Tuesday, November 26, 2024

सन् सत्तावन के बाद....


 क्या सन् सत्तावन के बाद किसी

सिहनी ने तलवार लिया नहीं कर मे

या माँ ने जननी बन्द कर दी

लक्ष्मीबाई अब घर-घर में


क्यों इतने कमजोर बेबस बन गये

क्या रक्त सूख गया काली के खंजर मे

क्यों लटक रहे कुछ फांसी के फंदे में

क्यों विलाप कर रही कुछ पीहर मे,


अरे इस देश मे तो देवियों पूजी जाती है,

फिर क्यूँ मृत लिपटी मिलती है चादर में

क्या आदिशक्ति भी शक्ति हीन हो गयी

या दानव शक्ति प्रबल हो गयी भूधर में


क्या कान्हा के सारे दाव-पेच फेल हो गये

या प्रभाव फीका हो गया महाकाल के जहर मे

या फिर कलयुग अपने चरम सीमा पे है.

क्या सब दैवीय शक्ति विलुप्त हो गये थे द्वापर मे 


अगर नवरात्रि मानते है सब श्रद्धा से 

फिर क्यूँ खुद की बेटी सहमी है डर मे 

प्रश्नो के इस भंडार मे असमंजस 

कहीं खुद का सिर ना दे मारूं पत्थर मे 


सिहनी से उसका शावक चुरा ले

इतना साहस कहाँ से आ गया गीदड़ मे  

श्रृंगार सारे छीन लिया बाहुबल को

वर्ना कभी शक्ति कोपले फूटते थे इस विरान बंजर में


हनुमान बन बैठे सभी शक्ति वाहिनियां

वर्ना कोई समुद्र अड़ंगा बनता ना डगर मे

अब कहाँ से ओयेगा शक्ति याद दिलाने जामवन्त

जो ला पायेगा बदलाव इनके तेवर मे


खुद की पहचान और अस्तित्त्व बनाये रखने को 

नये प्राण फूकने होंगे इस तन जर्जर मे

उठा भाल तलवार कर विनाश शत्रुओं का

कब तक लिपटे रहोगी जेवर मे ||

Thursday, November 7, 2024

हया भी कोई चीज होती है...

 

हया भी कोई चीज होती है

अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है

संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की

पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है


नोच खाते हैं लोग आँखों से ही खुले कलित तन को

तभी कहावत मे भी बेटी बाप के लिए बोझ होती है

मैं कौन होता हूँ आपकी आजादी का हनन करने वाला

बस जानता हूं किसकी कैसी सोच होती है


कुछ दुष्ट तो पालने मे पडी बच्ची को भी नहीं छोड़ते

तू तो हरदम इन जानवरों के बीच होती है

तुझे खुद भी पता है हकीकत इस सभ्य समाज की

मंदिर मस्जिद मे बैठे आडंबरियो की तक सोच गलीच होती हैं


न मुझे न मेरी लेखनी को देखना हीन नज़रों से

हर मर्ज की न उपचार ताबीज़ होती है

कहीं टुकड़ों मे बिखरे न मिलों दुष्कर्म का शिकार होकर

तभी कह रहा हूं हया भी कोई चीज होती है ||


Friday, October 25, 2024

यूँ मर जाना ना होता...

 

