बोतलों में क्यों बिक रहा पानी
क्यों बैसाखी के भरोसे हैं दफ्तर,
हताश निराश भटक रही है जवानी...
चश्मे का नंबर बढ़ा हुआ है
घुटने का दर्द करता बयां कहानी
पके बालों से चल रही सरकारें
बेरोजगार बैठीं है युवा जवानी
चंद मिनटों के काम में यहां
घंटों लगा देते हैं वृद्ध सेनानी
देश कछुओं के झुंड में फंसा ...
खरगोश सी व्याकुल बैठी है जवानी
सत्ता भी उन से चल रहीं
जिनको परिवर्तन लगता है नादानी
21 वीं सदी मे भी फंसे हैं लंगोट में
जहां सूट बूट मे तैयार जवानी
मैं ये नहीं कहता नाकाबिल है ये सब
बस उम्र ने बढ़ायी है सब की परेशानी
उचित सुविधा और सम्मान सेवानिवृत्त लें
नव जोश लिए परिवर्तन को आतुर है जवानी
बूढ़ा शेर भी असहाय हो जाता है
फिर इंसान के बुढ़ापे पर कैसी हैरानी
अपार भंडार है पर गुणवत्ता शून्य
तभी इतना महँगा बिकने लगा है पानी।
Bahut khub da emotional h bahut
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत खूब... व्यंगात्मक par सार्थक भी..
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteNice
ReplyDeleteThank you
DeleteShandar....
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार sir Ji 🙏
DeleteBahut shandar rachna
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार Mam और आपको और सभी रचनाकारों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता ।हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteशुक्रिया महोदय
Deleteवाह हरीश जी...क्या ख्ाूब चेताया...बूढ़ा शेर भी असहाय हो जाता है
ReplyDeleteफिर इंसान के बुढ़ापे पर कैसी हैरानी
अपार भंडार है पर गुणवत्ता शून्य
तभी इतना महँगा बिकने लगा है पानी।...वाह
बहुत-बहुत आभार
DeleteBahut hi sundar rachna
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteअनुत्तरित प्रश्न है सब।शायद ये परिवर्तन के दौर की भयावहता है।
ReplyDeleteजी mam
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