Saturday, September 16, 2023

मैं किसी के लिए बेशकीमती, किसी के लिए बेकार हूँ


 मैं कब कहाँ क्या लिख दूँ

इस बात से खुद भी बेजार हूँ

मैं किसी के लिए बेशकीमती

किसी के लिए बेकार हूँ


समझ सका जो अब तक मुझको

कायल मेरी छवि का है 

मुझमे अंधकार है अमावस सा 

मुझमे तेज रवि का है 


अब कैसे पलट दूँ परिस्थितियों को 

हर रोज मुश्किलों से होता दो चार हूँ 

मैं किसी के लिए ध्रुव तारा सा 

किसी के लिए बेकार हूँ 


मैं निराकार मे भी आकर भर दूँ 

मैं सैलाब से लड़ता किनारा हूँ 

मैं सकल परिस्थिति मे खुद का भी नहीं 

मैं संकट में सदैव साथ तुम्हारा हूं 


मैं रेगिस्तान मे फूल उगाने को 

हर पल रहता तैयार हूँ 

मैं किसी के लिए आखिरी उम्मीद 

किसी के लिए बेकार हूँ 


मैं भेद नहीं करता धर्मों मे 

पर शंख, तिलक मेरे लिए अभिमान है 

मैं भक्त भले प्रभु श्रीराम का 

पर एक मेरे लिए गीता और कुरान है 


मैं छेड़छाड़ नहीं करता संविधान से 

पर हक के लिए लड़ता लगातार हूँ 

मैं किसी के लिए सच्चा नागरिक 

किसी के लिए बेकार हूँ 





24 comments:

  1. बहुत ही उम्दा रचना। एक एक पंक्ति बहुत ही बेहतरीन और उम्दा है 👍

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया मनीषा जी

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  2. Yar bhaiya kaise likh lete ho dil ko chu gya sacchi🥰🥰🥰🥰🥰🥰

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  3. Bhot sunder wow 🤩🤩🤩🤩🤩🤩😍😍😍😍😍😍

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  4. जब तक आप दूसरों को नहीं पढोगे आप कितना भी अच्छा लिखो कुछ नहीं होगा | बहुत उम्दा लिखते हो |

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया गुरुदेव 🙏

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  5. Bahut hi umda Kavi Shahab... Keep it up ✍️

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  6. बहुत सुन्दर सृजन ।

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  7. बहुत सुंदर रचना

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  8. अच्छा लिखा है

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  9. सचमुच... बेहतरीन अभिव्यक्ति,सारगर्भित रचना।
    सादर।
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. मेरी कविता को पांच लिंकों का आनंद मे शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद गुरुदेव

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  11. वाह! लाजवाब सृजन...वैसे सबका हाल कुछ ऐसा ही है, पर आपने इसको शब्दों में बहुत सुंदरता से पिरोया है।

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  12. बहुत सुन्दर लिखा है आपने

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