*ऐसा मेरा पहाड़ है*
चिडियों की चहचहाहट, कहीं भँवरो की गुंजन
कहीं कस्तूरी हिरण तो कहीं बाघ की दहाड़ है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
खेतों में लहराती हरियाली, कल-कल करती नदियाँ मतवाली
मंजुल झरनों से आती ठंडी ठंडी फुहार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
ग्वालों की बंसी, बकरियां हिरनी सी
महकती फूलों की घाटी तो औषधीय बयार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
बर्फीले हिमाल, कहीं मखमली बुग्याल
परियों का वास, कहीं एकलिंग की शक्ति अपार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
गंगा का उद्गम यहीं, बद्री और केदार यहीं
शिव की नगरी हर की पौड़ी और यहीं हरिद्वार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
हैरी
बर्फीले हिमाल, कहीं मखमली बुग्याल
ReplyDeleteपरियों का वास, कहीं एकलिंग की शक्ति अपार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
प्राकृतिक सुषमा पर मनोरम सृजन ।
बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
Deleteवाह
ReplyDeleteशुक्रिया गुरुजी 🙏
Deleteअच्छी कविता...। बधाई ।
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteपहाड़ का गुणगान करती ,महत्व समझाती सार्थक रचना,सादर शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteक्या बात है हरीश जी | पहाड़ों का वासी होना अपने आप में सौभाग्य है | जिनकी गोद में रहते हैं , उनका गान तो बनता है |
ReplyDeleteपहाड़ से ही अपनी पहचान है mam,हमें गर्व है पहाड़ी होने का
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