जागृत होते हैं रस, छंद, अलंकार और चौपाई
फिर तुकांत मिलाने को
शब्दों मे होती है लड़ाई
भाव उमड़ते हैं हर रस के
करुण, रौद्र, वीर और सहाय
छंदो का करके उचित प्रबंध
कवियों ने काव्य की अलख जगाए
चौपाई का हर एक चरण ही
मात्राओं का बनता नियत निकाय
अलंकार का सही शब्द नियोजन
कविता मे मिठास का रस भर जाय
कभी उपमा से कोयला भी बनता चांद
कभी हास्य रस गुदगुदी लगाए
कभी रौद्र रस क्रोध की ज्वाला भर दे
कभी करुण रस अश्कों से अश्रु बहाए
कितना सुंदर होता है ये समायोजन
जो हृदय मे प्रसन्न्ता भर देती है
एक कवि की बोल उठती है कल्पना
तब कविता जन्म लेती है ||