खोने को कुछ नहीं, पाने को पूरा आसमान पड़ा
व्याकुल विचलित एक शख्स, असमंजस में जो खड़ा
दोहरी मनोदशा पे शायद, हो रहा सवार है
कोई और नहीं साहिब, एक पढ़ा लिखा बेरोजगार है
एक उथल पुथल सोच में, निकला वो खुद की खोज में
रात रात भर जाग कर, दब चुका सपनों के बोझ में
भँवर से तो निकल आया, अब नौका पड़ी मझधार है
असहाय वो, देश का भविष्य, पढ़ा लिखा बेरोजगार है
मंजिल पाने को आतुर,अवसरों से कोसों दूर ...
आज नालायक हो गया, जो कल तक था घर का गुरूर
माथे पे शिकन की लकीर लिए, हालातों से लाचार है
किस्मत और दुनियाँ से लड़ता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है
कागज की रद्दी सी अब, लगती दर्जनों डिग्रियाँ...
मंदिर मस्जिद में व्यस्त देश, रोजगार की किसे फिक्र यहाँ
वक्त का साथ भी छूटा सा लगे, उम्मींदों का हारा परिवार है
निराशा मे आशा को ढूंढता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है
मनोबल टूटा कई दफा, अपनों के तिरस्कार से
निकम्मा, निठल्ला, क्या कुछ न सुना, सरे आम रिश्तेदार से।
फिर भी हौसले बांध, निसहाय संघर्षरत, तैयार है...
डगमगाते कदमों को संभालता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है।
चाचा फूफा आयोग में नहीं, जीजा कोई न किसी विभाग में,
काबिलियत कम पड़ जाती, सिर चढ़ती भाई-भतीजावाद में...
कैसे कहूं क्या कुछ सहता है,ये तो बस एक सार है,
फिर भी सफलता की आश लगाए, हर पढ़ा लिखा बेरोजगार है।
Wonderful... Appreciable
ReplyDeleteThank you so much
Deleteशख्स नालायक निसहाय । सुन्दर सृजन।
DeleteThank you so much sir correction karwane के लिए 🙏
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteAwsm👍
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteThank you
ReplyDelete#बस moKe iNTazAr fil dekho pDa liKHa bErOjGar.
ReplyDeleteसही कहा... मौका ही चाहिए बस
DeleteAwesome
ReplyDeleteThank you so much dear
DeleteWow da very nice
ReplyDeleteThank you bro
Deleteप्रिय हरीश, एक बेरोजगार युवा के लिए समर्पण भाव से की गई शिक्षा उसके सपनों को ऊँची उड़ान देने की उम्मीद जगाती है।पर,शिक्षा के बाद रोजगार के लिए अन्तहीन संघर्ष शुरु हो जाता है।खासकर सरकारी नौकरी के लिए मारामारी ,आज के शिक्षित युवाओं के लिए भीषण मानसिक यंत्रणा का रूप ले चुकी।एक अनार सौ बीमार के साथ आरक्षण,भाई भतीजावाद और घूस देकर नौकरी प्राप्त करने के अवैध तरीकों ने योग्य युवाओं के लिए रोजगार के मौके कहीं कम कर दिए हैं।आपने अपनी रचना में इस विषय पर विहंगम दृष्टिपात कर, सरल,सहज ढंग से मार्मिक अभिव्यक्ति दी है। शिक्षा के बाद नौकरी ना मिलने से अवसाद झेल रहे युवाओं का दर्द छलका है रचना में।लयबद्धता से रचना के सौंदर्य में बढ़ोतरी हुई है।सुन्दर लेखन के लिए बधाई और शुभकामनाएं आपको।यूँ ही लिखते रहिये।
ReplyDeleteआदरणीय रेणु जी, इन सभी मानसिक यंत्रणा से जूझ कर ही स्वयं की भावनाओं को पन्नों पे उतारने की कोशिश की है, आपके द्वारा लिखे गए एक एक शब्द सत्य है, बांकी कविता को पढ़ने एवं सही भावार्थ समझने और लेखनी की प्रसंसा करने के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार
Deleteमनोबल टूटा कई दफा, अपनों के तिरस्कार से
ReplyDeleteनिकम्मा, निठल्ला, क्या कुछ न सुना, सरे आम रिश्तेदार से।
फिर भी हौसले बांध, निसहाय संघर्षरत, तैयार है...
डगमगाते कदमों को संभालता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है।////
वाह !👌👌👌👌👌👌
शुक्रिया Mam 🙏
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (०५ -०३ -२०२२ ) को
'मान महफिल में बढ़ाना सीखिए'((चर्चा अंक -४३६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका बहुत-बहुत आभार Mam मेरे कविता को आज के चर्चा अंक मे स्थान देने के लिए
DeleteWonderful lines
ReplyDeleteशुक्रिया...
DeleteBestest
ReplyDeleteThank you so much
DeleteNice 💜
ReplyDeleteThank you
Delete👏👏👏👏👏
ReplyDeleteThank you
Deleteबहुत ही बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार 🙏
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