Friday, August 27, 2021

अंत नहीं होता....



जब मैं मरूँ, मेरा जनाज़ा निकाला जा रहा हो.. 

 यह न सोचना कि मैं इस दुनिया को याद कर रहा हूँ 

 कोई अश्क न बहाए, शोक न करे , न ही कोई मन भारी करे... 

मैं राक्षस के रसातल में नहीं पड़ रहा हूँ


 जब देखो मेरा  जनाजा जाते हुए, 

  पीड़ासक्त होकर रोना नहीं... 

मैं अलविदा नहीं कह रहा हूंँ, 

मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ।


मुझे मेरी कब्र में छोड़ आओ, तो अलविदा मत कहना.. 

 याद रखना कब्र तो जन्नत के लिए सिर्फ एक पर्दा महज है

तुमने मुझे केवल पंचतत्व मे विलीन होता देखा, 

अब मुझे पंचतत्व होता भी देखो... 


प्रकृति का अंत कैसे हो सकता है?

 नहीं हो सकता... 

 मरण सूर्यास्त सा है, अंत सा लगता है 

लेकिन वास्तव में यह भोर है.। 

गोधूलि और भोर में सूर्य चंद का अंत नहीं होता... 

दोनों मौजूद रहते हैं कहीं न् कहीं


जब मिट्टी तुम्हें खुद मे मिला लेती है,

तब आत्मा मुक्त हो जाती है।

 क्या आपने कभी किसी बीज को धरती पर गिरे हुए 

नव जीवन के साथ  उगते नहीं देखा है?

फिर मनुष्य  के बीज उगने पर संदेह कैसा ?

 अंत नहीं होता प्रकृति का..... 

                                       (हैरी)

24 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०८-२०२१) को
    'तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना'(चर्चा अंक-४१७०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी जरूर... आपका आभार मेरी इस रचना पे चर्चा करने के लिए अपने ब्लॉग मे आमन्त्रित करने के लिए

      Delete
  2. बहुत मर्मस्पर्शी सृजन ।

    ReplyDelete
  3. सृष्टि जब तक है तबतक यह आवागमन चक्र है किंतु मनुष्य मन जग जीवन की माया मोह में उलझा इस रहस्य को समझकर भी नहीं समझना चाहता है।
    अध्यात्मिक भाव लिए सुंदर सृजन।
    सादर।

    ReplyDelete
  4. Sundar rachna... Deep msg keep sath

    ReplyDelete
  5. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन

    ReplyDelete
  6. सुंदर सृजन... मृत्यु अंत नहीं एक नई शुरुआत है...

    ReplyDelete
    Replies
    1. कविता का सही भाव समझने के लिए आभार

      Delete
  7. सुंदर आध्यात्मिक भावों का गहन दर्शन देती रचना।

    ReplyDelete