोना...

धरती नाप ली नापने को 
अंतरिक्ष मे पड़े आसमान बहुत है
"पंख"थोड़े कमजोर पड़ गए 
हौसलों मे अब भी उड़ान बहुत है

चापलूसी से जीत लेंगे जग को
सोचने वाले नादां बहुत हैं
खुद को अमर समझने वाले 
भूल गए श्मशान बहुत हैं

मन वचन कर्म से ऊंचे 
दुनियां मे अब भी इंसान बहुत है 
सबकुछ बक्सा है खुदा ने
बन्दे लेकिन हैरान बहुत है 

लाखों की माया है फिर भी 
दिल मे छुपाये अरमान बहुत है 
पत्थर को दिया दर्जा खुदा का 
खुले घूम रहे शैतान बहुत हैं 

कागज कलम और एक शांत कोना 
लिखने को पूरा जहान बहुत है 
दुआएँ अपनों की रहती है संग 
फिर भी बेचारा "हैरी" परेशान बहुत है 
                                        (हैरी) 

Monday, March 8, 2021

मैं गैर था उसके लिये गैर ही रह गया...

बनाया था जो मैंने सपनों का महल ढह गया
मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया

बहुत जद्दोजहद की उसे पाने को लकीरो से 
दिल ऐसा टूटा लहू आँखों से बह गया 

मेरे ख्वाब याद सांसो तक मे समाया था वो.. 
पल भर में ही बेवजह अलविदा कह गया 

लड़ रहा था खुदा तक से भी जिसे पाने के लिए 
खुदा कसम उसी के लिए सबकुछ चुपचाप सह गया 

कड़वी मगर एक सच्चाई से वाकिफ कर गया वो 
वर्षों तक वफा की थी मैंने और अकेला रह गया 

मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया..... 
                                            (हैरी)

महिला दिवस (women's day)

तुम 'सीता' हो तुम 'मीरा' हो 
तुम 'दिनकर' की रश्मिरथी
तुम मिशन अंतरिक्ष की हो 'कल्पना' 
तुम 'त्रिकाल' की हो 'सती' 

तुम बलिदान हो 'पन्नाधाई' का 
तुम अहिल्या का 'अभिशाप' हो 
तुझमे हट है 'सावित्री' सा 
तुम 'लता' के मधुर 'आलाप' हो 

तुम विश्व पटल पर छायी 'इंदिरा'
तुम सुखोई उड़ाती एक नारी हो 
तुम रौद्र रूप हो काली का और 
तुम कलियों से भी प्यारी हो 

तुम दंगल की 'गीता' 'बबीता'
तुम स्वर्ण पदक विजेता 'हिमा दास' हो 
तुझमे फूलों सी अभिलाषा 
ना जाने क्यू फिर भी उदास हो 

तुम ज्ञान विज्ञान मे हो अग्रणी 
तुम सरहद पे परचम लहराना भी जानती हो 
तुम कहीं सिहासन पे हो विराजित 
कहीं धूल मे खाक भी छानती हो 

तेरा हर पहलू को समझे 
किसी प्राणी मात्र मे इतना ना ज्ञान है 
स्त्री तुझे शत शत नमन और 
तेरे हर रूप को मेरा प्रणाम है 
                        ................ (हैरी)