Tuesday, March 8, 2022
स्त्री तेरी कहानी..
Friday, March 4, 2022
पढ़ा लिखा बेरोजगार...
Tuesday, February 22, 2022
आदमी क्या है...?
जलता अंगारा...?
जो आसूं नहीं बहा सकता
मगर जल सकता है राख होने तक
बिना ये कहे कि तकलीफ में हूं।
आदमी क्या है
जिनी चिराग...?
जिसका कोई निज स्वार्थ नहीं
मगर आजीवन घिसता रहता है
सिर्फ अपनों की खुशियों के खातिर
आदमी क्या है
जांबाज सिपाही...?
कायरता पे जिसका अधिकार नहीं
हर हाल मे उसको लड़ना है
कभी अपनों से कभी हालातों से
आदमी क्या है
संयोजक कड़ी...?
उतार चड़ाव भरी इस जिंदगी मे
सब कुछ जोड़ के चलता है
दो जून की रोटी के खातिर
आदमी क्या है
टिमटिमाता जुगनू...?
प्रकाश और अन्धकार के बीच
उम्मीद की एक किरण जैसा
जो सबको हौसला देता है
आदमी क्या है
बनावटी साँचा...?
जो अपने गुस्से या प्रेम को
बिना जाहिर किए हुए
हर उम्मीद पे खरा उतरे
आदमी क्या है
मूक दर्शक...?
जो आवाज उठाना तो चाहता हो
मगर अपनों को दलदल मे फंसता देख
मौन धारण कर लेता है
आदमी क्या है
टूटी पगडंडी...?
जिसका जर्रा जर्रा बिखर गया
रिश्ते निभाते निभाते
मगर लौटकर कोई आया नहीं
आदमी क्या है
ढलती शाम...?
जिसने उगते सूरज का तेज भी देखा है
भोर की लालिमा मे नहाया है
मगर अब अंधेरे से मिलने को है
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हया भी कोई चीज होती है अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है ...
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मैं मिलावटी रिश्तों का धंधा नहीं करता बेवजह किसी को शर्मिदा नहीं करता मैं भलीभाँति वाकिफ हूँ अपने कर्मों से तभी गंगा मे उतर कर उसे गंदा...