जलता अंगारा...?
जो आसूं नहीं बहा सकता
मगर जल सकता है राख होने तक
बिना ये कहे कि तकलीफ में हूं।
आदमी क्या है
जिनी चिराग...?
जिसका कोई निज स्वार्थ नहीं
मगर आजीवन घिसता रहता है
सिर्फ अपनों की खुशियों के खातिर
आदमी क्या है
जांबाज सिपाही...?
कायरता पे जिसका अधिकार नहीं
हर हाल मे उसको लड़ना है
कभी अपनों से कभी हालातों से
आदमी क्या है
संयोजक कड़ी...?
उतार चड़ाव भरी इस जिंदगी मे
सब कुछ जोड़ के चलता है
दो जून की रोटी के खातिर
आदमी क्या है
टिमटिमाता जुगनू...?
प्रकाश और अन्धकार के बीच
उम्मीद की एक किरण जैसा
जो सबको हौसला देता है
आदमी क्या है
बनावटी साँचा...?
जो अपने गुस्से या प्रेम को
बिना जाहिर किए हुए
हर उम्मीद पे खरा उतरे
आदमी क्या है
मूक दर्शक...?
जो आवाज उठाना तो चाहता हो
मगर अपनों को दलदल मे फंसता देख
मौन धारण कर लेता है
आदमी क्या है
टूटी पगडंडी...?
जिसका जर्रा जर्रा बिखर गया
रिश्ते निभाते निभाते
मगर लौटकर कोई आया नहीं
आदमी क्या है
ढलती शाम...?
जिसने उगते सूरज का तेज भी देखा है
भोर की लालिमा मे नहाया है
मगर अब अंधेरे से मिलने को है
Bahut badiya
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत-बहुत आभार आपका 🙏
Deleteदिल को छूती हुई बहुत ही भावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteशुक्रिया मनीषा जी
Deleteवाकई आदमी यह सब कुछ है और इससे भी कहीं ज्यादा है, आदमी वह है जो चाहे तो जन्नत को जमीं पर ला सकता है और चाहे तो जहन्नुम को
ReplyDeleteसही कहा आपने mam
Deleteइंसान को परिभाषित करती सुंदर उत्कृष्ट रचना ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteमानव जीवन को सृष्टि पर सबसे भाग्यशाली माना जाता है।पर इसकी अदृश्य विसंगतियां इस अनमोल जीवन को अक्सर विद्रूपता से भर देती हैं।इन्ही विवशताओं को सार्थकता से अंकित किया है आपने प्रिय हरीश।
ReplyDeleteशुक्रिया mam
Deleteआदमी क्या है
ReplyDeleteजांबाज सिपाही...?
कायरता पे जिसका अधिकार नहीं
हर हाल मे उसको लड़ना है
कभी अपनों से कभी हालातों से //
आज के समय में सबसे ज्यादा शामत सैनिक नाम के मनुष्य की आई है ऊ
सही कहा आपने mam,
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