Wednesday, June 11, 2025

दिखावे से इंकार...

 

मैं मिलावटी रिश्तों का धंधा नहीं करता
बेवजह किसी को शर्मिदा नहीं करता
मैं भलीभाँति वाकिफ हूँ अपने कर्मों से
तभी गंगा मे उतर कर उसे गंदा नही करता ||

जिस्म तो धों लेते हैं लोग ज़मज़म के पानी से
मगर मरी हुई रूह कोई जिंदा नहीं करता
अक्सर घाटों पे उमड़ी भीड़ याद दिलाती है मुझे
गलत कर्म सिर्फ दरिन्दा नहीं करता ||

हजार वज़ह दिए हैं ज़माने ने बेआबरू होने का
मगर मैं किसी बात की अब चिंता नहीं करता
भेड़िये के खाल मे छिपे हर शख्स से हूँ रूबरू
तभी कभी किसी से कुछ मिन्ता नहीं करता ||

वो जो ज्ञान की पाठशाला खोल के बैठे हैं
घर पे कभी हरे कृष्णा हरे गोविंदा नहीं करता
दिखावट से तो लगता सारे वेदों का ज्ञाता
मगर बाते उसकी जैसी कोई परिंदा नहीं करता ||

आम आदमी तो यूँ ही बदनाम है बेरूखी के लिए
भूखे पेट भजन कोई बाशिंदा नहीं करता
बखूबी जानता हूं असलियत सभ्य समाज की
मैं बेफिजूल किसी की निंदा नहीं करता ||



36 comments:

  1. भलीभाँति वाकिफ हूँ अपने कर्मों से
    तभी गंगा मे उतर कर उसे गंदा नही करता || ati sundar sir

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  2. अति सुंदर ❤

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  3. सार्थक सुंदर सटीक

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  4. Osm Daa🙏🏻🔥

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  5. Gajab har da superb
    Keep it up

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  6. हकीकत को स्पष्ट लिखा है ... शानदार रचना ...

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    1. बहुत बहुत आभार गुरुजी

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  7. क्या बात है भाईसाब आपने जो बात कही “गंगा में उतर कर उसे गंदा नहीं करता”, उसमें जो गहराई है ना, वो आजकल कम ही मिलती है। “मैं मिलावटी रिश्तों का धंधा नहीं करता”, इस लाइन ने तो जैसे आज की सोशल लाइफ का पोस्टमॉर्टम कर दिया। आजकल रिश्ते मतलब बस दिखावा रह गया है, और तुमने उस नकलीपन पर सीधा वार कर दिया।

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  8. बहुत बहुत शुक्रिया महोदय आपकी इस प्रतिक्रिया ने हृदय को बहुत अच्छा लगा 🙏

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  9. मैं भलीभाँति वाकिफ हूँ अपने कर्मों से
    तभी गंगा मे उतर कर उसे गंदा नही करता ||
    जैसी विशेष पंक्तियों के साथ एक बेहतरीन रचना प्रिय हरीश जी | हर बंध सार्थक और मारक है | एक कवि ही इस तरह की पीड़ा को उजागर करने का माद्दा रखता है |

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  10. बहुत बहुत आभार रेणु जी, आपकी ऐसी प्रक्रिया हमेशा कुछ और बेहतर लिखने को प्रेरित करती है, एक और बार आपका बहुत बहुत धन्यावाद 🙏

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