दुनिया ज़ालिम है —
ये कोई शायर की शेख़ी नहीं,
बल्कि रोज़ सुबह की ख़बर है,
जिसे अख़बार भी छापते-छापते थक चुका है।
यहां आँसू ट्रेंड नहीं करते,
दर्द को 'डिज़ाइन' किया जाता है,
और सच्चाई?
वो तो शायद किसी पुरानी किताब के पन्नों में
धूल फाँक रही है।
यहां रिश्ते
व्हाट्सऐप के आख़िरी देखे गए समय जितने सच्चे हैं,
और भरोसा —
पासवर्ड की तरह, हर महीने बदलता रहता है।
बच्चे सपनों में खिलौने नहीं,
रखते हैं नौकरी की चिंता,
और बूढ़े,
यादों की गर्मी में ज़िंदा रहने की कोशिश करते हैं।
दुनिया ज़ालिम है,
क्योंकि यहां सवाल पूछना गुनाह है,
और खामोशी —
इंसान की सबसे क़ीमती पूंजी।
पर फिर भी,
हम हर सुबह उठते हैं,
चेहरे पे उम्मीद का मास्क लगाते हैं,
और चल पड़ते हैं —
इस ज़ालिम दुनिया को थोड़ा बेहतर बनाने की कोशिश में।|
"कविता कोई पेशा नहीं है, यह जीवन का एक तरीका है। यह एक खाली टोकरी है; आप इसमें अपना जीवन लगाते हैं और उसमें से कुछ बनाते हैं।"
Tuesday, May 27, 2025
दुनिया जालिम है....
Tuesday, February 18, 2025
फिर श्रृंगार नहीं होता......
बिन शब्दों का कभी भी
वाक्य विस्तार नहीं होता
जैसे बिन खेवनहार के
भव सागर पार नहीं होता
ऊँचा कुल या ऊँची पदवी से
बिन रिश्ते व्यापार नहीं होता
गाँठ पड़े हुये रिश्तों में तो
पूर्ण अधिकार नहीं होता
झूठ, फरेब या लालच का
सदैव जय-जयकार नहीं होता
सच कष्टदायी जरूर होता है
मगर परिणाम बेकार नहीं होता
मन दुःखी और तन पीड़ित हो
फिर श्रृंगार नहीं होता
छालिया कितना भी शातिर हो
छल हर बार नहीं होता
पहली साजिश से सबक
अंतिम प्रहार नहीं होता
मात मिली हो जिस रिश्ते से
फिर उस रिश्ते को मन तैयार नहीं होता
कवि की कपोल कल्पनाओं में
पूर्ण सच्चाई का आधार नहीं होता
हर बात लिखी हो जो कोरे कागज पे
वैसा ही संसार नहीं होता ||
Wednesday, February 21, 2024
पर चूहे से भी डरती है..
कलियों से बातेँ करती है
शेरनी सी छवि रखती है वो
पर, चूहे से भी डरती है
वाचाल है सबकुछ उगल देती
बातों को मन मे न रख पाती है
खुद ही खुद की खिल्ली उड़ाती
और जी भरकर हंस भी जाती है
अभी तो दुनियां देखी ही है
तजुर्बा फिर भी तमाम है
परिपूर्ण के करीब है अपने कार्यो मे
फिर भी बातों से लगती नादां है
जुड़ रहा उसकी जिंदगी मे
एक नया अध्याय है
वो परेशानी मे भी हँसा देती सबको
वो खुशियों की पर्याय है
खुशियाँ मिले तमाम उसको
घर परिवार मे भी खुशहाली हो
सपने उसके हो सब पूरे
वो परिवार की अंशुमाली हो ||
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इस वीभत्स कृत्य का कोई सार नहीं होगा इससे बुरा शायद कोई व्यवहार नहीं होगा तुम्हें मौत के घाट उतार दिया कुछ नीच शैतानों ने सिर्फ मोमबत्ती ...
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हया भी कोई चीज होती है अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है ...