अयोध्या की धूल में छिपा स्वर्णिम गौरव काल,
हर कण में गूँजता इक्ष्वाकु का प्रतिपाल।
मंत्रों की धार तले जला मर्यादा का दीप,
जहाँ सत्य था राज्य, और धर्म था संगीत।
सगर की तपस्या ने नभ को किया प्रकाशमान,
भगीरथ के मौन में बहा गंगा का उफान।
दशरथ हुए प्रहरी सत्य और धर्म के,
रघुवंश चमका जैसे सूरज के कर्म से।
रघुकुल का तेज था किरणों का आलोक,
वचन के आगे जीवन था उनका संयोग।
वहीं से जन्मे राम — मर्यादा के पर्याय,
धर्म की मशाल बने, स्नेह के स्वर्णिम अध्याय।
है वेदों की वाणी में गूँजते उनके नाम,
पुरखों की तप में बसता आत्मा का धाम।
सगर का बल, भगीरथ की विनम्र आराधना,
हर राजा में झलकी उनकी ही साधना।
जब त्रेता में अधर्म का जाल फैला चहुँओर,
धरती पुकार उठी — “हे विष्णु! अब धरो भोर।”
अवध में जन्मे राम — करुणा के सागर,
सत्य का परचम थामे, हर तम को किया निराधार।
जनकपुरी की माटी ने सीता का रूप सँवारा,
धरती की पुत्री थी — धैर्य का उजियारा।
वनपथ की धूल में भी इतिहास चला,
जहाँ प्रेम और त्याग का दीप पुनः जला।
राम में था दशरथ का संयम महान,
सगर का साहस, भगीरथ का ध्यान।
जनक का वैराग्य, विश्व का उपदेश,
मर्यादा में बँधा था परमात्मा का भेष।
आज भी जब कोई सत्य के लिए लड़े,
अधर्म के विरुद्ध अडिगता से रहे खड़े।
तो लगता है — त्रेता फिर लौट आई है,
राम की मर्यादा फिर जगमगाई है
जय श्रीराम 🙏

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