Thursday, June 9, 2022

बगावत की लहर.....


 क्यूँ बगावती तेवर हैं लोगों के

क्यूँ देश जल रहा दंगों के आग मे

फिर किसने लिख दी नफरत के कलम से

ये विध्वंस राष्ट्र के भाग मे


क्यूँ मरने मारने की खबर आती है 

क्यूँ धर्म पे बात विवाद हो रहे हैं पैनलों मे

क्यूँ नफरत के बीज़ बोते सुनायी देते हैं 

कुछ हुक्मरान टीवी चैनलों मे


क्या देश अपने भाई चारे का

अस्तित्व खोकर रह गया

जो कल तक था सभी धर्मों का देश

अब चंद लोगों का बन कर रह गया


वो हिन्दू मुश्लिम करके अपना

वोट बैंक तगड़ा कर रहे

ये ना समझ उनकी बातों मे आकर

आपस मे झगड़ा कर रहे


पढ़े लिखे होकर भी सभी

जाहिल सी हरकत करते हैं

खुद के सोच का गला घोंट कर

जमूरे सी करतब करते हैं


सिर्फ दंगों से ना देश जला रहा 

तुम्हारा भविष्य भी है जल रहा

वो तुमको सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ने वाला 

तुमको खाक की धूल सा कुचल रहा


अब तो जागो मेरे देश की जनता

कुछ अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करो

छोड़ो आपस की रंजिशें और

देश के विकास मे सहयोग करो



Thursday, May 12, 2022

मन करता है....

 

मन करता है दूर कहीं 

डूबते सूरज को देखूं

शांत बहते किसी सागर मे

एक कंकड़ तबीयत से फैंकू 


कुछ पल छीन कर इस दुनिया से

खुद के पूरे कुछ ख्याब करूँ

मन करता है पंख फैलाकर

इस नीलगगन की सैर करूं


ये घुटन, पाबंदी और जिम्मेदारी

सब कुछ पल भर मे उतार दूँ 

मन करता है सदियों की ज़िन्दगी 

बस एक पल मे ही गूजार दूँ 


अब कैसे बयां करूँ शब्दों में 

कितना कुछ दबाया है मन मे 

मन करता है लिखता जाऊँ 

क्या क्या सहा है इस जीवन मे... 

                                  (हैरी)



Thursday, April 28, 2022

बहुत याद आते हैं वो दिन....

 



बहुत याद आते है वो दिन

वो प्राईमरी की कक्षाएं, 

वो जूनियर की यादें

वो हाई स्कूल की यारी

और पेपरों की तैयारी|


वो इंटर की बचकानी बातें

वो प्रिन्सिपल से डर

वो स्कूल से ट्यूशन

और ट्यूशन से घर|


वो कॉलेज के लेक्चर

वो कैन्टीन की चाय

वो बिल के लिए बहस

और बेवजह की लड़ाई|


वो नोट्स की शेयरिंग (Sharing) 

वो कुछ भी कर जाने वाली डेयरिंग (Daring) 

वो वन (One) नाइट फाइट की थ्योरी (Theory) 

और पुराने प्रैक्टिकल नोटबुक की चोरी|


वो दोस्तों के साथ वैकेसन (Vacation) 

वो फाइनल एक्जाम की टेंशन

वो हास्टल की आखिरी रात

और वो हमेसा टच मे रहने वाली बात|




अब भी भूला नहीं हूँ मैं

वो स्कूल से कालेज तक का सफर

बहुत दोस्त मिले कुछ बिछड़ भी गए

बस इन्हीं यादों के सहारे

कर रहा हूं जिंदगी की गुजर बसर...

               शुक्रिया दोस्तों 

Sunday, April 3, 2022

तब याद करोगे तुम मुझे...


 जब अंधेरी रातों में कोई टूटा ख्वाब जगायेगा 

जब तेरे ख्वाब भी बिखरेंगे तब याद करोगे तुम मुझे


कभी चलते चलते ग़र तेरा दुपट्टा सरकेगा कांधे से 

जब खुद उठाओगे दुपट्टे को तब याद करोगे तुम मुझे 


कैसे सड़क के पगडंडी पे तुमको खतरों से बचाता था 

जब गुजरेगी छूकर बाइक कोई तब याद करोगे तुम मुझे 


जब आंसुओं का नमकीन स्वाद होंठों को तेरे भिगोयेगा 

जब होगी दर्द की इन्तहा तब याद करोगे तुम मुझे 


कैसे सहा है तड़प मैंने जला के खुद के सपनों को 

जब ख्वाब तेरा कोई टुटेगा तब याद करोगे तुम मुझे 


गली के आखिरी टपरी पे जहां कटिंग चाय की बांटी थी

जब आएगी खुशबु कुल्हड़ की तब याद करोगे तुम मुझे 


वो तेरे बिन कहे लफ़्ज़ों के मायने समझ जाता था मैं 

जब अनसुने होंगे शब्द भी तेरे तब याद करोगे तुम मुझे 


बे वजह छोड़ा था तुमने मुझे देख मेरी मुफ़लिसी को 

जब पैसा होगा पर प्यार नहीं तब याद करोगे तुम मुझे 


तुम जानते हो है मुझको पसंद वो भीनी खुशबु मेहंदी की 

जब भी लगेगी हाथो मे तब याद करोगे तुम मुझे..... 



Wednesday, March 16, 2022

आखिर क्यों बिक रहा है पानी..


