मैं कब कहाँ क्या लिख दूँ
इस बात से खुद भी बेजार हूँ
मैं किसी के लिए बेशकीमती
किसी के लिए बेकार हूँ
समझ सका जो अब तक मुझको
कायल मेरी छवि का है
मुझमे अंधकार है अमावस सा
मुझमे तेज रवि का है
अब कैसे पलट दूँ परिस्थितियों को
हर रोज मुश्किलों से होता दो चार हूँ
मैं किसी के लिए ध्रुव तारा सा
किसी के लिए बेकार हूँ
मैं निराकार मे भी आकर भर दूँ
मैं सैलाब से लड़ता किनारा हूँ
मैं सकल परिस्थिति मे खुद का भी नहीं
मैं संकट में सदैव साथ तुम्हारा हूं
मैं रेगिस्तान मे फूल उगाने को
हर पल रहता तैयार हूँ
मैं किसी के लिए आखिरी उम्मीद
किसी के लिए बेकार हूँ
मैं भेद नहीं करता धर्मों मे
पर शंख, तिलक मेरे लिए अभिमान है
मैं भक्त भले प्रभु श्रीराम का
पर एक मेरे लिए गीता और कुरान है
मैं छेड़छाड़ नहीं करता संविधान से
पर हक के लिए लड़ता लगातार हूँ
मैं किसी के लिए सच्चा नागरिक
किसी के लिए बेकार हूँ