Tuesday, February 28, 2023

तेरी खामोशी, मेरा साज...



बिखरे अल्फ़ाज़ों की माला,
गढ़ना कभी आसान न था,
तेरे लबों की खामोशी को
पढ़ना कभी आसान न था।

फिर भी दिल की सुनी सदा,
भावनाओं को शब्दों में ढाला,
लफ़्ज़ों को पिरोया जब मैंने,
बन गई प्रीत की इक माला।

अब बस तुझ पर ही लिखना है,
तेरी ही आंखों को पढ़ना है,
तेरी खामोशी को लफ़्ज़ देना,
अपनी तन्हाई से लड़ना है।

लिखना है वो बिछड़ने का मंज़र,
लिखने हैं प्रेम के वो पल,
लिखनी है तेरी मेरी दास्तां,
हर वो मोड़, हर वो पहल।

जहाँ लिए थे वादे हमने,
कभी न होंगे एक-दूजे से दूर,
ज़िंदगी भर का साथ था माना,
उससे कम कुछ था न मंज़ूर।

तो फिर कैसे सब खत्म हुआ,
पल भर में बिखर गई बात,
एक बार तो आकर पूछ लो,
तेरे बिन कैसे हैं मेरे हालात।

अपने दर्द का घूंट अकेले पीता हूं,
तेरा साया आज भी मेरे दर से नहीं जाता,
तू भले ही दूर है अब मुझसे,
मगर मेरे भीतर से नहीं जाता।



Thursday, December 15, 2022

क्या करूँ इस सड़क का अब...?


अब सड़कों का जाल बिछाने 
लगे हुए हैं गाँव मे
जब लोग सारे करके पलायन 
जा चुके शहर, किराये के मकां मे 

जब जरूरत थी गाँव को 
मूलभूत सुविधाएं और रोड की 
तब ना दर्द का एहसास था किसी को 
ना फिक्र थी किसी की चोट की 

कैसे जननी जनती थी शिशु को 
नदी नाले और डोली मे 
कैसे वृद्ध ने हार कर तोड़ी सांसे 
कितना दुःख डाला गाँव की झोली मे 

मीलों पैदल चलकर माँ बहने 
पानी ढोकर लाती थीं 
करके खून पसीने का सौदा 
दो वक्त की रोटी खाती थी 

बच्चों ने जान हथेली मे रख कर 
थोड़ी बहुत शिक्षा पायी थी 
गहरी खाई और रपटते रास्तों मे 
बहुतों ने जान भी गंवाई थी 

अब बने है गाँव के हीतेसी 
जब लाखों गाँव उजड़ गए 
लाखों घर हो गए बंजर 
लाखों अपनों से बिछड़ गए 

अब उस सड़क के क्या मायने 
जिस पर चलने को लोग नहीं 
अब ना विरान मकां मे वो हलचल रहीं 
जिनका खुशियो से मिलन का संजोग नहीं 

आज भी शहर की चारदीवारी मे कैद 
बहुत अम्मा बाबा रोते हैं 
अपने गाँव के बाखली को याद करके 
बुढ़ी आंखे खुद को भीगोती हैं 

अब भी वक्त है कर दो जीर्णोद्धार 
कुछ रुके हुए हैं जो गाँव मे 
उस बुढ़े बरगद तक पहुंचा दो पानी 
हमारा बचपन गुजरा है जिसकी छांव मे



 

Wednesday, October 26, 2022

दोगलापन से इन्कार है....


 देश में  निश्चल और निष्कपट राज सबको चाहिए

जो 70 वर्षो से मिला नहीं वो आज सबको चाहिए

कैसी दोहरी मानसिकता ले के जी रहे हैं लोग 

जाने क्यूँ नफ़रतों का जहर पी रहे हैं लोग ?


क्यूँ नहीं पूछता है उनसे कोई आज भी  

डुबो दी देश की नैया और 70 वर्ष किया राज भी 

आजकल जो ये बात हिन्दू हित की हो रहीं 

गुर्दे छिल रहे है जहाँ के, एक कौम दिन रात रो रहीं 


होके अपनी धरती के भी, अत्याचार सहे मुगलों के 

झेला जजिया कर भी और हुक्म माने  पागलों के 

सभी प्रसन्न थे जब हिन्दू घर मे था पिट रहा 

मंदिरों को थे तोड़ रहे और सनातन था मिट रहा !?


थे लुटेरे वो सभी लूटने तो आए थे

घर के जय चंदो के बदौलत वो भारतभूमि मे टिक पाए थे ।

आज इतिहास जिनका झूठा गुणगान करता है

 बादशाह महान वो हत्यारे खुद को कहते आये थे ।

 

 कैद करके  बाप को भाई का सीना चीर कर 

वो सुल्तान महान  कैसे जो हत्या करके बैठा तासीर पर 

पवित्र मंदिरों को लुटा जिसने बस्तियाँ उजाड़ दी 

गलत इतिहास पढ़ा के अब तक कई पुश्तें  बिगाड़ दी 


ना कोई गलत पढ़ेगा अब; ना लुटेरों का बखान होगा 

अब शिवा जी, महाराणा और पृथ्वीराज का गुणगान होगा 

कैसे गोरा बादल ने अकेले मुगलिया सल्तनत हिला दी 

शीश कटा कर उनके केवल धड़ ने जीत ने दिला दी 


सब ही थे दगाबाज, फरेब था उनके खून में,

इंसानियत का कत्ल करते थे वो जड़ जुनून में 

अय्याशी और मक्कारी में उनका भाग्य तय हुआ

फिर देश बचाने हेतु  सम्राट चन्द्रगुप्त का उदय हुआ 


जब सह रहा था सितम हिन्दू ,सबको खुशी थी जीने में 

अब अपना हक मागने लगे तो साँप लगे लोटने सीने मे 

बात होती  मोबलॉन्चिंग पर, कश्मीरी हिन्दु पे आँख बंद हैं 

बस यही दोगलापन तुम्हारा हमको वर्षो से ना पसंद है