Wednesday, October 26, 2022

दोगलापन से इन्कार है....


 देश में  निश्चल और निष्कपट राज सबको चाहिए

जो 70 वर्षो से मिला नहीं वो आज सबको चाहिए

कैसी दोहरी मानसिकता ले के जी रहे हैं लोग 

जाने क्यूँ नफ़रतों का जहर पी रहे हैं लोग ?


क्यूँ नहीं पूछता है उनसे कोई आज भी  

डुबो दी देश की नैया और 70 वर्ष किया राज भी 

आजकल जो ये बात हिन्दू हित की हो रहीं 

गुर्दे छिल रहे है जहाँ के, एक कौम दिन रात रो रहीं 


होके अपनी धरती के भी, अत्याचार सहे मुगलों के 

झेला जजिया कर भी और हुक्म माने  पागलों के 

सभी प्रसन्न थे जब हिन्दू घर मे था पिट रहा 

मंदिरों को थे तोड़ रहे और सनातन था मिट रहा !?


थे लुटेरे वो सभी लूटने तो आए थे

घर के जय चंदो के बदौलत वो भारतभूमि मे टिक पाए थे ।

आज इतिहास जिनका झूठा गुणगान करता है

 बादशाह महान वो हत्यारे खुद को कहते आये थे ।

 

 कैद करके  बाप को भाई का सीना चीर कर 

वो सुल्तान महान  कैसे जो हत्या करके बैठा तासीर पर 

पवित्र मंदिरों को लुटा जिसने बस्तियाँ उजाड़ दी 

गलत इतिहास पढ़ा के अब तक कई पुश्तें  बिगाड़ दी 


ना कोई गलत पढ़ेगा अब; ना लुटेरों का बखान होगा 

अब शिवा जी, महाराणा और पृथ्वीराज का गुणगान होगा 

कैसे गोरा बादल ने अकेले मुगलिया सल्तनत हिला दी 

शीश कटा कर उनके केवल धड़ ने जीत ने दिला दी 


सब ही थे दगाबाज, फरेब था उनके खून में,

इंसानियत का कत्ल करते थे वो जड़ जुनून में 

अय्याशी और मक्कारी में उनका भाग्य तय हुआ

फिर देश बचाने हेतु  सम्राट चन्द्रगुप्त का उदय हुआ 


जब सह रहा था सितम हिन्दू ,सबको खुशी थी जीने में 

अब अपना हक मागने लगे तो साँप लगे लोटने सीने मे 

बात होती  मोबलॉन्चिंग पर, कश्मीरी हिन्दु पे आँख बंद हैं 

बस यही दोगलापन तुम्हारा हमको वर्षो से ना पसंद है



Saturday, October 8, 2022

संक्षिप्त रामलीला

अयोध्या के सम्राट और, दशरथ के सपूत भी
अपने ही राज्य मेँ अब, ढूँढते खुद का वजूद भी
कौशल्या के लाडले, गुरु विश्वामित्र के प्रिय भी 
वेदों के प्रकांड पंडित, और सबसे बड़े क्षत्रिय भी

युग पुरुष हमारे और, पुरुषोत्तम सभी काम मेँ 
पवित्र हर कदम मेँ और, सर्वश्रेष्ठ चारों धाम मेँ 
खुद को इंसान बना कर, प्रभु आए एक नाम मेँ 
अयोध्या को अपना राजा, दिखता था श्रीराम मेँ 

चारो भाइयों के अग्रज, तीनों माताओं के चहेते भी 
राज्य के उत्तराधिकारी, सब गुरुजनों के पसंद वही 
बाल्यावस्था मे ही, गुरु विश्वामित्र के आश्रम गए
शस्त्र-शास्त्र का अध्ययन कर, प्रभु और भी सक्षम हुए

राक्षसों का वध किया, अनुज लक्ष्मण के साथ मेँ 
गुरु विश्वामित्र के आशीर्वाद से, शिव धनुष तोड़ा बाद मेँ 
प्रत्यंचा चढ़ाकर धनुष की, गुरु का मान रख लिया 
स्वयंवर को जीत कर, जनकनन्दिनी संग विवाह किया 

माता सीता संग प्रभु श्री, जब लौट आए नगर मेँ 
सम्पूर्ण धरा प्रसन्न थी, खुशियाँ हर एक घर मेँ 
देवता उन्मुक्त थे, नम आँखें पलके भिगो रहीं 
अयोध्या नगरी मे जब, राज्याभिषेक की थी तैयारी हो रहीं 

पर प्रकृति को कहा मंजूर था, उसने खुशियाँ का दमन किया 
पिता के वचनों का रखने मान, प्रभु ने वन को गमन किया 
कैकयी के हठ ने आज, त्रिया-हठ की सीमा लाँघी थी 
वनवास के साथ प्रभु श्रीराम की, कई परीक्षा बाकी थी 

श्रीराम ने अयोध्या छोड़ी, दशरथ के तन से प्राण गए 
वचनों के प्रतिबंधित श्रीहरि, पिता का न अग्नि संस्कार कर सके 
दोहरी शोक की खबर,जब अनुज भरत के संज्ञान हुई 
तोड़ दिया निज माँ से रिश्ता, बोला तुमसे गलती ये महान हुई 

वन मे रहकर भी प्रभु ने, कई भक्तों का उद्धार किया 
केवट से मित्रता करके उसकी, जीवन नय्या पार किया 
शबरी के झूठे बेर खाए, अहिल्या का तारणहार किया 
बाली का वध करके, सुग्रीव का सुखी संसार किया 

सब के पालनहार प्रभु, खुद सिया वियोग में डूबे थे 
करने रावण का वध स्वंय, प्रभु अब रण मे कूदे थे 
लिखकर श्रीराम सील पर, नल नील ने सेतु गठन किया 
पवनपुत्र हनुमान ने, सोने की लंका का दहन किया 

युद्ध मे कई दानव मरे, कुछ पल लक्ष्मण भी मूर्छित हुए 
हनुमान संजीवनी बूटी लाए, फिर से लखन जीवित हुए 
युद्ध में अब रावण का, वध होना सुनिश्चित था 
प्रभु के हाथों होगा लंकेश का तारण, ये भी तो निश्चित था 

करके रावण की लीला समाप्त, विभीषण को लंका राज्य दिया 
एक अर्से के बाद प्रभु ने, जगत जननी के मुख का दरस किया 
लंका फतेह के साथ ही, 14 वर्षो का वनवास भी टूटा था 
प्रभु दर्शन को फिर आज,अयोध्या मे जन सैलाब फूटा था 

सीता व अनुज लखन संग,प्रभु राम का आगमन हुआ 
खुशी की लहर दौड़ी अयोध्या मे, जगह जगह हवन हुआ 
राज्याभिषेक है श्रीराम का, फिर से खुशियाँ आने वाली है 
लौटने की खुशी में पुरुषोत्तम श्रीराम की, आज हर घर मे दिवाली है