जब मैं मरूँ, मेरा जनाज़ा निकाला जा रहा हो..
यह न सोचना कि मैं इस दुनिया को याद कर रहा हूँ
कोई अश्क न बहाए, शोक न करे , न ही कोई मन भारी करे...
मैं राक्षस के रसातल में नहीं पड़ रहा हूँ
जब देखो मेरा जनाजा जाते हुए,
पीड़ासक्त होकर रोना नहीं...
मैं अलविदा नहीं कह रहा हूंँ,
मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ।
मुझे मेरी कब्र में छोड़ आओ, तो अलविदा मत कहना..
याद रखना कब्र तो जन्नत के लिए सिर्फ एक पर्दा महज है
तुमने मुझे केवल पंचतत्व मे विलीन होता देखा,
अब मुझे पंचतत्व होता भी देखो...
प्रकृति का अंत कैसे हो सकता है?
नहीं हो सकता...
मरण सूर्यास्त सा है, अंत सा लगता है
लेकिन वास्तव में यह भोर है.।
गोधूलि और भोर में सूर्य चंद का अंत नहीं होता...
दोनों मौजूद रहते हैं कहीं न् कहीं
जब मिट्टी तुम्हें खुद मे मिला लेती है,
तब आत्मा मुक्त हो जाती है।
क्या आपने कभी किसी बीज को धरती पर गिरे हुए
नव जीवन के साथ उगते नहीं देखा है?
फिर मनुष्य के बीज उगने पर संदेह कैसा ?
अंत नहीं होता प्रकृति का.....
(हैरी)
Heartbreaking❤️💔
ReplyDeleteThanks
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०८-२०२१) को
'तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना'(चर्चा अंक-४१७०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी जरूर... आपका आभार मेरी इस रचना पे चर्चा करने के लिए अपने ब्लॉग मे आमन्त्रित करने के लिए
Deleteबहुत मर्मस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeletedhanyabad mam
Deleteसृष्टि जब तक है तबतक यह आवागमन चक्र है किंतु मनुष्य मन जग जीवन की माया मोह में उलझा इस रहस्य को समझकर भी नहीं समझना चाहता है।
ReplyDeleteअध्यात्मिक भाव लिए सुंदर सृजन।
सादर।
बहुत बहुत आभार mam
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार गुरूजी 🙏
DeleteSundar rachna... Deep msg keep sath
ReplyDeleteबेहद हृदयस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteBahut khub janab
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteधन्यवाद जी
Deleteसुंदर सृजन... मृत्यु अंत नहीं एक नई शुरुआत है...
ReplyDeleteकविता का सही भाव समझने के लिए आभार
Deleteसुंदर आध्यात्मिक भावों का गहन दर्शन देती रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏
Deleteसार्थक लेखन
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteओह...। गहन रचना।
ReplyDeleteAbsolutely right sir
ReplyDeleteThank you for appreciation
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