Saturday, January 1, 2022

नव वर्ष मंगलमय हो



 पुराने गिले शिकवे को अलविदा बोल

 अपनी गलतियों से सबक लेकर 

 आखिरकार इस खत्म होते साल को

 हँस कर विदा कर दो सबकुछ भूलकर।


 बीते लम्हों को रुखसत कर दो

 स्वागत है नये साल मे 

 अतीत की बुरी यादों को दफनाकर 

 खुश रहना है अब हर हाल मे।


 शुभकामनाएं दें नूतन वर्ष की 

 कोई शिकवे गिले ना रह जाए कहीं।

 शांति और प्रेम के लिए प्रार्थना करें,

 दौलत या शोहरत के लिए नहीं।


 स्वास्थ्य और उन्नति की दुआ करें।

कोई राही मंजिल से पहले ना रुके

सभी अपने परायों की सलामती मांगे

जो अपना रास्ता हैं खो चुके


बहुत मिले पर कुछ बिछड़ भी गए

इस बीतते हुए वर्ष मे

यादों मे उनको जिंदा रखना हमेशा

भुला न देना उन्हें किसी हर्ष मे


नया साल है नयी नीतियां नए नए आयाम होंगे

नयी नयी परिस्थिति से होकर छूने नए मुकाम होंगे

"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया"

यही सहृदय मेरा जग को अब यही पैगाम होंगे

     💐..... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं......💐

Sunday, December 12, 2021

आस अभी भी कश्मीर की..


 क्यों अपना ही घर हमें, छोड़कर भागना पड़ा

हुक्मरान थे नींद में, हमें जागना पड़ा

पुस्तैनी जमीन छोड़ी, सपनों का मकां गया

किलकारियों भरा आंगन, किसे पूछूँ कहांँ गया


 क्या कसूर था हमारा, क्यों जो बेदखल किया

बेबस बेकसूरों का, किस जुर्म में कतल किया

रो रहीं बहू बेटियाँ, बुजुर्ग सब हताश थे

न पनाह अपनत्व की, अपने भी लाश लाश थे


कैसे बचाई जान हमने, रात के अंधेरों में

चीखती कराहें कह रही, कश्मीर के गधेरों में

सत् सनातन के राही, करते थे शिव का ध्यान सदा 

नि:शस्त्र शास्त्र का हनन हुआ, इस बात का सबको पता 



फिर भी सभी खामोश हैं, ना हलचल कोई सदन में है 

शरणागत के भांति फिरते, अब तलक हम वतन में हैं 

 हक हमें भी अपना चाहिए, जमीं अपनी कश्मीर में 

बहुत सह लिए ज़ख़्म, बेवजह आए मेरे तकदीर में


अब कोई तो निर्णय करो, फैसले जो हक मे हो

मुस्कान सिर्फ चेहरे पे नहीं, खुशी हर रग रग मे हो

फिर से वही घर चाहिए, और वहीं बसेरा हो

अब नफरतों की शाम ढ़ले, अमन का सवेरा हो

                       

                       ....... हैरी 


Monday, November 29, 2021

क्यूँ बँट रहे हैं लोग..



जर जोरु जमीन के खातिर बँट रहे हैं लोग

जाति धर्म समुदाय के नाम पे कट रहे हैं लोग

इन्सानियत और अपनेपन को भुला चुके हैं 

धीरे-धीरे परिवार मे तभी घट रहे हैं लोग 


भाई-भाई से निभा दुश्मनी रहे यहाँ हैं लोग

पड़ोसी का जो हाल पूछते अब कहाँ हैं लोग

अब मैं भी फिरता रहता हूं खोजने को एक दुनियाँ

इन्सानियत को सबसे ऊपर समझते जहाँ हो लोग


मुँह मे राम बगल मे छुरा करते हैं सब लोग

अपनों की उन्नति देख जल मरते हैं अब लोग

उस कुंए को भी प्यासा छोड़ देती है ये दुनियाँ

शीतल जल उसका अपने गागर मे भरते हैं जब लोग


अपनों की ख़बर नहीं पर गैरों को मनाते हैं लोग

रावण के हैं भक्त बने और राम को जलाते हैं लोग

जिनके आदर्शों से चलती आ रहीं है दुनियाँ 

धीरे-धीरे उन्हीं की साख को मिट्टी मे मिलाते हैं लोग 


बेच बाप की जमीन नया कारोबार लगा रहे हैं लोग 

बुढ़ी माँ बीमार है मगर पैसा उधार लगा रहे हैं लोग 

कितने कमजोर हो गए रिश्ते दुनियां मे 

अपनों के डर से गैरों को चौकीदार बना रहे हैं लोग 


युधिष्ठिर को भुलाकर दुर्योधन बनने लगे हैं लोग 

भ्रष्टाचार और नफरत के कीचड़ मे सनने लगे हैं लोग 

अब धर्म की नीति नहीं बल्कि नीति के लिए धर्म को 

तोड़ मरोड़ कर जनता पे मड़ने लगे हैं कुछ लोग