कल की बची कुछ उधार सांसे

आज हिसाब मांग रहीं हैं

मजबूरियों की फटी चादर से

परेशानियां झरोखों से झाँक रही हैं


कल के गुज़रे दिन सुहाने

आज जी का जंजाल बन रहीं हैं

कष्ट भरे इस अनचाहे सफर मे

दुखों से जिंदगी की ठन रही है


नाकामयाबी का सैलाब उठता हर रोज

मुश्किलों की आँधी उड़ा ले जाती खुशियों को

चंद बूँदों के लिए तरसती रेगिस्तान सी जिंदगी

फिर क्यूँ पहाड़ सी उम्र दे दी मनुष्यों को


भला होता चार लम्हा जीते मगर सुकून से

इन ग़मों के तूफान से टकराना ना होता

महलों के बजाय रहते बीहड़ो मे ही मगर

अनगिनत आशाओं के तले दबकर मर जाना ना होता ||



Saturday, October 5, 2024

तब कविता जन्म लेती है


 जब कविता जन्म लेती है

जागृत होते हैं रस, छंद, अलंकार और चौपाई

फिर तुकांत मिलाने को

शब्दों मे होती है लड़ाई


भाव उमड़ते हैं हर रस के

करुण, रौद्र, वीर और सहाय

छंदो का करके उचित प्रबंध

कवियों ने काव्य की अलख जगाए


चौपाई का हर एक चरण ही

मात्राओं का बनता नियत निकाय

अलंकार का सही शब्द नियोजन

कविता मे मिठास का रस भर जाय


कभी उपमा से कोयला भी बनता चांद 

कभी हास्य रस गुदगुदी लगाए 

कभी रौद्र रस क्रोध की ज्वाला भर दे 

कभी करुण रस अश्कों से अश्रु बहाए 


कितना सुंदर होता है ये समायोजन 

जो हृदय मे प्रसन्न्ता भर देती है 

एक कवि की बोल उठती है कल्पना 

तब कविता जन्म लेती है ||




Sunday, September 8, 2024

डर लगता है घर जाने पर


 मैं खुद को नाप नहीं पाया

सफलता के पैमाने पर

सदैव बना रहा फिर भी

अपनों के निशाने पर


न कष्ट किसी को दिया कभी

ना रात गुजारी मैखाने पर

ना छीना निवाला किसी मजलूम का

फिर क्यूँ न उम्र गुज़री ठिकाने पर


छिनता चला गया हर शख्स मुझसे

रूह तक मर चुकी अब उनके जाने पर

मैंने हर रिश्ता निभाया पाक साफ नियत से

फिर क्यूँ हर कोई आया आजमाने पर


कर्म और भाग्य भी विरोधी बने

नींद भी बैठी रहीं सिरहाने पर

देव दृष्टि से भी रहे वंचित सदा

वक़्त भी आमदा रहा सितम ढाने पर


सबकुछ था पर लगता है अब कुछ भी नहीं

मन व्याकुल होता है जश्न मनाने पर

एक दौर था हम भी खुश रहते थे बहुत

अब डर लगता है घर जाने पर ||



Sunday, August 18, 2024

कलयुग मे कृष्ण ना आयेंगे.....



 इस वीभत्स कृत्य का कोई सार नहीं होगा

इससे बुरा शायद कोई व्यवहार नहीं होगा

तुम्हें मौत के घाट उतार दिया कुछ नीच शैतानों ने 

सिर्फ मोमबत्ती जलाने से तेरा उद्धार नहीं होगा |


अब जलाना होगा करके खड़ा उनको चौराहे पे 

जिसने लाकर खड़ा कर दिया इंसानियत को दोराहे पे 

अब धर्म जाति के नाम का कोई हथियार नहीं होगा 

जब जलते देखेंगे तो फिर कभी बलात्कार नहीं होगा |



सिर्फ भाषण से नारी शक्ति का सम्मान नहीं होता 

जो नोच खाए बोटी तलक वो इंसान नहीं होता 

कुछ ऐसा कर दो संशोधन जो बेकार नहीं होगा 

जिससे फिर किसी माँ बाप का आँगन बेजार नहीं होगा |


देवी की उपमा देते है फिर खुद ही दुशासन बन जाते हैं 

चीर हरण के रक्षक जब खुद ही चीर उड़ाते हैं 

ऐसे ही किसी देवी का शायद त्यौहार नहीं होगा 

बेटी! तुम खुद ही शस्त्र संभालो,

इस कलयुग मे कृष्ण का अवतार नहीं होगा

इस कलयुग मे कृष्ण का अवतार नहीं होगा ||

#justiceformoumita



Friday, July 26, 2024

करगिल "एक विजय गाथा"


 वह युद्ध नहीं था धोखा था

जो बन सहोदर उसने छुरा पीठ पे घोंपा था

हम शांति अमन का पैगाम भेजते

उनका कुछ और ही मंसूबा था


जिनको धड़ काट के आधा शरीर दिया

पीने को झेलम चिनाब का नीर दिया

जिससे हम भाईचारा निभाते रहे

उसने ही घाव कई गंभीर दिया


हम बुद्ध श्रीराम के पैग़म्बर

उनके नस्लों मे आतंक का खून बहे

हमारा ध्येय शिक्षा और विकास का

वो जिहाद हो अपना जुनून कहे


वो भूल गया जंग सैतालीस की

और घमंड चूर हुआ था जब इकहत्तर मे

जुलाई निन्यानबे मे फिर खाई थी मुँह की

इज़्ज़त नीलाम कर बैठे थे जब घर मे


फिर भी सदैव 'पाक' धरा से

उसने नापाक ही काम किया

हम उबरे भी नहीं थे छब्बीस ग्यारह से

फिर 'उरी' की हृदय विदारक कांड को अंजाम दिया


अब इस बार ग़र हुआ युद्ध तो

ना मंजूर आत्मसमर्पण, सिर्फ नर संहार होगा

कल तक सिर्फ POK की करते थे पहल

इस बार पूरे पाक पे अपना अधिकार होगा ||

जय हिंद 

जय हिंद की सेना