Friday, July 26, 2024

"करगिल से उरी तक: " Hidden Truth"



 

वो युद्ध नहीं था, धोखा था
जो बना था सहोदर, उसी ने छुरा पीठ में घोंपा था।
हमने तो अमन का पैग़ाम भेजा, 
पर उनका कुछ और ही सोचा मंसूबा था।


जिन्हें धड़ काटकर आधा शरीर दिया,
पीने को झेलम-चिनाब का नीर दिया,
भाईचारा जिनसे निभाते रहे,
वही हमें बार-बार ज़ख्म गंभीर दिया।

हम — बुद्ध, श्रीराम के पथिक,
उनके नस्लों में बहता आतंक का रक्त,
हमने चुनी शिक्षा, प्रगति की राहें,
उन्हें तो बस ‘जिहाद’ का था जुनून असक्त।

वो भूले सन् सैंतालीस की जंग,
इकहत्तर की हार की हँसी कहानी,
जुलाई निन्यानवे में फिर हुए अपमानित,
जब कायरता थी उनकी सबसे बड़ी निशानी।

फिर भी ‘पाक’ ज़मीन से,
किए उन्होंने ‘नापाक’ वार बार-बार,
उबरे भी न थे जब 'छब्बीस ग्यारह' से,
'उरी' ने फिर कर दिया दिल तार-तार।

अबकी बार अगर युद्ध हुआ तो,
ना माफ़ी, ना कोई संधि की सौगात होगी,
इस बार न सिर्फ़ POK,
पूरे पाकिस्तान पर कब्जे की बात होगी।

जय हिंद।
जय हिंद की सेना।



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