मैं खुद को नाप नहीं पाया
सफलता के पैमाने पर
सदैव बना रहा फिर भी
अपनों के निशाने पर
न कष्ट किसी को दिया कभी
ना रात गुजारी मैखाने पर
ना छीना निवाला किसी मजलूम का
फिर क्यूँ न उम्र गुज़री ठिकाने पर
छिनता चला गया हर शख्स मुझसे
रूह तक मर चुकी अब उनके जाने पर
मैंने हर रिश्ता निभाया पाक साफ नियत से
फिर क्यूँ हर कोई आया आजमाने पर
कर्म और भाग्य भी विरोधी बने
नींद भी बैठी रहीं सिरहाने पर
देव दृष्टि से भी रहे वंचित सदा
वक़्त भी आमदा रहा सितम ढाने पर
सबकुछ था पर लगता है अब कुछ भी नहीं
मन व्याकुल होता है जश्न मनाने पर
एक दौर था हम भी खुश रहते थे बहुत
अब डर लगता है घर जाने पर ||
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार गुरुजी 🙏
Deleteयही है संसार का सत्य 😌
ReplyDeleteशतप्रतिशत 🥰😍
Deleteबहुत सुंदर लिखा हैं ☺️🥰
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
DeleteBahut hu sundar kavita hai👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यावाद 🙏
Deleteसमय और और परिस्थितियाँ सदैव बदलती रहती हैं जिसका प्रत्यक्ष और.अप्रत्यक्ष प्रभाव मानव मन पर अपना प्रभाव छोड़ जाता है।
ReplyDeleteसभी के जीवन में ऐसा दौर एक बार जरूर महसूस होता है।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १० सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार महोदया मेरी रचना को शामिल करने के लिए 🙏
Deleteलेखन शैली में बहुत नुकीली अभियक्ति है सर ! भगवान का दिया हुआ हुनर है , मेरा पूरा विश्वास है की ये दौर जाएगा और अपना टाइम आएगा! तब तक भड़ास ऐसे ही निकालते रहिए! ये भी परम आवश्यक है :)
ReplyDeleteजारी रखिए....
बहुत बहुत आभार Manish Ji
Deleteबहुत खूब, हर कोई ऐसी ही मनोस्थिति से गुजर रहा है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार महोदय
Deleteउदासीनता की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुजी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteBahut khoob
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
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