लूट की कमाई है बेईमानों के गल्ले मे
भूख से कराहते गरीब अपनी झोपड़ी में
सारी दौलत धरी पडी है अमीरों के पल्ले मे
भूख की आग से अधजला भिखारी है
वस्त्र विहीन पडी अर्द्ध मूर्छित नारी है
खिलोनों वाले हाथो मे तगार भरा तसला है
जाति धर्म आज भी सबसे बड़ी बिमारी है
एक है वो जो कुछ खरोंच से हैरान है
किसी की तपती ईट के भट्टे में जान है
किसी की तो मिटती नहीं भूख दौलत की कभी
कोई सौ रुपये के लिए भी यहां बहुत परेशान हैं
मजबूर हर आदमी जर जर हालात है
प्यादे भी देते कभी वजीर को मात है
सिकंदर कितने ही समा गए इस मिट्टी मे
फिर भी सर्वेसर्वा समझे खुद को एक जमात है
गहराई नदी नालों का तो नाप लिया इंसान ने
खुद की गहराई नापने का ना कोई औजार है
हर चीज करीब ले आयी विज्ञान की नई खोज ने
बस अपनों को करीब रखने को ना कोई तैयार है
मखमली बिस्तर के लिए नींद कहाँ से लाओगे
मजलूम और बेसहारों को कब तक सताओगे
अंत मे सबकुछ यहां धरा का धरा रह जाना है
कल खुद ही खुद के कर्मों पे तुम बहुत पछताओगे ||