जब तेरे ख्वाब भी बिखरेंगे तब याद करोगे तुम मुझे
कभी चलते चलते ग़र तेरा दुपट्टा सरकेगा कांधे से
जब खुद उठाओगे दुपट्टे को तब याद करोगे तुम मुझे
कैसे सड़क के पगडंडी पे तुमको खतरों से बचाता था
जब गुजरेगी छूकर बाइक कोई तब याद करोगे तुम मुझे
जब आंसुओं का नमकीन स्वाद होंठों को तेरे भिगोयेगा
जब होगी दर्द की इन्तहा तब याद करोगे तुम मुझे
कैसे सहा है तड़प मैंने जला के खुद के सपनों को
जब ख्वाब तेरा कोई टुटेगा तब याद करोगे तुम मुझे
गली के आखिरी टपरी पे जहां कटिंग चाय की बांटी थी
जब आएगी खुशबु कुल्हड़ की तब याद करोगे तुम मुझे
वो तेरे बिन कहे लफ़्ज़ों के मायने समझ जाता था मैं
जब अनसुने होंगे शब्द भी तेरे तब याद करोगे तुम मुझे
बे वजह छोड़ा था तुमने मुझे देख मेरी मुफ़लिसी को
जब पैसा होगा पर प्यार नहीं तब याद करोगे तुम मुझे
तुम जानते हो है मुझको पसंद वो भीनी खुशबु मेहंदी की
जब भी लगेगी हाथो मे तब याद करोगे तुम मुझे.....
Bhut khubbbbb..... Tab Yaad karoge tum muje...
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार sir
DeleteExcellent
ReplyDeleteThank you so much
DeleteSupreb bhaiya🥰🥰🥰🥰
ReplyDeleteExcellent sir👌
DeleteThank you so much
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 04 अप्रैल 2022 ) को 'यही कमीं रही मुझ में' (चर्चा अंक 4390 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत-बहुत आभार
DeleteSuperb lines
ReplyDeleteवाह, सुंदर और सार्थक
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
Deleteआजमाने के पैमाने.. और शब्दों की अठखेलियाँ बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबधाई
बहुत-बहुत आभार
Deleteवाह!बहुत बढ़िया 👌
ReplyDeleteसादर
आपका तहे-दिल से आभार
Deleteबहुत सुंदर! शानदार ग़ज़ल।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार...
Deleteभावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही खूबसूरत रचना!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteबे वजह छोड़ा था तुमने मुझे देख मेरी मुफ़लिसी को
ReplyDeleteजब पैसा होगा पर प्यार नहीं तब याद करोगे तुम मुझे/////
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय हरीश जी।विछोह का कारण यदि मुफलिसी हो तो दूसरे पक्ष के लिए बददुआ बन जाती है।बहुत मार्मिकता के साथ पिरोया है शब्दों में अधूरे प्रेम की व्यथा को।
शुक्रिया Mam
DeleteAwesome Bhaiya ❤️🥰😍
ReplyDeleteBahut badiya likha h😊
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