सिहनी ने तलवार लिया नहीं कर मे
या माँ ने जननी बन्द कर दी
लक्ष्मीबाई अब घर-घर में
क्यों इतने कमजोर बेबस बन गये
क्या रक्त सूख गया काली के खंजर मे
क्यों लटक रहे कुछ फंदे से
क्यों विलाप कर रही कुछ पीहर मे,
अरे इस देश मे तो देवियाँ पूजी जाती है,
फिर बेटी क्यूँ मृत लिपटी मिलती है चादर में
क्या आदिशक्ति भी शक्तिहीन हो गयी
या दानव शक्ति प्रबल हो गयी भूधर में
क्या कान्हा के सारे दाव-पेच फेल हो गये
या प्रभाव फीका हो गया नीलकंठ के जहर मे
या फिर कलयुग अपने चरम सीमा पे है.
क्या सब दैवीय शक्ति विलुप्त हो गये थे द्वापर मे
अगर नवरात्रि मानते है सब श्रद्धा से
फिर क्यूँ खुद की बेटी सहमी है डर मे
प्रश्नो के इस भंडार मे असमंजस
कहीं खुद का सिर ना दे मारूं पत्थर मे
सिहनी से उसका शावक चुरा ले
इतना साहस कहाँ से आ गया गीदड़ मे
श्रृंगार सारे छीन रहा बाहुबल को
वर्ना कभी शक्ति कोपले फूटते थे इस विरान बंजर में
हनुमान बन बैठे सभी शक्ति वाहिनियां
वर्ना कोई समुद्र अड़ंगा बनता ना डगर मे
अब कौन बनेगा इस कलयुग का जामवंत
जो ला पायेगा बदलाव इनके तेवर मे
खुद की पहचान और अस्तित्त्व के लिए
नये प्राण फूकने होंगे इस तन जर्जर मे
उठा भाल तलवार बन खुद की रक्षक तू
कब तक लिपटे रहोगी जेवर मे ||
Great bhaiya ji 😀👍👍👍👍👍
ReplyDeleteThank you so much
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार गुरुजी 🙏
Deleteवाह ... नारी के सहस का आह्वान कर रहे हैं आप ... शक्ति कदम कदम पर विराजित है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार महोदय 🙏
DeleteSuperbly written, awesome lines
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