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Thursday, October 26, 2023

कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है..



कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है

अर्द्ध मूर्छित है मगर बेहोश नहीं है

जो चाहे जिस भाषा शैली में गड़े 

व्यंगात्मक हो सकती है मगर रूपोश नहीं है 


कोई तारीफ लिखे कोई नाकामियाँ 

कोई व्याकुलता कोई संतोष लिखे 

कोई अमन शांति का पैगाम दे  

कोई उबलते जज्बातों का आक्रोश लिखे 


कुछ लिखते हैं अनकहे जज्बातों को 

कुछ अपने व्यंग्य का सैलाब लिखे 

कुछ धरती के मनोरम सौंदर्य का करते वर्णन 

कुछ कटु वर्णो से तेजाब लिखे 


कुछ प्रेम का सुंदर आभास लिखते हैं 

कुछ दबे कुचले लोगों की आवाज लिखे 

कुछ लिखते हैं खामोशी आपातकाल की 

कुछ 1857 की क्रांति का आगाज लिखे 


हर कोई अपने तरीके से तोड़ मरोड़ कर 

नए रचनाओं से नए शब्दों को आयाम देते हैं 

कोई फैलाते है जहर दुनियाँ मे 

कोई हर ओर शांति का पैगाम देते हैं 


बहरे है लोग भले गूंगी सरकार चाहे 

जंग जारी है कवि खामोश नहीं है 

कितनी कर लो अवहेलना विरोध मे 

कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है ||

बरदोश = छुपी हुयी 

रूपोंश = भागा हुआ, 




Friday, January 14, 2022

कविता है अखबार नहीं



 मैं कवि नहीं एक शिल्पी हूं

अक्षर अक्षर गड़कर, एक आकर बनाता हूं

पाषाण हृदयों को भी पिघला दे, ऐसी अद्भुत रचना से

अपनी कविता को साकार बनाता हूँ


रस छंद अलंकार और दोहा सौरठा से

होकर परे एक मुक्तक, शब्दों का संसार बनाता हूं

दबे कुचले हो या भूले बिसरे, गड़े मुर्दों को उखाड़ कर 

अपनी लेखनी का आधार बनाता हूँ


कलम नहीं रुकती मेरी, ना हाथ कांपते हैं

जब जब दुशासन के चरित्र, मेरे शब्द नापते हैं 

ना दहशत खोखली धमकी की, ना डर को भांपते है 

ना मीठे बोल लुभाते, ना किसी दुशासन का नाम जापते है 


सदा सत्य लिखने को, कलम आतुर रहती है 

अडिग विचारों को लिये, कोरे कागज पे स्याही बहती है 

ना अधर्म का पक्ष लेती, ना मूक दर्शक बनी रहती 

बिना अंजाम की परवाह किए, सिर्फ सच ही कहती है 


देख हौसला कलम का, एक जोश नया आता है 

लिखता हूँ कडवा सच, शायद कम को तब भाता है 

कायरता मे लुफ्त बोल, हमसे ना लिखे जाएंगे 

जब जब कलम उठेगी, हम सच ही लिख पाएंगे 


कलम तुलसी की ताकत है, भाड़े की तलवार नहीं 

कलम आलोचना झेलती है, प्रबल प्रशंसा की हकदार नहीं 

सत्य लिखने पे उठे अंगुलियाँ, हमको कोई गुबार नहीं 

मीठे बोलो से भर दे पन्ने, कविता है अखबार नहीं