Showing posts with label दर्द. Show all posts
Showing posts with label दर्द. Show all posts

Thursday, September 9, 2021

जंग या जिंदगी?

 


हर  युद्ध के बाद

किसी को तो सफाई करनी ही है।

हालत नहीं कर सकते 

आखिर खुद को तो सही करो।

 

किसी को तो ढकेलना ही है 

 मलवा सड़क के किनारों तक,

 तभी तो लाश से भरी गाड़ियाँ

 आगे बढ़ सकती हैं ।


 किसी का पैर तो फंसना ही है 

 कीचड़ और राख में,

 टूटी कुर्सियाँ और खून से लथपथ कपड़े 

 है एक और नए बटवारे के फ़िराक़ मे 


 किसी को तो गढ़ना होगा बुनियाद मे 

 दीवार खड़ी करने के लिए,

 किसी को रोशनदान बनकर,

 शुद्ध हवा को भीतर लाना होगा।


 तत्काल बना यह नहीं है,

 वर्षों से सुलगती आग है ये 

 सारे हथियार फिर से तैयार हैं

 एक और युद्ध के लिए।


हमें फिर से आवश्यकता होगी

एक जुट होकर आगे आने की।

गृह क्लेश से विश्व युद्ध तक रोक कर 

बिखरते शांति को संजोने की।


कैसे, हाथ में छड़ी,

अभी भी याद है कि वह कैसा था।

शांति अहिंसा दो हथियारों से 

क्रूर शासन का तख्त हिलाता था।


आस्तीनों मे 

अभी भी कई साँप पल रहे हैं 

जंग लगे हो कारतूसों मे भले 

जाबांज हौसलों से ही शेषनाग के फन कुचल रहे है।


घास में जो उग आये हैं 

फिर से रक्तरंजित कुछ कोंपले 

किसी को तो बढ़ाना ही होगा

जर जर टूटते हौसले|

                       (हैरी)