Thursday, October 26, 2023

कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है..



कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है

अर्द्ध मूर्छित है मगर बेहोश नहीं है

जो चाहे जिस भाषा शैली में गड़े 

व्यंगात्मक हो सकती है मगर रूपोश नहीं है 


कोई तारीफ लिखे कोई नाकामियाँ 

कोई व्याकुलता कोई संतोष लिखे 

कोई अमन शांति का पैगाम दे  

कोई उबलते जज्बातों का आक्रोश लिखे 


कुछ लिखते हैं अनकहे जज्बातों को 

कुछ अपने व्यंग्य का सैलाब लिखे 

कुछ धरती के मनोरम सौंदर्य का करते वर्णन 

कुछ कटु वर्णो से तेजाब लिखे 


कुछ प्रेम का सुंदर आभास लिखते हैं 

कुछ दबे कुचले लोगों की आवाज लिखे 

कुछ लिखते हैं खामोशी आपातकाल की 

कुछ 1857 की क्रांति का आगाज लिखे 


हर कोई अपने तरीके से तोड़ मरोड़ कर 

नए रचनाओं से नए शब्दों को आयाम देते हैं 

कोई फैलाते है जहर दुनियाँ मे 

कोई हर ओर शांति का पैगाम देते हैं 


बहरे है लोग भले गूंगी सरकार चाहे 

जंग जारी है कवि खामोश नहीं है 

कितनी कर लो अवहेलना विरोध मे 

कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है ||

बरदोश = छुपी हुयी 

रूपोंश = भागा हुआ, 




21 comments:

  1. 🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत आभार गुरुजी 🙏

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  4. बहुत खूब....
    सही कहा सबके मन की उमड़ घुमड़ से बनी है कविता
    बहुत सुन्दर।

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  5. बहुत जरूरी है कविता का स्पष्ट होना ... प्रभावी रचना ...

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  6. कविता स्पष्ट है बरदोश नहीं है ||
    वाह !! अति सुन्दर सृजन ।

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  7. बहुत सुंदर सृजन।

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  8. क्या बात है! बहुत सुंदर 🙏

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  9. बहुत सुन्दर सृजन

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  10. जिस दिन कविता ख़ामोश हो गई जीवन भी नहीं रहेगा

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