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Thursday, August 14, 2025

आज हुए थे दो टुकड़े (14 August)


 आज हुए थे दो टुकड़े,

न सिर्फ़ ज़मीन के,

बल्कि सदियों से जुड़े रिश्तों के भी।


एक तरफ़ भारत, एक तरफ़ पाकिस्तान—

पर दर्द तो दोनों का एक ही था,

बस आँसू सरहद के आर-पार

अलग-अलग बहने लगे थे।


वो सरहद, जो नक्शे पर खींची गई थी,

हमारे आँगन से गुज़री—

जहाँ कभी बच्चे बिना नाम पूछे खेलते थे,

आज पहचान पूछकर बात करते हैं।


लाहौर की गलियों में जो ख़ुशबू थी,

वो दिल्ली के हवाओं में भी थी,

आज वही हवाएँ

बारूदी धुएँ से भरी हुयी है।


माँ ने बेटे को अमृतसर से कराची जाते देखा,

बेटी ने बाप को ढाका से दिल्ली आते देखा—

और दोनों ने यही सोचा,

क्या अब कभी मिलना होगा?


मस्जिद की अज़ान, मंदिर की घंटी,

गुरुद्वारे का शबद—

जो एक साथ गूंजते थे,

अब सरहद की दीवारों में कैद हैं।


वैसे तो घड़ी आजादी के जश्न का था... 

पर सच ये भी था कि इंसानियत

भारत-पाकिस्तान दोनों में

लहूलुहान होकर गिर गई थी।


आज हुए थे दो टुकड़े,

पर सच तो ये है—

ज़ख़्म अब भी एक ही हैं,

बस सीने अलग-अलग कर दिए गए।