माँ जग की जननी है तो पापा पालनहार हैं
इस दुनियां मे रब का देखो वो दूजा अवतार हैं
दिन की तपिश मे है तपते रातों की नींद गंवाई है
हर कदम सिखाया चलना मुझमे उनकी परछाई है
बिन पापा अस्तित्व मेरा भी सच है मिट ही जाता
दुनियां की इस भीड़ मे अक्सर मेरा मन भी घबराता
लेकिन मेरे अकेलेपन मे साथ खड़े वो होते हैं
अपने आराम को गिरवी रखकर वो मेरे सपने संजोते हैं
पंख बने वो मेरे और मुझको सपनों का आसमान दिया
पापा ही है जिन्होंने हमको खुशियों का जहान दिया
रब से मुझको शिकवा नहीं बिन माँगे सबकुछ पाया है
शुक्रिया उस रब का जो इस घर मे मुझे जन्माया है
खुद लिए अब कुछ और मांगू इतना भी खुद गर्ज नहीं
माँ पापा रहे सदा सलामत इससे ज्यादा कुछ अर्ज़ नहीं
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार गुरुजी 🙏
Deleteखुद लिए अब कुछ और मांगू इतना भी खुद गर्ज नहीं
ReplyDeleteमाँ पापा रहे सदा सलामत इससे ज्यादा कुछ अर्ज़ नहीं
बहुत सही बात है। ऐसे ही तो होने चाहिए बच्चे
बहुत-बहुत आभार श्रीमान 🙏
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०६-२०२२ ) को
'पिता सबल आधार'(चर्चा अंक -४४६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका बहुत-बहुत आभार Mam 🙏
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
DeleteBehtareen.......
ReplyDeleteप्रिय हरीश,अपने स्नेही पिता के लिये ये स्नेहासिक्त शब्द मन को छू गये। ममता की प्रचंड अभिव्यक्ति के बीच कर्मयोगी से खड़े एकाकी पिता का त्याग और समर्पण अनकहा रह जाता है।एक भावभीनी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं ।बहुत प्यारा फोटो संलग्न किया है आपने।ईश्वर से प्रार्थना है कि अपने स्नेही माता-पिता के साथ आपका नाता सदैव अटूट और यूँ ही प्रेम पगा रहे।ढेरों शुभकामनायें और स्नेह ♥️♥️🌺🌺💖💖🎀🎀🎍🎍🎊🎊🌹🌹🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
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