मैं कवि नहीं एक शिल्पी हूं
अक्षर अक्षर गड़कर, एक आकर बनाता हूं
पाषाण हृदयों को भी पिघला दे, ऐसी अद्भुत रचना से
अपनी कविता को साकार बनाता हूँ
रस छंद अलंकार और दोहा सौरठा से
होकर परे एक मुक्तक, शब्दों का संसार बनाता हूं
दबे कुचले हो या भूले बिसरे, गड़े मुर्दों को उखाड़ कर
अपनी लेखनी का आधार बनाता हूँ
कलम नहीं रुकती मेरी, ना हाथ कांपते हैं
जब जब दुशासन के चरित्र, मेरे शब्द नापते हैं
ना दहशत खोखली धमकी की, ना डर को भांपते है
ना मीठे बोल लुभाते, ना किसी दुशासन का नाम जापते है
सदा सत्य लिखने को, कलम आतुर रहती है
अडिग विचारों को लिये, कोरे कागज पे स्याही बहती है
ना अधर्म का पक्ष लेती, ना मूक दर्शक बनी रहती
बिना अंजाम की परवाह किए, सिर्फ सच ही कहती है
देख हौसला कलम का, एक जोश नया आता है
लिखता हूँ कडवा सच, शायद कम को तब भाता है
कायरता मे लुफ्त बोल, हमसे ना लिखे जाएंगे
जब जब कलम उठेगी, हम सच ही लिख पाएंगे
कलम तुलसी की ताकत है, भाड़े की तलवार नहीं
कलम आलोचना झेलती है, प्रबल प्रशंसा की हकदार नहीं
सत्य लिखने पे उठे अंगुलियाँ, हमको कोई गुबार नहीं
मीठे बोलो से भर दे पन्ने, कविता है अखबार नहीं
👍
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteThank you
ReplyDeleteकलम नहीं रुकती मेरी, ना हाथ कांपते हैं
ReplyDeleteजब जब दुशासन के चरित्र, मेरे शब्द नापते हैं
ना दहशत खोखली धमकी की, ना डर को भांपते है
ना मीठे बोल लुभाते, ना किसी दुशासन का नाम जापते है
बहुत ही उम्दा व शानदार सृजन!
आपका बहुत-बहुत आभार Mam
ReplyDeleteमीठे बोलो से भर दे पन्ने, कविता है अखबार नहीं
Deleteआपने जो ये बात कही है मुझे ये सही नहीं लग रही मेरा मतलब है ये तुलना क्योंकि अखबार में तो सिर्फ मीठें बोल नहीं होतें उसमें तो बहुत ही कम अच्छी खबरें मिलती है बाकी खून खरबा और भी बहुत कुछ! पर कविता तो प्रेम भाव या प्रकृतिक सुंदरता का वर्णन करके सिर्फ खूबसूरत शब्दों से ही तैयार किया जा सकता है!पर अखबार नहीं! हाँ सच्चाई पर आधारित कविता कड़वी होती है! पर मुझे लगता है ये तुलना ठीक नहीं है! ये मैं अपने नजरिये से कह रहीं हूँ पर हो सकता है आपका नजरिया कुछ और रहा जो आपने ऐसा लिखा!
मीठे बोलों से भर दे पन्ने का आशय है कि किसी एक पक्ष के बारे मे ही बात करें या जो शक्तिशाली हो सिर्फ उसका गुणगान करने से है जो कि आज कल के मीडिया या प्रिंट मीडिया मे हो रहा है, मीठे बोल चापलूसी का भी प्रतीक हैं जो सिर्फ अपने फायदे के लिए मीडिया प्रयोग करनी है| कितना सच दिखाते हैं ये मीडिया वाले आज कल, बांकी आपकी विशेष टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार मनीषा जी
DeleteNice one daaaa
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका
Deleteमैं कवि नहीं एक शिल्पी हूं
ReplyDeleteअक्षर अक्षर गड़कर, एक आकर बनाता हूं
पाषाण हृदयों को भी पिघला दे, ऐसी अद्भुत रचना से
अपने कविता को साकार बनाता हूँ...
बहुत खूब !! बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
बहुत-बहुत आभार आपका
Deleteअपने कविता की जगह अपनी कविता होना चाहिये
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
आपका बहुत-बहुत आभार गुरुजी
Deleteबहुत-बहुत आभार sir सही करवाने के लिए 🙏
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Deleteप्रिय हरीश जी, कविता आत्मा की सहज अभिव्यक्ति है जनमानस से पहले खुद को आनंदित या उद्वेलित करती है। अच्छा लिखा आपने कविता की महिमा पर। हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteधन्यवाद MAM
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