दिखते है मुझे इंसान मे
अब भी साजिश में शामिल गोडसे,
कुछ अब भी शामिल गाँधी की हिंसा मे
कुछ के ईश्वर हैं बापू,
कुछ गोडसे को सलामी देते हैं
ये मिली जुली सी फितरत लोगों की,
दोनों को बदनामी देते हैं
ना गांधी ने कोई अनर्थ किया था,
ना गोडसे ने कद्दू मे तीर चलाया था
एक था अपनों के विश्वासघात का मारा,
एक को अपनों ने बरगलाया था
एक नाम विश्व पटल पे था
एक का अपना ही संसार था
एक हिन्दू मुस्लिम मे भेद समझता,
एक का पूरा अपना परिवार था
अब कौन सही था कौन गलत
कोई कहता हिन्दू मुस्लिम हैं दुश्मन
कोई कहता भाई भाई हैं
गांधी ने मझधार मे छोड़कर
देश का बंटवारा होने दिया
गोडसे की गोली ने धधकती ज्वाला को
सुषुप्त अवस्था मे ही सोने दिया
अब किसके पक्ष मे खड़ा रहूं मैं
किसके खिलाफ कहूँ जंग है
अंतरात्मा तभी है कहती मेरी
अब भी लहू के दो रंग हैं
Its a very humble and daramartic voice of poerty and the free version are too good ....great going hari god bless u
ReplyDelete???
ReplyDelete......
Deleteना गांधी ने कोई अनर्थ किया था,
ReplyDeleteना गोडसे ने कद्दू मे तीर चलाया था
एक था अपनों के विश्वासघात का मारा,
एक को अपनों ने बरगलाया था
बेहतरीन सृजन....
लहू का एक ही रँग है ... अर इंसान का मन कुछ भी सोचने को स्वतंत्र है ... और रहना भी चाहिए ...
ReplyDeleteजी जरूर...
Deleteगाँधी जी की हत्या गोडसे ने किस मनस्थिति में की?कौन सही कौन गलत,अक्सर संवेदनशील लोग इसी ऊहापोह में लगे रह्ते हैं।एक अलग मिजाज की रचना प्रिय हरीश।
ReplyDeleteजिनता मैं समझ पाया दोनों को बस उन्हीं बिंदुओं को ध्यान मे रखकर लिखने की कोशिश की है mam बांकी कौन सही था कौन गलत उसका सही सही पता लगा पाना बहुत कठिन है
DeleteThis poem explores society's complex feelings toward Gandhi and Godse, highlighting deep ideological differences from history to the present.
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