बूँद-बूँद में डर बहता है।
हरियाली की सांसों में भी,
धीमा-धीमा ज़हर रहता है।
चिड़ियों की चहकें सहमी हैं,
पेड़ लगे हैं जैसे रोने।
धरती की धड़कन डगमग सी,
लगी है फूलों की लाली खोने।
सदियाँ जो थीं माँ की गोदी सी,
अब अंगारों मे बदलने लगी है...
अब प्रकृति भी ज़हर उगलने लगी है।
नदियाँ मरती जाती हैं अब,
प्यास बुझाना भूल गई हैं।
मछलियाँ अब जलक्रीड़ा नहीं करती,
नदियाँ बाँध में डूब गई हैं।
कछुए, बगुले, बेकसूर बतख,
सब निर्वासन झेल रहे हैं।
धूप भरी है झीलों में अब,
घोंसले भी अंडों को धकेल रहे हैं।
सिकुड़ गए हैं बादल सारे,
अब बारिश तूफान मे ढ़लने लगी है...
अब प्रकृति भी ज़हर उगलने लगी है।
गगन चीरते लोहे जैसे
पेड़ों की शाखें टूट रही है
बादल भी बिन पानी भटकते अब
बेज़ान सी ज़मीं सूख रहीं हैं।
ओज़ोन का आँचल फटा है,
चाँद नहीं अब सुकून देता है ।
तारों की चुप्पी बतलाती
विनाश को आज्ञा कौन देता है ।
सृष्टि थक कर बैठ गई है,
अब सृजन विनाश मे बदलने लगी है
अब प्रकृति भी ज़हर उगलने लगी है।
क़सूर किसका पूछ रहे हो,
आईना थामो — देखो खुद को।
हमने ही बोया था ज़हर,
क्यूँ आरोप लगाते हो रुत को।
प्लास्टिक की साँसों से हमने,
धरती की धड़कन को रोका है
विकास के नाम पे लूटी वन सम्पदा,
जो विकास नहीं एक धोखा है।
अब याचना से कुछ न होगा,
जब बद्दुआ चुपके से पलने लगी है...
अब प्रकृति भी ज़हर उगलने लगी है।
अब भी वक़्त है लौट चलें हम,
बीज नई सोच के बोएँ।
पत्तों से फिर प्रार्थना हो,
धरती का जीवन संजोए ।
धरती माँ की मौन व्यथा को
गीतों में फिर ढालें प्यारे।
पेड़ उगें, छाँवें बरसें,
खेत खुले फिर नदियाँ पुकारें।
नतमस्तक हों प्रकृति के आगे
क्योंकि प्रकृति विनाश की ओर चलने लगी है
अब प्रकृति भी ज़हर उगलने लगी है
अब प्रकृति भी ज़हर उगलने लगी है......
True lines...... Bhut badiya sir
ReplyDelete🥺🙏
ReplyDeleteनदी अपने रास्ते पर ही चली थी 1 हमें किस ने अधिकार दिया था उसके रास्ते पर घर बनाने का ? विचारणीय I
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
😭🙏🏻
ReplyDeleteप्रकृति के साथ ही ये जीवन है हमे ये बात भूलनी नही चाहिए वही हमारी माँ है उसके ममत्व के आँचल की छाँव लिए हम सब है , उसी के आँचल को अगर हम फटता देख रहे है , तो हम क्या इस करुणामयी के ममत्व स्नेह के अधिकारी है ?
ReplyDeleteसही है, मानव को अपने लोभ पर अंकुश लगाना होगा, प्रकृति का सम्मान करना सीख कर उसके साथ सामंजस्य पूर्ण जीवन शैली अपनानी होगी
ReplyDelete❤️❤️❤️
ReplyDelete💥💥
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