गालियाँ गूंजती रहीं... और टी.वी. चलता रहा।
दर्द फर्श पर बह गया,
मगर घर की इज़्ज़त सलामत रही…"
🔴 घर — जहाँ हिंसा को 'परिवार का मामला' कहा जाता है
घर, जिसे सबसे सुरक्षित जगह माना जाता है,
कई औरतों, बच्चों और यहाँ तक कि पुरुषों के लिए सबसे बड़ा पिंजरा बन चुका है।
हर दिन, लाखों आत्माएँ दीवारों के बीच घुट रही हैं —
कुछ आवाजों की दम घोंट दिया जाता है,
कुछ के आँसू "घर की बात" कहकर पोंछ दिए जाते हैं।
🔸 घरेलू हिंसा क्या सिर्फ शारीरिक होती है?
नहीं।
घरेलू हिंसा सिर्फ थप्पड़ों, लातों या जलती सिगरेट से नहीं होती।
वो जब एक पति हर बात पर चिल्लाता है — ये मानसिक हिंसा है।
जब एक पत्नी लगातार ताने देती है — ये भावनात्मक उत्पीड़न है।
जब एक सास बहू की हर चीज़ पर हुक्म चलाती है — ये भी हिंसा है।
जब एक बच्चे से उसका आत्मविश्वास छीन लिया जाता है — वो भी घरेलू हिंसा है।
हिंसा का सबसे घातक रूप वो होता है — जो दिखाई नहीं देता।
🔹 क्यों चुप रहते हैं पीड़ित?
“लोग क्या कहेंगे”
“बच्चों का क्या होगा”
“घर टूट जाएगा”
“कहाँ जाएँगे?”
“इतने सालों से सहा है, अब क्या फर्क पड़ेगा…”
समाज ने डर इतना गहरा बो दिया है कि लोग दर्द में जीना सीख लेते हैं,
पर सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
🔸 कुछ चीखें जो सुनाई नहीं देतीं…
राधा रोज़ पति के हाथों पिटती है,
पर सुबह फिर बिंदी लगाकर ‘सुशील पत्नी’ बन जाती है।
आरव, एक 12 साल का बच्चा,
हर दिन अपने पिता की गालियों से, माँ की आँखों से डरता है —
पर कहता है: “पापा तो अच्छे हैं, बस गुस्सा जल्दी आ जाता है।”
शमीमा, एक पढ़ी-लिखी महिला,
सिर्फ इसलिए चुप है क्योंकि तलाक ‘कबीले की इज़्ज़त’ मिटा देगा।
हर रोज़, दुनिया भर में हज़ारों महिलाएँ, पुरुष और बच्चे अपने ही घर की चारदीवारी में हिंसा का शिकार होते हैं।
भारत जैसे देश में, जहाँ परिवार को ‘संस्कार’ का गढ़ माना जाता है, वहीं पर घरेलू हिंसा सबसे अनदेखा अपराध बन चुका है।
🔴 घरेलू हिंसा — एक मौन महामारी
“जहाँ सबसे ज़्यादा प्रेम होना चाहिए था,
वहीं सबसे ज़्यादा चीखें दबा दी जाती हैं…”
📊 भारत में घरेलू हिंसा के वास्तविक आँकड़े:
(Source - magazines and Google)
🔸 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) - 2023 रिपोर्ट के अनुसार:-
33.1% विवाहित महिलाएँ भारत में अपने जीवनकाल में कभी न कभी घरेलू हिंसा की शिकार रही हैं।
हर 4 में से 1 महिला ने माना कि पति या ससुराल वालों ने उन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया।
2023 में 66,692 केस दर्ज हुए "Cruelty by Husband or Relatives" (IPC 498A) के तहत — यानी औसतन हर 8 मिनट में एक मामला।
🔸 UN Women और WHO के अनुसार:
दक्षिण एशिया में भारत उन देशों में शामिल है जहाँ घरेलू हिंसा की रिपोर्टिंग सबसे कम होती है।
WHO के मुताबिक, दुनियाभर की 1 में से 3 महिलाएँ अपने जीवनकाल में intimate partner violence का शिकार होती हैं।
🔸 बाल घरेलू हिंसा:
UNICEF के मुताबिक, भारत में हर दूसरा बच्चा किसी न किसी रूप में मानसिक या शारीरिक हिंसा का शिकार होता है।
अधिकतर बच्चों में यह हिंसा "घर के अंदर" होती है — माँ-बाप या रिश्तेदारों द्वारा।
⚫ लेकिन ये सिर्फ दर्ज केस हैं…
ये आंकड़े सिर्फ वो हैं जो रिपोर्ट किए गए।
भारत में घरेलू हिंसा की असली संख्या इससे कई गुना ज़्यादा है — क्योंकि:-
पीड़िता को सामाजिक बदनामी का डर है
आर्थिक निर्भरता उन्हें चुप रखती है
पुलिस में जाने से ‘घर की इज़्ज़त’ पर सवाल उठता है
और कई बार परिवार ही शिकायत वापस लेने को मजबूर कर देता है
“सब सह लो… पर घर मत तोड़ो” — यही कहता है समाज।
🧠 घरेलू हिंसा के प्रभाव:
शारीरिक चोट, गर्भपात, अपंगता, मृत्यु
मानसिक डिप्रेशन, आत्महत्या के विचार, PTSD (Post-Traumatic Stress Disorder.),
आर्थिक नौकरी छूटना, वित्तीय निर्भरता
सामाजिक अलगाव, आत्म-विश्वास की कमी, बच्चों पर नकारात्मक असर
🕯️ क्या किया जा सकता है?
✅ जागरूकता:
स्कूलों, कॉलेजों और पंचायत स्तर पर workshops की ज़रूरत है
समाज को सिखाना होगा कि "चुप रहना भी अपराध है"
✅ सहायता केंद्र:
181 Women Helpline (National)
One Stop Centre Scheme (OSC) — महिलाओं के लिए शेल्टर और काउंसलिंग
Childline 1098 — बच्चों के लिए
112 — आपातकालीन हेल्पलाइन (पुलिस, महिला सुरक्षा सहित)
✅ क़ानूनी अधिकार:
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 — महिलाओं को संरक्षण, निवास, भरण-पोषण और क़ानूनी सहायता का अधिकार
धारा 498A (IPC) — पति/ससुराल वालों की क्रूरता पर सज़ा
⚫ समाज कब बोलेगा?
क्या हमारा समाज तभी बोलेगा जब लाश मिलेगी?
क्या अब भी घरेलू हिंसा को “अंदर का मामला” कहा जाएगा?
“जिस दिन हर दीवार गवाही देने लगेगी,
उस दिन इंसाफ़ खुद चलकर आएगा।”
✊ निष्कर्ष:
"घरेलू हिंसा सिर्फ एक व्यक्ति का दर्द नहीं — यह समाज की चुप्पी का कलंक है।"
जब तक हम इन चीखती आत्माओं की आवाज़ नहीं बनेंगे, तब तक ये स्याह कहानियाँ यूँ ही दबी रहेंगी।
अब समय है बोलने का।
क्योंकि हर चीख़ इंसाफ़ की हक़दार है।
जय हिन्द जय भारत 🙏