मैं कवि नहीं एक शिल्पी हूं
अक्षर अक्षर गड़कर, एक आकर बनाता हूं
पाषाण हृदयों को भी पिघला दे, ऐसी अद्भुत रचना से
अपनी कविता को साकार बनाता हूँ
रस छंद अलंकार और दोहा सौरठा से
होकर परे एक मुक्तक, शब्दों का संसार बनाता हूं
दबे कुचले हो या भूले बिसरे, गड़े मुर्दों को उखाड़ कर
अपनी लेखनी का आधार बनाता हूँ
कलम नहीं रुकती मेरी, ना हाथ कांपते हैं
जब जब दुशासन के चरित्र, मेरे शब्द नापते हैं
ना दहशत खोखली धमकी की, ना डर को भांपते है
ना मीठे बोल लुभाते, ना किसी दुशासन का नाम जापते है
सदा सत्य लिखने को, कलम आतुर रहती है
अडिग विचारों को लिये, कोरे कागज पे स्याही बहती है
ना अधर्म का पक्ष लेती, ना मूक दर्शक बनी रहती
बिना अंजाम की परवाह किए, सिर्फ सच ही कहती है
देख हौसला कलम का, एक जोश नया आता है
लिखता हूँ कडवा सच, शायद कम को तब भाता है
कायरता मे लुफ्त बोल, हमसे ना लिखे जाएंगे
जब जब कलम उठेगी, हम सच ही लिख पाएंगे
कलम तुलसी की ताकत है, भाड़े की तलवार नहीं
कलम आलोचना झेलती है, प्रबल प्रशंसा की हकदार नहीं
सत्य लिखने पे उठे अंगुलियाँ, हमको कोई गुबार नहीं
मीठे बोलो से भर दे पन्ने, कविता है अखबार नहीं