Friday, January 14, 2022

कविता है अखबार नहीं



 मैं कवि नहीं एक शिल्पी हूं

अक्षर अक्षर गड़कर, एक आकर बनाता हूं

पाषाण हृदयों को भी पिघला दे, ऐसी अद्भुत रचना से

अपनी कविता को साकार बनाता हूँ


रस छंद अलंकार और दोहा सौरठा से

होकर परे एक मुक्तक, शब्दों का संसार बनाता हूं

दबे कुचले हो या भूले बिसरे, गड़े मुर्दों को उखाड़ कर 

अपनी लेखनी का आधार बनाता हूँ


कलम नहीं रुकती मेरी, ना हाथ कांपते हैं

जब जब दुशासन के चरित्र, मेरे शब्द नापते हैं 

ना दहशत खोखली धमकी की, ना डर को भांपते है 

ना मीठे बोल लुभाते, ना किसी दुशासन का नाम जापते है 


सदा सत्य लिखने को, कलम आतुर रहती है 

अडिग विचारों को लिये, कोरे कागज पे स्याही बहती है 

ना अधर्म का पक्ष लेती, ना मूक दर्शक बनी रहती 

बिना अंजाम की परवाह किए, सिर्फ सच ही कहती है 


देख हौसला कलम का, एक जोश नया आता है 

लिखता हूँ कडवा सच, शायद कम को तब भाता है 

कायरता मे लुफ्त बोल, हमसे ना लिखे जाएंगे 

जब जब कलम उठेगी, हम सच ही लिख पाएंगे 


कलम तुलसी की ताकत है, भाड़े की तलवार नहीं 

कलम आलोचना झेलती है, प्रबल प्रशंसा की हकदार नहीं 

सत्य लिखने पे उठे अंगुलियाँ, हमको कोई गुबार नहीं 

मीठे बोलो से भर दे पन्ने, कविता है अखबार नहीं 


Sunday, January 9, 2022

डंका बज गया चुनाव का


 

