देख कर लोकसभा का परिणाम
मन बहुत ही खिन्न हो गया
वो तो संगठित रहे पूरे जुनून से
मगर हिन्दू छिन्न भिन्न हो गया
जो सत्य सनातन का सारथी बना
उसके साथ ही बहुत बड़ा छल हो गया
जिनसे हर हाथ को दिया नयी ताकत
वो ही असहाय और निर्बल हो गया
जिसने प्रभु श्रीराम का मंदिर बनवाया
वह बहुमत भी ना पा पाया
हुए सफल राम का अस्तित्व पूछने वाले
हाय ये कैसा कलयुग आया
हिन्दू अपनी इसी भूल के वजह से
इतिहास मे भी कई बार हारा है
जिसको ये समझ रहे नया सवेरा
ये भूल डुबाने वाली दुबारा है
बहुत दुखी होंगे लखन और हनुमान
मन कुंठित प्रभु श्रीराम का भी होगा
जिन्होंने निर्बल किए है हाथ सनातन के
क्या उनको एहसास अंजाम का भी होगा?
सब भूल गए संदेशखाली और पालघर
क्या याद नहीं ओवैसी के मंसूबे
तुम एक को हटाने के खातिर
पूरे राष्ट्र को ही ले डूबे
बहकावे मे आकर गैरों के
तुमने ये कैसा कृत्य कर डाला
सिंचित कर दिया विष व्यापत तनों को
और खुद के जड़ों को ही जला डाला ||
Written by HARISH
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विडंबना हमारे देश की ! दिल्ली के दो इलाकों में देशविरोधी, सनातन विरोधी दो उम्मीदवारों को तकरीबन तेरह लाख मत प्राप्त होते हैं, यह तो सिर्फ दिल्ली के दो छोटे इलाकों की बात है सोचिए पूरे देश का क्या हाल होगा ! सोचना भी क्या है सच तो सामने है ही 😡
ReplyDeleteअति पीड़ित हैं हम भी इस परिणाम से महोदय,
DeleteParam satya ... Behtareen pankiyan
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteसच कहूँ तो, ये कविता सिर्फ़ शब्द नहीं, एक गहरी कसक है। लेखक का दर्द हर पंक्ति में साफ झलकता है। राजनीति से ज़्यादा ये भावनाओं की लड़ाई लगती है। इसमें सिर्फ़ शिकायत नहीं, एक चेतावनी भी है, कि जब हम बिखरते हैं, तो अपनी ही ताकत खो देते हैं। आपकी कविता में आस्था, राजनीति और आत्ममंथन तीनों का मेल है। सच्ची, ईमानदार और सोचने पर मजबूर करने वाली रचना।
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