Thursday, November 7, 2024

हया भी कोई चीज होती है...

 

हया भी कोई चीज होती है

अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है

संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की

पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है


नोच खाते हैं लोग आँखों से ही खुले कलित तन को

तभी कहावत मे भी बेटी बाप के लिए बोझ होती है

मैं कौन होता हूँ आपकी आजादी का हनन करने वाला

बस जानता हूं किसकी कैसी सोच होती है


कुछ दुष्ट तो पालने मे पडी बच्ची को भी नहीं छोड़ते

तू तो हरदम इन जानवरों के बीच होती है

तुझे खुद भी पता है हकीकत इस सभ्य समाज की

मंदिर मस्जिद मे बैठे आडंबरियो की तक सोच गलीच होती हैं


न मुझे न मेरी लेखनी को देखना हीन नज़रों से

हर मर्ज की न उपचार ताबीज़ होती है

कहीं टुकड़ों मे बिखरे न मिलों दुष्कर्म का शिकार होकर

तभी कह रहा हूं हया भी कोई चीज होती है ||


19 comments:

  1. Every line resonate with such depth! truly captivating,✨✨ 🙏

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    1. बहुत सुंदर कविता वर्तमान समाज का आइना। अति उत्तम विचार 👌👌

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    2. बहुत बहुत आभार 🙏

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  3. चिन्तन परक सृजन ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया mam🙏

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  4. Sacchi baat💯💯💯💯💯💯💯

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  5. कविता कड़वी सच्चाई कहती है जो हम सब महसूस तो करते हैं लेकिन बोलते नहीं। हर लाइन सोचने पर मजबूर करती है, असल में गंदगी बाहर नहीं, सोच में है। कपड़ों पर बात करने वाले असल मुद्दों से भागते हैं। और जो लोग छोटी बच्चियों तक को नहीं छोड़ते, उनके लिए कोई माफी नहीं हो सकती।

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