Friday, October 25, 2024

यूँ मर जाना ना होता...

 

कल की बची कुछ उधार सांसे

आज हिसाब मांग रहीं हैं

मजबूरियों की फटी चादर से

परेशानियां झरोखों से झाँक रही हैं


कल के गुज़रे दिन सुहाने

आज जी का जंजाल बन रहीं हैं

कष्ट भरे इस अनचाहे सफर मे

दुखों से जिंदगी की ठन रही है


नाकामयाबी का सैलाब उठता हर रोज

मुश्किलों की आँधी उड़ा ले जाती खुशियों को

चंद बूँदों के लिए तरसती रेगिस्तान सी जिंदगी

फिर क्यूँ पहाड़ सी उम्र दे दी मनुष्यों को


भला होता चार लम्हा जीते मगर सुकून से

इन ग़मों के तूफान से टकराना ना होता

महलों के बजाय रहते बीहड़ो मे ही मगर

अनगिनत आशाओं के तले दबकर मर जाना ना होता ||



Saturday, October 5, 2024

तब कविता जन्म लेती है


 जब कविता जन्म लेती है

जागृत होते हैं रस, छंद, अलंकार और चौपाई

फिर तुकांत मिलाने को

शब्दों मे होती है लड़ाई


भाव उमड़ते हैं हर रस के

करुण, रौद्र, वीर और सहाय

छंदो का करके उचित प्रबंध

कवियों ने काव्य की अलख जगाए


चौपाई का हर एक चरण ही

मात्राओं का बनता नियत निकाय

अलंकार का सही शब्द नियोजन

कविता मे मिठास का रस भर जाय


कभी उपमा से कोयला भी बनता चांद 

कभी हास्य रस गुदगुदी लगाए 

कभी रौद्र रस क्रोध की ज्वाला भर दे 

कभी करुण रस अश्कों से अश्रु बहाए 


कितना सुंदर होता है ये समायोजन 

जो हृदय मे प्रसन्न्ता भर देती है 

एक कवि की बोल उठती है कल्पना 

तब कविता जन्म लेती है ||




Sunday, September 8, 2024

डर लगता है घर जाने पर


 मैं खुद को नाप नहीं पाया

सफलता के पैमाने पर

सदैव बना रहा फिर भी

अपनों के निशाने पर


न कष्ट किसी को दिया कभी

ना रात गुजारी मैखाने पर

ना छीना निवाला किसी मजलूम का

फिर क्यूँ न उम्र गुज़री ठिकाने पर


छिनता चला गया हर शख्स मुझसे

रूह तक मर चुकी अब उनके जाने पर

मैंने हर रिश्ता निभाया पाक साफ नियत से

फिर क्यूँ हर कोई आया आजमाने पर


कर्म और भाग्य भी विरोधी बने

नींद भी बैठी रहीं सिरहाने पर

देव दृष्टि से भी रहे वंचित सदा

वक़्त भी आमदा रहा सितम ढाने पर


सबकुछ था पर लगता है अब कुछ भी नहीं

मन व्याकुल होता है जश्न मनाने पर

एक दौर था हम भी खुश रहते थे बहुत

अब डर लगता है घर जाने पर ||



Sunday, August 18, 2024

कलयुग मे कृष्ण ना आयेंगे.....



 इस वीभत्स कृत्य का कोई सार नहीं होगा

इससे बुरा शायद कोई व्यवहार नहीं होगा

तुम्हें मौत के घाट उतार दिया कुछ नीच शैतानों ने 

सिर्फ मोमबत्ती जलाने से तेरा उद्धार नहीं होगा |


अब जलाना होगा करके खड़ा उनको चौराहे पे 

जिसने लाकर खड़ा कर दिया इंसानियत को दोराहे पे 

अब धर्म जाति के नाम का कोई हथियार नहीं होगा 

जब जलते देखेंगे तो फिर कभी बलात्कार नहीं होगा |



सिर्फ भाषण से नारी शक्ति का सम्मान नहीं होता 

जो नोच खाए बोटी तलक वो इंसान नहीं होता 

कुछ ऐसा कर दो संशोधन जो बेकार नहीं होगा 

जिससे फिर किसी माँ बाप का आँगन बेजार नहीं होगा |


देवी की उपमा देते है फिर खुद ही दुशासन बन जाते हैं 

चीर हरण के रक्षक जब खुद ही चीर उड़ाते हैं 

ऐसे ही किसी देवी का शायद त्यौहार नहीं होगा 

बेटी! तुम खुद ही शस्त्र संभालो,

इस कलयुग मे कृष्ण का अवतार नहीं होगा

इस कलयुग मे कृष्ण का अवतार नहीं होगा ||

#justiceformoumita



Friday, July 26, 2024

"करगिल से उरी तक: " Hidden Truth"



 

वो युद्ध नहीं था, धोखा था
जो बना था सहोदर, उसी ने छुरा पीठ में घोंपा था।
हमने तो अमन का पैग़ाम भेजा, 
पर उनका कुछ और ही सोचा मंसूबा था।


जिन्हें धड़ काटकर आधा शरीर दिया,
पीने को झेलम-चिनाब का नीर दिया,
भाईचारा जिनसे निभाते रहे,
वही हमें बार-बार ज़ख्म गंभीर दिया।

हम — बुद्ध, श्रीराम के पथिक,
उनके नस्लों में बहता आतंक का रक्त,
हमने चुनी शिक्षा, प्रगति की राहें,
उन्हें तो बस ‘जिहाद’ का था जुनून असक्त।

वो भूले सन् सैंतालीस की जंग,
इकहत्तर की हार की हँसी कहानी,
जुलाई निन्यानवे में फिर हुए अपमानित,
जब कायरता थी उनकी सबसे बड़ी निशानी।

फिर भी ‘पाक’ ज़मीन से,
किए उन्होंने ‘नापाक’ वार बार-बार,
उबरे भी न थे जब 'छब्बीस ग्यारह' से,
'उरी' ने फिर कर दिया दिल तार-तार।

अबकी बार अगर युद्ध हुआ तो,
ना माफ़ी, ना कोई संधि की सौगात होगी,
इस बार न सिर्फ़ POK,
पूरे पाकिस्तान पर कब्जे की बात होगी।

जय हिंद।
जय हिंद की सेना।