सफलता के पैमाने पर
सदैव बना रहा फिर भी
अपनों के निशाने पर
न कष्ट किसी को दिया कभी
ना रात गुजारी मैखाने पर
ना छीना निवाला किसी मजलूम का
फिर क्यूँ न उम्र गुज़री ठिकाने पर
छिनता चला गया हर शख्स मुझसे
रूह तक मर चुकी अब उनके जाने पर
मैंने हर रिश्ता निभाया पाक साफ नियत से
फिर क्यूँ हर कोई आया आजमाने पर
कर्म और भाग्य भी विरोधी बने
नींद भी बैठी रहीं सिरहाने पर
देव दृष्टि से भी रहे वंचित सदा
वक़्त भी आमदा रहा सितम ढाने पर
सबकुछ था पर लगता है अब कुछ भी नहीं
मन व्याकुल होता है जश्न मनाने पर
एक दौर था हम भी खुश रहते थे बहुत
अब डर लगता है घर जाने पर ||