मुझे उसके लफ़्ज़ों मे, चापलूसी की बू आ रहीं है

बड़ा शोर मचा है लगता है, चुनाव तू आ रहीं है

कल तक जो राजा थे, अब खुद को सेवक दिखा रहे हैं 

भ्रमित करके जनमानस को, जाल नया बिछा रहे हैं 


जो मुड़कर नहीं आए सालों मे, वो रोज पधार रहे हैं

आलीशान महलों के मालिक, झुग्गियों मे दिन गुजार रहे हैं 

जिसने जनता की आशा तोड़ी, पलट कभी देखा नहीं 

जनता जनार्दन होती है जान, अब आस से निहार रहे हैं 


शोर सराबोर चारो तरफ, अपना प्रचार कर रहे हैं 

बहला फुसला कर जनता को, फिर व्यापार कर रहे हैं 

दे दो सत्ता आज हमे, कल होगा विकास 

डिजिटल नगदी के युग मे, सौदा उधार कर रहे हैं 



अब कलम के सहारे, जनता को जगाना होगा 

एक एक "मत" की कीमत, इनको समझाना होगा 

ये बरसाती मेढ़क है, सिर्फ बरसात मे ही आयेंगे 

अगर है हितैषी जनता के, हर मौसम आना होगा 


जो सुख दुःख मे साथ रहे, वही जननायक होगा 

वोट उसी को करेंगे अब, जो नेता के लायक होगा 

जो सिर्फ अपना उल्लू सीधा करे, उसकी जरूरत नहीं 

संसद‌ मे वही पहुंचेगा, जो बुरे वक्त मे भी सहायक होगा 


जो राग द्वेष से हो परे, न सत्ता लालच मन मे हो 

जिसका जाति धर्म से बढ़कर, राष्ट्र प्रेम जीवन मे हो 

जो ना बांटे दुनियां को, जाति-धर्म की राजनीति से 

एक देश एक है हम, जिसके हर कथन मे हो 


जागो जनता बेच ना आना, फिर से अपने वोट को 

काबिल को चुनकर आना, न देखना फेंके नोट को

लालच की माला पहन, उतर न जाना बोतल मे 

करके ख्वाब का सौदा, बिक न आना चुनावी दंगल मे 



Saturday, January 1, 2022

नव वर्ष मंगलमय हो



 पुराने गिले शिकवे को अलविदा बोल

 अपनी गलतियों से सबक लेकर 

 आखिरकार इस खत्म होते साल को

 हँस कर विदा कर दो सबकुछ भूलकर।


 बीते लम्हों को रुखसत कर दो

 स्वागत है नये साल मे 

 अतीत की बुरी यादों को दफनाकर 

 खुश रहना है अब हर हाल मे।


 शुभकामनाएं दें नूतन वर्ष की 

 कोई शिकवे गिले ना रह जाए कहीं।

 शांति और प्रेम के लिए प्रार्थना करें,

 दौलत या शोहरत के लिए नहीं।


 स्वास्थ्य और उन्नति की दुआ करें।

कोई राही मंजिल से पहले ना रुके

सभी अपने परायों की सलामती मांगे

जो अपना रास्ता हैं खो चुके


बहुत मिले पर कुछ बिछड़ भी गए

इस बीतते हुए वर्ष मे

यादों मे उनको जिंदा रखना हमेशा

भुला न देना उन्हें किसी हर्ष मे


नया साल है नयी नीतियां नए नए आयाम होंगे

नयी नयी परिस्थिति से होकर छूने नए मुकाम होंगे

"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया"

यही सहृदय मेरा जग को अब यही पैगाम होंगे

     💐..... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं......💐

Sunday, December 12, 2021

आस अभी भी कश्मीर की..


 क्यों अपना ही घर हमें, छोड़कर भागना पड़ा

हुक्मरान थे नींद में, हमें जागना पड़ा

पुस्तैनी जमीन छोड़ी, सपनों का मकां गया

किलकारियों भरा आंगन, किसे पूछूँ कहांँ गया


 क्या कसूर था हमारा, क्यों जो बेदखल किया

बेबस बेकसूरों का, किस जुर्म में कतल किया

रो रहीं बहू बेटियाँ, बुजुर्ग सब हताश थे

न पनाह अपनत्व की, अपने भी लाश लाश थे


कैसे बचाई जान हमने, रात के अंधेरों में

चीखती कराहें कह रही, कश्मीर के गधेरों में

सत् सनातन के राही, करते थे शिव का ध्यान सदा 

नि:शस्त्र शास्त्र का हनन हुआ, इस बात का सबको पता 



फिर भी सभी खामोश हैं, ना हलचल कोई सदन में है 

शरणागत के भांति फिरते, अब तलक हम वतन में हैं 

 हक हमें भी अपना चाहिए, जमीं अपनी कश्मीर में 

बहुत सह लिए ज़ख़्म, बेवजह आए मेरे तकदीर में


अब कोई तो निर्णय करो, फैसले जो हक मे हो

मुस्कान सिर्फ चेहरे पे नहीं, खुशी हर रग रग मे हो

फिर से वही घर चाहिए, और वहीं बसेरा हो

अब नफरतों की शाम ढ़ले, अमन का सवेरा हो

                       

                       ....... हैरी 


Monday, November 29, 2021

क्यूँ बँट रहे हैं लोग..



