मन करता है दूर कहीं
डूबते सूरज को देखूं
शांत बहते किसी सागर मे
एक कंकड़ तबीयत से फैंकू
कुछ पल छीन कर इस दुनिया से
खुद के पूरे कुछ ख्याब करूँ
मन करता है पंख फैलाकर
इस नीलगगन की सैर करूं
ये घुटन, पाबंदी और जिम्मेदारी
सब कुछ पल भर मे उतार दूँ
मन करता है सदियों की ज़िन्दगी
बस एक पल मे ही गूजार दूँ
अब कैसे बयां करूँ शब्दों में
कितना कुछ दबाया है मन मे
मन करता है लिखता जाऊँ
क्या क्या सहा है इस जीवन मे...
(हैरी)