Sunday, December 12, 2021

आस अभी भी कश्मीर की..


 क्यों अपना ही घर हमें, छोड़कर भागना पड़ा

हुक्मरान थे नींद में, हमें जागना पड़ा

पुस्तैनी जमीन छोड़ी, सपनों का मकां गया

किलकारियों भरा आंगन, किसे पूछूँ कहांँ गया


 क्या कसूर था हमारा, क्यों जो बेदखल किया

बेबस बेकसूरों का, किस जुर्म में कतल किया

रो रहीं बहू बेटियाँ, बुजुर्ग सब हताश थे

न पनाह अपनत्व की, अपने भी लाश लाश थे


कैसे बचाई जान हमने, रात के अंधेरों में

चीखती कराहें कह रही, कश्मीर के गधेरों में

सत् सनातन के राही, करते थे शिव का ध्यान सदा 

नि:शस्त्र शास्त्र का हनन हुआ, इस बात का सबको पता 



फिर भी सभी खामोश हैं, ना हलचल कोई सदन में है 

शरणागत के भांति फिरते, अब तलक हम वतन में हैं 

 हक हमें भी अपना चाहिए, जमीं अपनी कश्मीर में 

बहुत सह लिए ज़ख़्म, बेवजह आए मेरे तकदीर में


अब कोई तो निर्णय करो, फैसले जो हक मे हो

मुस्कान सिर्फ चेहरे पे नहीं, खुशी हर रग रग मे हो

फिर से वही घर चाहिए, और वहीं बसेरा हो

अब नफरतों की शाम ढ़ले, अमन का सवेरा हो

                       

                       ....... हैरी 


34 comments:

  1. Kashmir se nikale jane ka dard khub baya kiya hai.. Bahut khub

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 14 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. कशमीरी पंडितों के दर्द को बयां करती हृदयस्पर्शि रचना

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  4. वाह ..कश्मीरी पंडितों के अन्तर्मन में उठते हृदयस्पर्शी भावों को कहती भावभरी कविता ।

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  5. दिल से निकलती एक आह!
    बेहतरीन सृजन।
    सादर

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  6. बहुत बढ़िया भाई

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  7. पावन होली कीशुभकामनाएं......
    आप की लिखी.....
    इस खूबसूरत पोस्ट को......
    दिनांक 20/03/2022 को
    पांच लिंको का आनंद पर लिंक किया गया है। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद।

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  8. ऐसा ही हो ।
    तरल अनुभूति ।
    बेबाक अभिव्यक्ति ।
    बस बहुत हुआ ।
    अब तो लग जाए दुआ ।

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