जर जोरु जमीन के खातिर बँट रहे हैं लोग

जाति धर्म समुदाय के नाम पे कट रहे हैं लोग

इन्सानियत और अपनेपन को भुला चुके हैं 

धीरे-धीरे परिवार मे तभी घट रहे हैं लोग 


भाई-भाई से निभा दुश्मनी रहे यहाँ हैं लोग

पड़ोसी का जो हाल पूछते अब कहाँ हैं लोग

अब मैं भी फिरता रहता हूं खोजने को एक दुनियाँ

इन्सानियत को सबसे ऊपर समझते जहाँ हो लोग


मुँह मे राम बगल मे छुरा करते हैं सब लोग

अपनों की उन्नति देख जल मरते हैं अब लोग

उस कुंए को भी प्यासा छोड़ देती है ये दुनियाँ

शीतल जल उसका अपने गागर मे भरते हैं जब लोग


अपनों की ख़बर नहीं पर गैरों को मनाते हैं लोग

रावण के हैं भक्त बने और राम को जलाते हैं लोग

जिनके आदर्शों से चलती आ रहीं है दुनियाँ 

धीरे-धीरे उन्हीं की साख को मिट्टी मे मिलाते हैं लोग 


बेच बाप की जमीन नया कारोबार लगा रहे हैं लोग 

बुढ़ी माँ बीमार है मगर पैसा उधार लगा रहे हैं लोग 

कितने कमजोर हो गए रिश्ते दुनियां मे 

अपनों के डर से गैरों को चौकीदार बना रहे हैं लोग 


युधिष्ठिर को भुलाकर दुर्योधन बनने लगे हैं लोग 

भ्रष्टाचार और नफरत के कीचड़ मे सनने लगे हैं लोग 

अब धर्म की नीति नहीं बल्कि नीति के लिए धर्म को 

तोड़ मरोड़ कर जनता पे मड़ने लगे हैं कुछ लोग 


Tuesday, November 16, 2021

हाँ मैं एक पुरुष हूँ...



हाँ मैं एक पुरुष हूं

और पुरुषवादी भी, मगर त्रिया विरोधी कभी नहीं 


बहुत स्वाभिमानी भी हूँ 

मगर नारी का अपमान हो ये सोचता भी नहीं 


स्त्री पुरुष तो हमसफ़र हैं जिंदगी के 

एक दूसरे के खिलाफ कभी भी नहीं 


अगर समझदारी और सम्मान हो रिश्ते मे तो 

शक और विद्रोह की जगह कहीं नहीं 


अगर मिलजुल कर करे सफर का आगाज 

तो रोक सके राह ऐसी दीवार दुनियां मे बनी ही नहीं 


नर हो या नारी दोनों परमब्रह्म की संताने है 

हो ईश्वर की संतानो मे भेदभाव कभी भी नहीं 


हाँ मैं एक पुरुष हूं 

मगर स्त्री विरोधी कभी भी नहीं 

                                      (हैरी) 









Tuesday, November 9, 2021

गठन या पतन?



क्या उखाड़ लिया गठन करके

एक नए राज्य उत्तरांचल का

जिसका आज तो है ही डूबा 

ना कुछ अच्छी आस है कल का 


लाखों के बलिदान का था परिणाम 

ढेरों सपने भी सजाये थे 

इस नए राज्य के खातिर 

माताओं ने भी डंडे खाए थे 


धूल मे मिला दी कुर्बानी 

हर दिल मे ये गुबार है 

हर उत्तराखंड के क्रांतिकारी का 

हम सब पे ये उधार है 



क्या क्या सपने देखे थे उन सब ने 

क्या इस राज्य का हाल हुआ है 

यू. पी. मे थे तो कुछ तो अस्तित्व था 

अब अलग हुए तो बेहाल हुआ है 


थे सपने नए राज्य मे 

नयी उन्नति नए कारोबार होगा 

हर हाथ होगा समृद्ध और 

ना कोई बेरोजगार होगा 


आज स्थिति ऐसी हो गई 

हम पहले से भी पीछे हैं 

उड़ान भरने को नए पंख दिए थे 

सरकारों ने हाथ भी पीछे खींचे हैं 



हर युवा बेरोजगार बैठा है 

हर गरीब तरसता है निवाले को 

हर धाम ताकता है पुनर्निर्माण को 

हुक्मरान पूजते है प्याले को 


अब किससे क्या उम्मीद करें 

किससे अब हम मतभेद करे 

खुशियां मनाए इस हाल पे राज्य के 

या अलग होने पे खेद करें.....? 

                             (हैरी)