क्यूँ देश जल रहा दंगों के आग मे
फिर किसने लिख दी नफरत के कलम से
ये विध्वंस राष्ट्र के भाग मे
क्यूँ मरने मारने की खबर आती है
क्यूँ धर्म पे बात विवाद हो रहे हैं पैनलों मे
क्यूँ नफरत के बीज़ बोते सुनायी देते हैं
कुछ हुक्मरान टीवी चैनलों मे
क्या देश अपने भाई चारे का
अस्तित्व खोकर रह गया
जो कल तक था सभी धर्मों का देश
अब चंद लोगों का बन कर रह गया
वो हिन्दू मुश्लिम करके अपना
वोट बैंक तगड़ा कर रहे
ये ना समझ उनकी बातों मे आकर
आपस मे झगड़ा कर रहे
पढ़े लिखे होकर भी सभी
जाहिल सी हरकत करते हैं
खुद के सोच का गला घोंट कर
जमूरे सी करतब करते हैं
सिर्फ दंगों से ना देश जला रहा
तुम्हारा भविष्य भी है जल रहा
वो तुमको सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ने वाला
तुमको खाक की धूल सा कुचल रहा
अब तो जागो मेरे देश की जनता
कुछ अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करो
छोड़ो आपस की रंजिशें और
देश के विकास मे सहयोग करो
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार गुरुजी 🙏
DeleteBhut saraahniya sabd hai... Sir
ReplyDeleteThank you so much
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका. तहेदिल से आभार प्रकट करना चाहता हूँ आपने मेरी रचना को आज के अंक में शामिल किया. 🙏🙏🙏
Deleteवर्तमान समय की सच्चाई को व्यक्त करती
ReplyDeleteप्रभावी और सचेत करती कविता
बहुत खूब
बहुत-बहुत आभार जी
Deleteसमसामयिक रचना ।
ReplyDeleteशायद सत्ता से दूर रहना बर्दाश्त नहीं हो रहा । ये सब प्रायोजित झगड़े हैं ।
सही कहा आपने mam...
DeleteThank you
ReplyDeleteवो हिन्दू मुश्लिम करके अपना
ReplyDeleteवोट बैंक तगड़ा कर रहे
ये ना समझ उनकी बातों मे आकर
आपस मे झगड़ा कर रहे
सही कहा ये नासमझी जनता की है जो सियासी लफड़ों में फँसकर अपनी ही बर्बादी कर रहे हैं
बहुत सुन्दर ...लाजवाब सृजन
शुक्रिया... मेरे ब्लॉग पे पधारने के लिए
DeleteWowwwwww🙏
ReplyDeleteप्रिय हरीश सम सामयिक विषय पर एक संवेदन रचना लिखी है आपने।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
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