Thursday, November 7, 2024

हया भी कोई चीज होती है...

 

हया भी कोई चीज होती है

अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है

संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की

पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है


नोच खाते हैं लोग आँखों से ही खुले कलित तन को

तभी कहावत मे भी बेटी बाप के लिए बोझ होती है

मैं कौन होता हूँ आपकी आजादी का हनन करने वाला

बस जानता हूं किसकी कैसी सोच होती है


कुछ दुष्ट तो पालने मे पडी बच्ची को भी नहीं छोड़ते

तू तो हरदम इन जानवरों के बीच होती है

तुझे खुद भी पता है हकीकत इस सभ्य समाज की

मंदिर मस्जिद मे बैठे आडंबरियो की तक सोच गलीच होती हैं


न मुझे न मेरी लेखनी को देखना हीन नज़रों से

हर मर्ज की न उपचार ताबीज़ होती है

कहीं टुकड़ों मे बिखरे न मिलों दुष्कर्म का शिकार होकर

तभी कह रहा हूं हया भी कोई चीज होती है ||


Friday, October 25, 2024

यूँ मर जाना ना होता...

 

कल की बची कुछ उधार सांसे

आज हिसाब मांग रहीं हैं

मजबूरियों की फटी चादर से

परेशानियां झरोखों से झाँक रही हैं


कल के गुज़रे दिन सुहाने

आज जी का जंजाल बन रहीं हैं

कष्ट भरे इस अनचाहे सफर मे

दुखों से जिंदगी की ठन रही है


नाकामयाबी का सैलाब उठता हर रोज

मुश्किलों की आँधी उड़ा ले जाती खुशियों को

चंद बूँदों के लिए तरसती रेगिस्तान सी जिंदगी

फिर क्यूँ पहाड़ सी उम्र दे दी मनुष्यों को


भला होता चार लम्हा जीते मगर सुकून से

इन ग़मों के तूफान से टकराना ना होता

महलों के बजाय रहते बीहड़ो मे ही मगर

अनगिनत आशाओं के तले दबकर मर जाना ना होता ||



Saturday, October 5, 2024

तब कविता जन्म लेती है


 जब कविता जन्म लेती है

जागृत होते हैं रस, छंद, अलंकार और चौपाई

फिर तुकांत मिलाने को

शब्दों मे होती है लड़ाई


भाव उमड़ते हैं हर रस के

करुण, रौद्र, वीर और सहाय

छंदो का करके उचित प्रबंध

कवियों ने काव्य की अलख जगाए


चौपाई का हर एक चरण ही

मात्राओं का बनता नियत निकाय

अलंकार का सही शब्द नियोजन

कविता मे मिठास का रस भर जाय


कभी उपमा से कोयला भी बनता चांद 

कभी हास्य रस गुदगुदी लगाए 

कभी रौद्र रस क्रोध की ज्वाला भर दे 

कभी करुण रस अश्कों से अश्रु बहाए 


कितना सुंदर होता है ये समायोजन 

जो हृदय मे प्रसन्न्ता भर देती है 

एक कवि की बोल उठती है कल्पना 

तब कविता जन्म लेती है ||