 दुनिया मे एक तिहाई  होकर भी 

बोतलों में क्यों बिक रहा पानी

क्यों  बैसाखी के भरोसे हैं दफ्तर,

 हताश निराश भटक रही है जवानी...


चश्मे का नंबर बढ़ा हुआ है 

घुटने का दर्द करता बयां कहानी 

पके बालों से चल रही सरकारें

बेरोजगार बैठीं है युवा जवानी


चंद मिनटों के काम में यहां

घंटों लगा देते हैं वृद्ध सेनानी

देश कछुओं के झुंड में फंसा  ...

खरगोश सी व्याकुल बैठी है जवानी


सत्ता भी उन से चल रहीं

जिनको परिवर्तन लगता है नादानी 

21 वीं सदी मे भी फंसे हैं लंगोट में 

जहां सूट बूट मे तैयार जवानी 


मैं ये नहीं कहता नाकाबिल है ये सब 

बस उम्र ने बढ़ायी है सब की परेशानी 

उचित सुविधा और सम्मान सेवानिवृत्त लें 

नव जोश लिए परिवर्तन को आतुर है जवानी 


बूढ़ा शेर भी असहाय हो जाता है 

फिर इंसान के बुढ़ापे पर कैसी हैरानी 

अपार भंडार है पर गुणवत्ता शून्य 

तभी इतना महँगा बिकने लगा है पानी।



Tuesday, March 8, 2022

स्त्री तेरी कहानी..


 

दामन मे है अश्क, भाग्य भी क्या खूब पाया है
जिसको समझा अपना, हर वो शख्स पराया है
विश्वास करूँ किस पर, किसको अपनी तकलीफ कहूँ
कब तक खामोश रहकर मैं, अपनों का हर दर्द सहूँ

हर युग मे ही दर्द सहा है, हर वक्त दुःख ही पाया है
बेटी होना अगर गुनाह है, फिर मुझे क्यूँ जन्माया है
कभी जली दहेज के लिए, कभी हालातों ने सताया है
आखिर मैंने ही क्यूँ जग मे, अश्क बहाने को जन्म पाया है

अब ना देना जीवन दोबारा प्रभु, अगर हालात ना बदल सको
या बदल दो दृष्टि समाज की, अगर ज़ज्बात ना बदल सको
एहसास करा इस जग को मेरा, मुझमे भी तेरा अंश है
मैं ही हूँ इस जग की जननी, मुझसे ही इसका वंश है

कुल का दीपक देकर जग को, कुलदीप मैंने जलाये हैं
फिर भी प्रत्युपकार मे इस जग से, सिर्फ आशु ही पाए हैं
माना दया की प्रतिबिंब भी मैं, धीरज का प्रतिरूप भी हूँ
करुणा के सागर लिए नयनों मे, सहनशीलता की स्वरूप भी हूँ

पर थक चुकी हूं रो रो कर, अब मैं भी हँसना चाहती हूं
खुली हवा मे चंद लम्हें, मैं भी साँस लेना चाहती हूं
कुछ सपने है मेरे भी, मैं उन्हें जीना चाहती हूं
मांग कर देख लिया जग से, अब कुछ छीन कर पाना चाहती हूँ

मैं काली, दुर्गा, झाँसी का रूप, ये याद दिलाना चाहती हूं
भूल चुका जिस नारी को जग, मैं उससे मिलाना चाहती हूं
लेटे जिसके चरणों मे 'शिव', उस नारी को जगाना चाहती हूं
मिला जो सीता सावित्री को, वो सम्मान पाना चाहती हूं
मैं वो सम्मान पाना चाहती हूँ.......


Friday, March 4, 2022

पढ़ा लिखा बेरोजगार...




खोने को कुछ नहीं, पाने को पूरा आसमान पड़ा

व्याकुल विचलित एक शख्स, असमंजस में जो खड़ा

दोहरी मनोदशा पे शायद, हो रहा सवार है

कोई और नहीं साहिब, एक पढ़ा लिखा बेरोजगार है




एक उथल पुथल सोच में, निकला वो खुद की खोज में

रात रात भर जाग कर, दब चुका सपनों के बोझ में

भँवर से तो निकल आया, अब नौका पड़ी मझधार है

असहाय वो, देश का भविष्य, पढ़ा लिखा बेरोजगार है




मंजिल पाने को आतुर,अवसरों से कोसों दूर ...

आज नालायक हो गया, जो कल तक था घर का गुरूर

माथे पे शिकन की लकीर लिए, हालातों से लाचार है

किस्मत और दुनियाँ से लड़ता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है





कागज की रद्दी सी अब, लगती दर्जनों डिग्रियाँ...

मंदिर मस्जिद में व्यस्त देश, रोजगार की किसे फिक्र यहाँ

वक्त का साथ भी छूटा सा लगे, उम्मींदों का हारा परिवार है

निराशा मे आशा को ढूंढता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है




मनोबल टूटा क‌ई दफा, अपनों के तिरस्कार से

निकम्मा, निठल्ला, क्या कुछ न सुना, सरे आम रिश्तेदार से।

फिर भी हौसले बांध, निसहाय संघर्षरत, तैयार है...

डगमगाते कदमों को संभालता, पढ़ा लिखा बेरोजगार है।




चाचा फूफा आयोग में नहीं, जीजा कोई न किसी विभाग में,

काबिलियत कम पड़ जाती, सिर चढ़ती भाई-भतीजावाद में...

कैसे कहूं क्या कुछ सहता है,ये तो बस एक सार है,

फिर भी सफलता की आश लगाए, हर पढ़ा लिखा बेरोजगार है।