अब तो अनुकंपा कर दो भगवान
मन को कर दो स्थिर
मस्तिष्क मे भर दो ज्ञान
हार चुका हूँ हालातों से
पाना चाहा है सम्मान
अब तो अनुकंपा कर दो भगवान..
सोचा था कुछ कर पाऊँगा
जीवन खुशियों से भर पाऊँगा
स्मरण प्रतिक्षण तेरा मन मे
किया तेरा ही गुणगान
दे ज्ञानपुंज मिटा अज्ञान
अब तो अनुकंपा कर दो भगवान...
उठ न जाय विश्वास तुझसे
खत्म न हो आस्था है मेरी
जग को सुनाओ तो हंसता है मुझे पे
अब तू भी न सुनेगा क्या व्यथा मेरी
चंद खुशी के पल दो वरदान
अब तो अनुकंपा कर दो भगवान...
पथ प्रदर्शक है जग का तू तो
रहा फिर क्यूँ मुझसे अंजान
शरण मे अपनी मुझको भी ले लो
शांत कर मेरे मन का तूफान
अब तो अनुकंपा कर दो भगवान
अब तो अनुकंपा कर दो भगवान |
Woderfull lines
ReplyDeleteThank you so much
DeleteNice✌️
ReplyDeleteThank you
Delete👍👍
ReplyDeleteभाव भरी प्रार्थना प्रभु अवश्य सुनेंगे।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी सृजन।
बहुत-बहुत आभार
Deleteएक आस्तिक के नजरिये से बहुत ही मार्मिक व हृदय स्पर्शी रचना!
ReplyDeleteउम्मीद करते हैं कि आपकी सारी मुसिबते बहुत जल्द ही खत्म हो जाए!
खुद पर विश्वास रखना सबसे बड़ी ताकत है इंसान की इसलिए जितना ईश्वर पर हो उससे कहीं अधिक खुद पर हो फिर कोई हंसे फर्क नहीं पड़ सकता!
बहुत-बहुत आभार आपका, भगवान की दया से वैसे कोई मुसीबत तो नहीं है मगर बहुत से लोगों को देख कर उनकी परेशानी को ध्यान मे रख कर ये रचना लिखी हुयी है फिर भी आप लोगों के इस स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार और भगवान सबको खुश एवं स्वस्थ रखे
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०२ -२०२२ ) को
'तुझ में रब दिखता है'(चर्चा अंक -४३३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका बहुत-बहुत आभार Mam 🙏
Deleteमन स्थिर करना भी आपके खुद के हाथ में है ।
ReplyDeleteजी जरूर mam, पर कहते हैं ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता है, बस इस बात को ध्यान मे रखकर लिखी गई है ये पंक्तियाँ
Deleteप्रभु शायद सब्र का आकलन कर रहे हों ! विश्वास दृढ बना रहना चाहिए !
ReplyDeleteजरूर महोदय, भगवान सबको खुश एवं स्वस्थ रखे
Deleteसम्मान पाना चाहता है जो वह शायद ईश्वर के दर तक पहुँच ही नहीं पाता होगा, सुना है वहाँ तो अहंकार को तज कर आना पड़ता है
ReplyDeleteजिसको ईश्वर की कृपा की आश हो या ईश्वर के आशीर्वाद की अभिलाषा हो उसमे अहंकार तो वैसे भी नहीं होगा शायद, सम्मान से आशय सद्गुणी होना व अपने बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलने से है
Deleteबहुत-बहुत शुक्रिया अगर ऐसा कुछ विचार मे आता है तो आपसे जरूर संपर्क किया जाएगा
ReplyDeleteआर्त हृदय की करुण पुकार अवश्य सुनी जाती है। सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवर्ष 2013 मे लिखी यह कविता वास्तविक रूप से दूसरी कविता है न?
ReplyDeleteमुझे याद है कैसे शब्द खोज रहे थे आप। कैसे दीपू आस्सु और मैं हंसी ठिठोली कुछ करते हुए आपको मज़ाक में कुछ भी कह दे रहे थे और आप उन्हीं बातों के इरदगिर्द से अपनी कविता के लिए शब्द खोज और चुन लेते थे।..😄😄 और इस तरह हंसते हंसाते भी आपके कवि हृदय ने एक व्यथित मन की करुण पुकार को अपनी कविता का रूप दे दिया।। 😄👌👌 आज इस मंच में पढ़कर कविता के भावों के साथ ही साथ कविता सृजन से जुड़ी स्मृतियों से भी आनंदित हुई। 💌यूं ही अग्रसर रहो।👍👍😊
बहुत-बहुत शुक्रिया,यह मेरे द्वारा लिखी गई पहली कविता है जो आप लोगों के कहने पर ही मैंने शुरू किया था, शायद उससे पहले तो मुझे खुद भी नहीं पता था कि मैं अपने भावों को ऐसे भी व्यक्त कर सकता हूं, मैं आज जो भी लिखता हूँ या लिखने का प्रयास करता हूँ उसमे आपका भी बहुत बड़ा योगदान है, आपका बहुत-बहुत आभार
Deleteबहुत ही सुंदर रचना,
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteभावपूर्ण प्रार्थना
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार
Deleteअरूप और अदृश्य संबल ईश्वर के नाम एक भावपूर्ण अभ्यर्थना प्रिय हरीश///
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